Archna Goyal

Abstract

5.0  

Archna Goyal

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ये संसार है

ये संसार है

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कुश मानो या नामानो सच्चाई यही है संसार की कोई अपना नही कोई पराया नही यहाँ पर।

मानो तो देव ना तो पत्थर है ये तो मन पर

निर्भर करता है। आप क्या सोचते हो क्या करते हो

ये आपके व्यवहार पर टिका है। आपने सुना होगा बड़े बुजर्गो से कि कोई सुख नही होता कोई दुख नही होता है। ये तो बस मन मानने की बात है। मतलब कि मन माने का सुख मन माने का दुख।

यतेन्द्र हो गया तुम्हारा भाषण अब तुम मेरा भाषण सुनो। सामने दुख खड़ा हो और दुख पर दुख झेल रहे हो फिर भी हम कहे कि हम सुखी है। तो भाई हम इतने बड़े संत महात्मा नही है। ऐसा तो वही सोच सकते है जो इस संसार को त्याग चुके है किसी से कोई मोह ममता नही है। अरे भाई हम ठहरे घर गृहस्थी वाले । मोह माया में लिप्त। लोभ क्रोध माया में उलझे हुए तुच्छ प्राणी।

कुश हाँ तुम ठीक कह रहे हो लेकिन फिर भी मेरे कथन में कहीं न कहीं सच्चाई तो है। हाँ ये कह सकते हो कि हर कथन हर जगह पर नही जचँता है। कुछ चीजे हमारी जिंदगी में ऐसी होती है जो हमें स्विकृत नही होती है फिर भी हमें उसे स्वीकारना पड़ता है ।

यतेन्द्र हाँ   भगवान हमें दुख देता है तो सुख भी देता। और सुख देता है तो दुख दे कर सुख के होने का एहसास दिलाता है। हाँ कभी कभी हमें अनचाहा दुख भी मिलता है जो कभी वो सुख में तबदील नही हो सकता। ये बहुत ही कष्टदायक होता है।

कुशतुम ठीक कह रहे हो मानो या नामानो संसार ऐसे ही चलता है। और चलता रहेगा।

चलो छोड़ो हम भी किस बहस में पड़ गए । चल एक बार मेरे साथ मुझे कुछ कपड़े लाने है तु दिलवा दे। अकेले पसंद नही कर पाता हूँ मैं  तू तो जानता ही है।

यतेन्द्र हूँ चल चलते हैं।


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