Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Shalini Dikshit

Romance

4  

Shalini Dikshit

Romance

अचानक

अचानक

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"उफ्फ आज कितनी भीषण गर्मी है और भीड़ तो देखो कहीं भी बाइक पार्क करने की जगह नहीं है।" सिद्धार्थ मन ही मन झुंझला रहा था । 

अगर भाभी ने इतनी मिन्नते न करीं होतीं मैचिंग घागे लाने की, तो वह कभी नहीं आता इस लेडीज मार्किट में ।

पति लोग (जो कि होते ही है बिचारे डरे हुए) वह भी यहाँ आने से कतराते हैं, कभी कोई आता भी है तो बाहर ही बाइक या कार के पास रहता है, अंदर नहीं आता है।

 "मैं बेचारा तो अभी कुँवारा हूँ, ह्म्म्म और शायद हमेशा ही रहूँ, उस को इस बाजार की सैर करनी पड़ रही है।" सिद्धार्थ खुद से ही बातें कर रहा था।

मुश्किल से बाइक खड़ी कर के अंदर गलियों में होता हुआ बाजार पहुंचा ।

"ओफ्फो ! कितनीं तितलियाँ हैं, मैं इन सब के बीच कैसे मैच करूँगा रंग एक-दो दुकाने देख मैं तो निकल लूंगा यहाँ से; कह दूंगा नहीं मिला।" सिद्धार्थ ने बचने का तरीका सोचा।

जहाँ क़ुछ कम भीड़ थी सिद्दार्थ ने उस दुकान पर जाने की कोशिश करी ।

"ओ भाईसाब! इन रंगों के धागे निकाल दीजिये।" सिद्दार्थ ने दुकानदार से ऊंची आवाज में कहा।

"एक्सक्यूज मी ! "

पीछे से मीठी आवाज सुन के सिद्धार्थ पीछे मुड़ा। (एक लड़की सिद्दार्थ से जगह मांग रही थी उसका ध्यान सिद्धार्थ पर नही था) वह चारों खाने चित्त हो गया। 

"क्या ये सपना देख रहा हूं? या कोई भ्रम है.?" सोचते हुए वह किनारे हट गया।

"एक्सक्यूज मी!!" इस बार सिद्दार्थ ने आवाज दी।

कविता पीछे मुड़ी तो सिद्दार्थ ने खुशी को छिपाते हुए आश्चर्य से कहा 

"कविता?????"

वो खुशी से करीब करीब उछलते हुए बोली, "अरे सिद्दार्थ!"

"हाँ मैं सिद्दार्थ,पहचान लिया कमाल है।"

"मैं तो हमेशा से होशियार थी पहचानती कैसे नहीं।"

"ओह! इतनी होशियार थी तो कुछ समझी क्यों नही 8वीं में साथ थे तब।" सिद्दार्थ ने सोचा।

यहाँ आया है तो बीवी आस पास ही होगी इसकी, कविता का मन सुस्त हो गया सोच कर।

सिद्दार्थ सोच रहा बातूनी अभी भी उतनी ही है, पर खूबसूरत सौ गुने ज्यादा लग रही है।

"तो तुम को श्रीमती जी ने इस बाजार के दर्शन करा ही दिए?" कविता बोली।

"अरे भाभी की रिक्वेस्ट से आया हूँ बीवी तो है ही नहीं अपनी।" वह झट से बोला।

"तुम्हारे श्रीमान जी को पार्किंग मिल गई या गाड़ी में ही छोड़ कर आ गई हो उनको?" अब सिद्दार्थ का सवाल।

"हाँ पार्किंग तो मिल गई पर मुझे मिली, श्रीमान जी तो हैं ही नहीं मेरे।"

और फिर-

दोनो की आँखे खुशी से मिली।

शायद वो इजहार आज हो गया था जो पन्द्रह साल पहले 8वीं क्लास में नहीं हो सका था।


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