लाली और गोलू
लाली और गोलू


गरमी की छुट्टियों में मैं बच्चों के साथ अपनी माँ के घर आई हुई हूँ और मैंने अधिकतर काम अपने जिम्मे में ले लिया है। वैसे तो साफ सफाई के लिए लाली आती है मगर फिर भी इतने बड़े घर में दसियों काम होते ही हैं।मुझसे जितना बन पड़े उतना मैं कर ही लेती हूँ।
घड़ी में सुबह के आठ बज रहे हैं, मैंने नाश्ता बना लिया है, सबको नाश्ता देना है पर बरतन अभी भी जूठे पड़े हैं, मन ही मन भुनभुनाते हुए (लाली अभी तक आई नहीं है, जब सबकुछ मुझे ही करना है फिर उसे क्यों रखा है माँ ने ) मैंने अभी के काम चलाने भर कुछ बरतन साफ करके बाकी यूँ ही रहने दिया और फटाफट नाश्ता लगा दिया। बच्चे बैठ कर खाने लगे तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजे पर लाली मुस्कुरा रही थी,
"मैं उससे पूछने ही जा रही थी,क्यों रे इतनी देर क्यों हुई आने में, सारे काम पड़े हैं "
उससे पहले ही वह कहने लगी,
"का करें दीदी! ये गोलू भी ना! जो आपके यहाँ खाकर जाता है वही बनवाने की फरमाइश करता है, कल आपके यहाँ आलू के परांठे खाए थे सुबह उठते ही वही खाने की जिद करने लगा, वही बनाने में देरी हो गई, अभी फटाफट से सब निबटा देंगे बस एक कप चाय तो पिला दीजिए।" गोलू बड़ी माँ को प्रणाम करो, बच्चा दंडवत हो गया मैं अरे अरे करती रह गई, लाली ने भी मेरे चरण स्पर्श किये और धम से कुर्सी पर पसर गई।
(वह सोलह साल की थी तब से ही हमारे घर में काम कर रही है और हमारे ही घर के बाहरी हिस्से में रहती है और घर के सदस्य की तरह है, सही उम्र में शादी भी हुई लेकिन पति को शराब ले डूबा, ससुराल में सबकुछ होते हुए भी लाली छोड़ आई ,पति के बिना वहाँ नहीं रह पायी, कभी-कभी चली जाती है दादा-दादी से बच्चे को मिलाने के लिए।)
मैं भी चाय बनाने चल दी, चाय लेकर लाली को पुकारा और खुद भी चाय पीने लगी। मैंने उससे कहा "थोड़ी जल्दी आने की कोशिश करना अभी तो मैं हूँ सब देख रही हूँ, इतनी देर से आती हो माँ को दिक्कत होती होगी," उसने कहा आप हैं इसीलिए आराम से आते हैं नहीं तो इस समय तक सारा काम खत्म कर देते हैं। " अच्छा और गोलू ने सचमुच आलू परांठे खाए हैं या तुम कहानी बना रही थी, "नहीं दीदी वो भूखा है मैं सो गई थी और आप देर से आने पर ड़ाँटती इसीलिए झूठ कहा"- उसने कहा।
मैंने गोलू को पुकारा,गोलू चुपचाप पास आकर खड़ा हो गया, हमारे घर के बच्चों को बहुत धीमी गति से खाने की आदत है, वे सब अभी भी खा ही रहे हैं। मैंने उससे कहा "क्या खाकर आये गोलू?"गोलू चुप ! चलो नाश्ता कर लो।
मैंने उसे परांठे और सब्जी दे दी। वो चुपचाप खाने लगा। लाली उधर चाय पीकर घर के कामों में लग गई। गोलू खा रहा है मैं उसको देख रही हूँ मासूम सा बच्चा बोलती आँखें,घुंघराले बाल और गोल चेहरा। तल्लीनता से खा रहा है। वहीं दूसरी ओर मेरे घर के बच्चों को खाने से ज्यादा बातें करने में मजा आ रहा है। गोलू खाना खत्म कर, बरतन रख,हाथ-मुँह धो कर आ गया।
मैंने गोलू से पूछा स्कूल जाते हो (मैं जानती हूँ फिर भी पूछ रही हूँ ) उसने सर हाँ में हिला दिया। कुछ लिखना आता है उसने" हाँ कहा "मैंने लिखकर दिखाने को कहा और अपने बेटे की काॅपी पेंसिल दे दी।उसने अ-अः तक और एक से बीस तक लिख दिया साथ ही अंग्रेजी की वर्णमाला भी पूरी लिख दी। छोटे बच्चों को पढ़ाना लिखाना मुझे अच्छा लगता है। वो ज्यादा बातें नहीं करता ऐसा मुझे लग रहा था तभी देखा वह बच्चों के साथ खेलने में लग गया और खूब बातें हो रही हैं।
घर में बच्चों को पढ़ने लिखने का काम देती हूँ, गोलू भी साथ ही बैठ जाता है, जो भी दूँ बाकी बच्चे आनाकानी करते हैं वह जल्दी से लिखकर दिखा देता है, फिर खेलता है।
घर में कौन चीज कहाँ रखी है गोलू को सब मालूम रहता है, घर के सदस्य की तरह है तो सारे घर में घूमता रहता है, घर के बच्चों के साथ खेलता है, एक दिन मैंने पूछा "बड़ा होकर क्या बनोगे गोलू "उसने कहा पुलिस आफीछर इसीलिए ढेर सारा खाना खाते हैं और पढ़ाई करते हैं "हाँ सच्ची में बड़ी माँ!
गरमी की छुट्टियाँ खत्म हो गई मैं अपने पतिदेव के पास वापस आ गई,अभी यहाँ की अलग दुनिया है लेकिन इस सब में मायके की याद अक्सर ही आ जाती है और नटखट गोलू भी याद आ ही जाता है!