चलो कुछ बुनते है
चलो कुछ बुनते है


चलो कुछ बुनते है, छंद कविता गुनते है चलो ना कुछ बुनते है, चलो कुछ सपने बुने, मीठे गीतों की ताने बुने यह शब्द है हमारी नायिका के हर बार की तरह यशी की सकारात्मक बातें पता नहीं कितना हौसला है मुई में, मौका मिला तो झट से वहाँ, अरे वहीँ रमारी नासपिटी सखी ,यशी बहुत जलन होती है पता नहीं क्या है कि हर कोई इसको इतना प्यार करता है। बस कंधे से भी छोटे बाल ऊपर से गरदन में टैटू झोला टांग कर चल दी, कुछ भी तो कहेगी कि कोई खिला नहीं देगा रोटी तो अपनी मेहनत की ही मिलेगी। इस कोरोना के लाक डाउन के समय बस कुछ लिख पढ़ रही है चलूँ देखू क्या कर रही है। चलिये सुबह रात्री कल मिलते है।