असली श्राद्ध

असली श्राद्ध

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पंडित जी ,,,, "देखिए यजमान जी, ये सब सामान तो आपको देना ही होगा श्राद्ध में। और ये सब पूजा संकल्प तो करवाना ही होगा, अन्यथा मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। सदियों से यही परंपरा चली आ रही है।"

सौरभ,,,,, "देखिए पंडित जी मेरी इतनी औकात नहीं कि मैं लाखों में खर्च कर सकूं। मेरा सारा पैसा तो माँ के इलाज में लग गया। मैं तो बस छोटी सी पूजा और दान दक्षिणा की रिवाज ही निभा सकता हूँ।"

पंडित जी,,,,, "भाई मेरा काम तो था बताना सो बता दिया। मानना न मानना आपकी मर्जी।"

दरवाजे की घंटी बजी । देखा तो रघुवीर आया है, "आजा यार बैठ जा, वो पंडित जी आये हुए हैं मैं उनसे बात कर के आता हूँ।"

रघुवीर,,,, "आंटी के श्राद्ध के लिए क्या ।"

सोरभ,,,," हाँ भाई ।"

पंडित जी,,,,,,, "मृतक के आत्मा की तृप्ति के लिए ये जरुरी है । बहुत से लोग ये सब पूजा नहीं करवाते हैं तो बाद में उन्हे परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।"

सोरभ,,,,, "वो तो ठीक है पंडित जी पर मेरा बजट नही है लाखों की पूजा करवाने का । अगर मैं इतना पैसा यहाँ लगा दूंगा तो पापा की बीमारी का इलाज कहाँ से करुँगा। जो अब इस दुनिया में नहीं है उस पर सारा पैसा लगा के मैं अपने जिन्दा हैं, जो उनको जीते जी नही मार सकता। मुझे पापा के इलाज के लिए सोचना है। डा० ने हमें पापा की सर्जरी के लिए एक महीने का ही समय दिया है। इससे जादा लेट हुआ तो उनको बचाना मुश्किल हो जाएगा । मैने माँ पर बहुत पैसा लगाया है , हर हफ्ते उनकी डायलेसिस होती थी। साल भर तक ये सब चला है। माफ कीजिएगा पंडित जी मैं इस पूजा के लिए तैयार नही हूँ । रही बात उनकी मुक्ती की , आत्मा की शांति की तो मैं किसी गरीब की सहायता कर दूंगा , जानवरों को दाना डाल दूंगा । बस इतना ही कर सकता हूँ । इससे उन भूखों का भला होगा तो उनकी दुआँए ही मेरी माँ की आत्मा की शांति करवा देगी। हाथ जोड़ते हुए वो कहने लगा ।"

रघुवीर अंदर आ गया । उसने इन दोनों की बात सुनी थी तो बीच में ही बोल पड़ा ,,, "ये ठीक ही तो कह रहा है। मरने वालों के पीछे जिंदो को नही मारा जाता है । सौरभ ने इतनी सेवा की है आंटी की, तन मन घन से तो आंटी तो वैसे ही खुश हैं इससे। फिर क्यूं सताएगीं वो अपने बच्चों को। "

पंडित जी,,,, "वैसे तो तुम दोनो से सहमत हूँ मैं। बस मैं तो शास्त्रो अनुसार ही बता रहा था ये सब ,आगे आपलोगो की मर्जी।" हाथ जोड़ कर पंडित जी चले गए ।

सौरभ,,,, "पता नहीं मैने पूजा के लिए मना कर ठीक किया या गलत ।"

रघुवीर,,,, सौरभ के कंधे पर हाथ रख कर ,, तूने जो किया ठीक किया है। जो पूजा जरुरी थी वो तूने पूरे विधी विधान से की है । फिर डर कैसा । मैं तेरी सोच से सहमत हूँ। असली श्राद्ध तो वही है जो तूने किया है आंटी की सेवा करके, बाकि सब तो दिखावा है। अगर पैसो की कमी के कारण अंकल को कुछ हो गया तो तुम अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाओगे। इसलिए जो किया ठीक किया । चल कहीं बाहर चलकर कुछ खाते पीते है।"


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