लोट आया वो

लोट आया वो

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मैं आपके साथ नहीं रह सकता आपके विचार मेरे विचारो से नहीं मिलते है। मैं जा रहा हूँ पापा। मैं अपना जीवन अपनी मर्जी से जीना चाहता हूँ मैं अपना व्यवसाय भी खुद ही शुरु करुगा। मुझे कोई दखलअंदाजी नहीं चाहिए आपकी।

ये कह कर अपना सामान ले कर अंकुर घर छोड़ कर चल दिया। अंकुर के पिता बनवारी लाल जी अवाक देखते रह गए। उनके समझाने का कोई असर नहीं हुआ अंकुर पर। भरे मन से अपने कमरे में जाकर लेट गए।

अतीत के पन्ने पलटने लगे वो। कैसे बचपन में अंकुर उनसे बिना पुछे कोई काम नहीं करता था और आज वो इतना बड़ा हो गया कि उसने मेरा हाथ छोड़ते हुए पल भी नहीं लगाया। सब समय की बातें है।

किसी शायर ने क्या खुब लिखा है

( करना फकीरी फिर क्या दिलगिरी

सदा मगन में रहना जी

कोई दिन हाथी ने कोई दिन घोड़ा

कोई दिन हाथी ने कोई दिन घोड़ा

कोई दिन पैदल चलना जी)

कितने मिन्नतो के बाद बेटा दिया था भगवान ने और वो भी ऐसा निकला। खैर जो उसकी मर्जी वो ही होता है हम कुछ नहीं कर सकते। सोचते सोचते उनकी आँख लग गई। थोड़ी देर में उनकी पत्नी ने आकर उनको जगाया और कहा जी खाना खालो कब तक युं ही उदासी के साये में जीयेगे।

यही हमारी नियती है शायद। पता भी नहीं कि वो कभी लोटेगा भी या नहीं हमारे पास।

बनवारी लाल वे कहा हाँ तुम ठीक कह रही हो उसका कुछ नहीं मालुम कि वो लोटेगा भी या नहीं।

बहु ने तो ऐसी पट्टी पढ़ाई बेटे को कि वो अपने

माँ बाप को भी छोड़ गया। जरा भी नहीं सोचा उसने तो। उसे दुनिया का ज्ञान थोड़े ही है वो तो नादान है अभी। कहते कहते रोने लगे वो।

चुप हो जाओ जी हाथ से आँसू पोछते हुए उनकी पत्नी ने कहा।

हाँ वंदना रोने से क्या होगा ये तो मैं भी जानता हूँ।

देखना एक दिन वो लोट कर आएगा। वंदना ने कहा।

अंकुर ने अपने दोस्त के साथ मिलकर व्यवसाय किया। कुछ दिन तो ठीक रहा सब। तरक्की पर तरक्की होती रही। एक दिन उसके दोस्त ने उसे धोखा दे दिया। उसका सब कुछ छिन गया उससे।

वो सड़क पर आ गया। आज वो पछता रहा था। पापा की बहुत याद आ रही थी वो ठीक कह रहे थे गैरो पर इतना भरोसा ठीक नहीं। मैंने अपनो को छोड़ कर गैरों पर यकीन किया। उनका दिल दुखाया बात नहीं मानी उनका अनुभव को तुच्छ समझा शायद इसी गलती की सजा मिली है मुझे। अब किस मुँह से जाऊँ उनके पास। क्या कहुँगा पापा से कि मैंने आपके सारे पैसे लुटा दिये। मैं नाकाम हो गया।

अंकुर की पत्नी ने कहा चिंता ना करो सब ठीक हो जाएगा। हम पापा के पास चलते है वो सब ठीक कर देगे। वो गुस्सा भी नहीं होगे। मुझे पूरा यकीन है। और अगर गुस्सा करेगे तो भी कोई बात नहीं क्यूंकि वो हमारे बड़े हैं और शुभ चिंतक भी है चलो चलते हैं।

दोनो बनवारी लाल जी के पास आ गए। दरवाजे की घंटी बजी दरवाजा उन्होने खोला तो सामने बेटे को पाया। अंकुर झट से पापा के सीने से लग गया उसके गले लगते ही उनका गुस्सा भी गायब हो गया। उन्होने भी उसे पुचकारा सारी बात का पता चला उनको तो वो कहने लगे कोई बात नहीं बेटे नुकसान का गम ना करो।

पैसा तो आनी जानी चीज है। तु सही सलामत लोट आया इसकी मुझे खुशी है। तुझे गलती का एहसास है ये भी कम नहीं।

सुबह का भुला शाम को घर आए तो उसे भुला नहीं कहते। बहू ने भी माफी मांगी दोनों से। वंदना ने भी दोनों को गले लगा लिया।


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