संतुष्टी

संतुष्टी

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अमन अपनी गाड़ी में बैठे बैठे शीशे में से गुब्बारे बेचते हुए उस बच्चे को देख रहा था, जो बार बार एक गाड़ी की खिड़की के बाहर से मिन्नते किए जा रहा था, "ले लो बाबूजी गुब्बारे ले लो..आपके बच्चे खुश हो जाएगे।" पर वो आदमी लेने को तैयार ही नहीं है, बल्कि उस बच्चे को झिड़की देने लगा।

बच्चा उदास हो कर उस गाड़ी के पास से चला गया।

वो सोचने लगा काश मेरे बच्चे होते तो मैं ये सारे गुब्बारे ख़रीद लेता। ये सोच कर उसकी आँखें भर आई। लाल बत्ती पर हरी बत्ती के इंतजार में बैठे अमन को ख्याल आया कि पास ही बच्चों का अनाथालय है, क्यों न वहाँ दे दूँ इस से ख़रीद कर। और वो उस बच्चे को इशारे से बुलाया अपने पास ।

कहा, "तुम्हारे पास जितने भी गुब्बारे हो मुझे सारे दे दो।" बच्चे ने कहा, "मेरे पास तो इतने से ही है, पर आपको और चाहिए तो मैं दिला दूँगा, पास ही है मेरा घर।"

"हाँ हाँ क्यों नहीं...मुझे बहुत सारे चाहिए।"

"हाँ तो चलिए मेरे साथ।"

और अमन ने गुब्बारे ख़रीद कर अनाथालय में बच्चों को बांट दिया। इस बच्चे के ढेरों गुब्बारे बिक गए। और उन बच्चों को थोड़ी सी खुशी मिल गई।

और अमन के मन को संतुष्टि।


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