लिबास
लिबास
वह बहुत खूबसूरत है , मैं देखता रहता हूँ ,रोज उसे अलग अलग लिबास बदल कर जाती है। जब वह खास काला चूड़ीदार पैजामा पहनती है,तो लगता कि जैसे कोई हूर जा रही है,दिल करता है कि हाथ पकड़ सीधे कह दूँ,कि तुम तो मेरी हो या फिर तुम ही बनी हो मेरे लिये,पर साहस नहीं होता है।
मैं अकरम, हाँ ठीक ठाक खानदान से हूँ, और वह सोहनी। बस कुछ सोच कर कदम ठहर जाते हैं ,कि समाज कैसे मानेगा इस बात को। बस यही बात सोच कर रूक जाता हूँ और आजकल का जो दौर चल रहा है वह तो बहुत डरावना है।ऐसी ही बातों को सोचकर रूक जाता हूँ,पर चाहता बहुत हूँ सोहनी को।
एक दिन रिमझिम सी बारिश हो रही थी, मैं बैचेनी से इंतजार कर रहा था कि वह गुजरे तो बस नजर भर देख लूँ तो हमारे दिल को करार आजाये और कहते हैं कि जब दो दिल मिलने की चाह रखते हैं तो कायनात मिला ही देता है,और वही हुआ। बारिश तेज हुई तो बारिश से बचने के लिये हमारे बरामदे में वह आ खड़ी हुई भी बिलकुल बगल में और वह बोली कि" आप हमको बहुत पंसद करते है ना, पर कोई फायदा नहीं। हम लोग अलग अलग मजहब के हैं, मिलना तो छोड़ दीजिये ,हम एक नहीं हो पाएंगे। इस चाहत का कोई नतीजा नहीं निकलने वाला फिर क्यूँ ?चलिये आज से यहाँ से नहीं गुजरूगीं और आप को तकलीफ भी ना होगी, अलविदा।" कह कर बारिश में निकल गयी और मैं ठगा सा खड़ा रह गया। उसने उस दिन वही काला लिबास पहना था .मैं पहले उसको खाली चाहता था अब उसकी इज्जत करता हूँ । उसने थोड़े अल्फाज़ में बहुत कुछ कह दिया। जो मैं कह ना सका उसने कह डाला। यह है भारत की नारी।