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Archna Goyal

Abstract

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Archna Goyal

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क्यूं

क्यूं

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मानव  गाड़ी रुकने की आवाज सुन खिड़की से बाहर झांकने के बाद अधविका से बोला ये योगेश तुम्हे क्युं छोड़ने आया था आज? आवाज में थोड़ी तेजी सी थी। बोलते समय।

अधविका इस सवाल में मुझे शक की बूं आ रही है। कहीं तुम मुझपर शक तो नहीं कर रहे हो।

मानव नहीं नहीं मैं तो युं ही पुछ रहा था।

अधविका अगर तुम ये सोच रहे होगे कि मैं तुम्हे कोई सफाई दुंगी तो तुम गलत सोच रहे हो मैं कुछ भी नहीं कहना चाहती इस बारे में।

मानव अगर बता दोगी तो कोन सा अनर्थ हो जाएगा।

अधविका क्युं दुं में हर बात पर सफाई क्युं दुं मैं अपनी बेगुनाही का सबुत क्युं हर बात पर में ही दोषी ठहराई जाती हूँ। तुम दफ्तर से देर रात तक लोटते हो तो मैं तुम्हारी फिक्र करती हूँ कहीं तुम्हे कुछ हो तो नहीं गया तुम्हारे पास नकदी लाखो में होती है रोज़ाना ही कहीं तुम्हे गुंडो ने घेर तो नहीं लिया। लेकिन जब में लेट हो जाती हूँ तो तुम मेरी फिकर नहीं करते हो। बल्कि मुझपर शक करते हो। क्युं ऐसा  आखिर कब तलक ऐसा चलेगा। कभी तुम्हारे मन में ये नहीं आया कि मैं किसी मुसीबत में तो नहीं फँस गई। तुम मुझसे 2 घंटे पहले आ जाते हो फिर भी कभी नहीं कि मैं लेट हो जाऊँ तो मुझे लेने आजाओ।

ये जमाना ही ऐसा है इस पुरुष प्रधान समाज में नारी का अस्तित्व ही कुछ नहीं। तुम्हारा कोई दोष नहीं। जब राम के राज्य में ही सीता पर लांक्षन लगाया गया और कोई न्याय नहीं मिला सीता को तो हम स्त्रियों को कलयुग में क्या न्याय मिलेगा।

वो बोलते बोलते रोए जा रही थी सिसकियो पर सिसकिया ले रही थी।

मानव तुम मुझे गलत समझ रही हो मैंने ऐसा तो नहीं कहा कि तुम गलत हो बस युं ही मन में विचार आया तो पुछ लिया वो भी तुम योगेश के साथ थी। योगेश जरा दुसरे टाइप का बंदा है उसके बारे में मैंने गलत ही सुना है कुछ। बस इसलिए।

अधविका हाँ मैं अकेली आ रही थी रात को तब उसने मुझे ड्राप कर दिया। तो इसमें शक करने की कोन सी बात है। जब बाहर जा कर काम करुगी तो अपने सहकर्मीयों से बोलना तो पड़ेगा। आना जाना भी पड़ेगा अगर तुम्हे एतराज हो तो बता देना। मैं नोकरी छोड़ दुगी। घर भी संभालो बाहर भी मरो फिर घर आकर घरवालो की खरी खोटी सुनो। शक के कटघरे में खड़े होओ क्या जरुरत है मुझे ऐसी नोकरी की।

मानव बस बहुत हो गया बहुत बोल चुकी अब चुप हो जाओ। बच्चे उठ जाएगे। खाना ले आओ डाल कर मैंने मंगवा रखा है।

अधविका हाँ लाती हूँ तुम हाथ मूँह धो लो। और एक बात कान खोल कर सुन लो। मैं आज की नारी हूँ। कोई सतयुग की सीता नहीं जो अग्नि परीक्षा दुगी।

मैं गलत के खिलाफ आवाज उठाएगी। अपने हक की लड़ाई लड़ुगी अपने लिए।

मानव ओके ओके लड़ लेना लेकिन अभी पेट में भुख से लड़ रहे चुहो को तो न्याय दे दो। उनके लिए तो कुछ करो।  लड़ाई को खत्म करने के इरादे से मुस्कुराते हुए बोला और कुर्सी पर आकर बैठ गया।

अधविका ने भी बात यहीं खत्म कर मुस्कुराना ही ठीक समझा।


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