बुजर्ग

बुजर्ग

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अरे ओ हरिया की बहू जरा इधर आना

हाँ माँजी आई थोड़ा ठहरो ,,,,

जल्दी से आजा मेरे से रुका नही जाए।

जब देखो तब जल्दी में ही रहती है ये तो ।

अच्छा आई ।

हाँ कहो क्या हुआ,,,, मेरी दवाई कब लाओगे । खत्म हो गई है कब से कह रही हूँ।

हाँ हाँ आ जाएगी कितनी बार कहा है थोड़ा सब्र करा करो। गादड़ के तान बेर नही पकते है समय आने पर ही काम होता है।

हाँ हाँ हमको भी पता है ,,,, तु क्या समझा रही है मुझे । जा जाके हरिया को बोल माँ दवाई मंगवा रही है । ला दे ।

अच्छा जाती हूँ।

अजी सुनते हो माँ की दवाई कब की खत्म हुई पड़ी है लाते क्युं नही । अभी ये बात पुरी भी नही हुई थी कि माँ जी ने फिर से आवाज लगाई,,, अरे कहाँ मर गए ,, सब के सब ,, अपनी अपनी कोठरी में घुसे हुए रहते हो। कोई भी नही सोचता कि इस बुढ़िया के पास भी दो घड़ी बैठ जाए ,,,,, जब से हरिया के बाबूजी गए है मैं तो अकेली पड़ गई हूँ । तभी अंदर से हरिया का बड़ा भाई निकल कर आया,,, क्या हुआ मैय्या क्या कह रही हो।

कुछ नही मैं ये कह रही थी कि दीवाली आ रही है, अपनी बहन के घर कुछ मिठाई वगैरह दे आओ । बेचारी राह देख रही होगी कि कब मेरे मैके से कुछ आए ।

हाँ माँ दे आएगे अभी तो 15 20 दिन पड़े है क्या जल्दी है ।

हाँ हाँ मालुम है मैं तो तुम सबको याद दिला रही हूँ । दे आना जब तुम लोगो का जी चाहे । मेरा क्या है मैं तो बुढ़ी हो चली हूँ । सब तो मुझे यही समझते है ,,,,

एक पागल बैठी है बोले जाएगी। हमारा क्या है

बोल-बाल के आप ही चुप हो जाएगी । अभी हरिया के बाबूजी होते तो कहने से पहले ही काम हो जाता।

और कमरे में जा कर अपने पति की तश्विर को गले लगा कर फुट फुट कर रोने लगी। बेटे ने आकर अपनी माँ के हाथ से तश्विर ले कर वापस कील पर टांग दी। और अपनी माँ का हाथ अपने हाथ में ले कर कहने लगा ,,,,, माँ तु भी बेकार में ही चिंता उठाए रहती है। सब तेरे आगे पिछे घुमते है। तेरा कहा मानते है फिर भी तेरा बड़बड़ाना पुरा नही होता है । अरे हर साल की तरह इस साल भी सब काम हर बार के जैसे होगे। वैसे ही जैसे पिताजी के सामने होते थे। और हाँ तु अपनी दवाई लेके सो जा। तुम्हे आराम की जरुरत है।

मेरी दवाई कब की खत्म हो रखी है कोई सुनता ही नही ।

इतने में हरिया दवाँई लेके माँ के कमरे में आता है ।

भाई ने कहा लोे माँ तेरी दवाई भी आ गई है। अब तो खुश न। युं ही चिंता कर रही थी ।

परेशानी से सिर हिलाते हुए कमरे से बाहर निकल रहे हरिया ने भाई को देख लिया था । हरिया भाई की तरफ देख कर मुस्कुराया। भाई ने कंधे पर हाथ रख कर हरिया से कहा ,,,, ये उम्र का वो पड़ाव है जिससे करीब करीब सबको गुजरना पड़ता है । यानि कि बुुढ़ापे की सनक हर बुजर्ग को होती है ।

हाँ कभी हम भी गुजरेगे इस राह गुजर से

हाँ कभी हम तुम भी जुझेगे इस कहर से

बोझ न समझना भाई किसी बुजर्ग को

वरना जीतेजी मर जाएगे उनके अरमान    

वो इस दुनिया में है कुछ दिन के मेहमान

मेहमान को न मरने देना घृणा के जहर से


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