साहित्यकार
साहित्यकार


आज की यह कहानी हमारे साहित्य के गुरू नंदल हितैषी जी पर समर्ति है, कल उनको इस संसार को छोड़े एक वर्ष पूरा हो जायेगा। जी हाँ पूरे एक वर्ष आज भी वह घटना याद है जब उनको अस्वस्थ जानकार हम कई लोग उनसे मिलने उनके निवास पर गये। तो काफी देर तक साहित्य चर्चा करने के बाद वह अपनी पत्नी से बोले कि कि आप चाय बनायेगी क्या ? वह उसी अंदाज़ मे जवाब आया कि, आप बाहर से मंगाए क्या ?
उस पल उनका चेहरा देखने लायक था, क्यों कि हम लोगो के सामने ही वह अपमानित महसूस कर रहे थे।
हम लोग भी सकपका गये पर कुछ पल बाद ही हम सभी लोग सामान्य होने का भान करते रहे।
यह घटना हमेशा याद रहेगी, हम लोग कभी भी भूल नहीं पायेंगे तमाम खट्टी मीठी यादें हमेशा जुड़ी रहेगी, शायद ही कभी भूल पाये ऐसे थे हमारे गुरू नंदल हितैषी जी, यह रचना हम नंदल जी को ही समर्पित करते हैं। आज बस यही तक ।