छोलमेड

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चन्द्रभान जी सवेरे सवेरे अपनी साइकल चमकाने में लग गए। पीछे से पत्नी ने आवाज़ लगाई। "अजी चाय पी लो बना दी है।"

"हाँ आया," कह कर गमछा कंधे पर लटका कर आँगन में आ गए और खाट पर बैठ गए। कहने लगे "अरे मनुवा अभी तक तैयार नहीं हुआ क्या ??" और कहते कहते चाय का कप उठाने लगे।

"अरे तुमको इस मुई साइकल से फुरसत हो तो न कछु देखोगे। जब देखो तब इसे चमकाने में लगे रहते हो। ऐसा क्या है इस मरी सौतन में। जब देखो तब इसी के लाड़ चाव करते रहते हो। हम तो जैसे है ही नहीं इस घर में।"

"अरे ऐसन काहे कह रही हो रामप्यारी, हमको तो तुमरा से ही इश्कवा है। और कोनो तो मनवा में आवत ही ना है।" शरमाते हुए रामप्यारी पल्लु को मुँह में दबा कर रसोई में चली गई। और मनुवा के लिए पराठा बनाने लगी। मनुवा भागता हुआ चन्द्रभान जी के पास आया और बोला "बाबूजी बाबूजी मुझे देर हो रही है स्कूल के लिए। आप हमको अपनी साइकल पर छोड़ दो।"

"हाँ हाँ आओ चलो बैठो।" अपनी साइकल की सीट पर गमछा घुमाते हुए बाहर निकाल कर मनुवा को बिठाया और चल दिए स्कूल की ओर। तभी रास्ते पर बगल से एक गाड़ी गुजरी और चन्द्रभान और मनुवा के साथ साथ साइकल को भी कीचड़ में भर गया। साइकल से उतर कर गाड़ी वाले को खूब गाली दी उसने। अपना कीचड़ साफ करने के बजाय साइकल साफ करने लगे। और कहने लगे.."बिटवा तुम खुद ही चले जाओ स्कूल में, अब तो यहाँ से नज़दीक है। हम इस हालत में तुमरे मास्टर के सामने नहीं जा सकत है।" "ठीक है बाबूजी।" और मनुवा बस्ता पीठ है पर टांग कर चला गया ।

साइकल की बुरी हालत को देख कर चन्द्रभान का जी निकला जा रहा था। जहाँ वो अपनी साइकल पर जरा सी धूल भी नहीं बैठने देता था, आज वो कीचड़ से लतपत थी। बेचारा क्या करता बुझे मन से घर आ गया। और आंगन में जाके खटिया पर सर पकड़ कर बैठ गया। अंदर से रामप्यारी आई तो पूछने लगी "अरे का हुआ मनुवा के बाबूजी, तोहरी इ हालत काहे ने कर दी।"

"अरे तुम हमरा के छोड़ो, उका देखो.."साइकल की ओर इशारा करते हुए वो बोला।

"आएए अम्माााा इ का हुई गवा हमरा सौतन के। हमको तो बड़ा दुख आवत है, कलेजा मुँह को आवत है।" कहते कहते वो चन्द्रभान की ओर देखने लगी तो पाया की चन्द्रभान बेहोश पड़ा है खटिया पर। "अरे मनुवा के बाबूजी तुमका की हो गया," कहते हुए वो उसे हिलाने लगी। पानी के छींटे मारे तो होश आया उसे।

वो बोली अ"रे तुम काहे बेहोश हो गए।" चन्द्रभान बोला "हमरा साइकल की इ हालत हो गई है और हम बेहोश भी नहीं होए का।"

"अरे अब समझे हम की शहरी लोग उ जो छोलमेड (सोलमेट) बोलते है न। कि इ हमरा छोलमेड है, हम एका बगैर जी नहीं पावै, शायद ऐसन ही अपने प्रेमी को बोलते होएगे। जिसकी बुरी हालत देखत ना ही जावत है, मरने को हुए जात है।"

"हाँ रामप्यारी तु ठीक बोली है।"

"मनुवा के बाबूजी...काश हम भी साइकल होते तो हम भी तोहरा के छोलमेड ( सोलमेट) होते।"


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