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Bindiya rani Thakur

Abstract

4.7  

Bindiya rani Thakur

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वक्त का बदला

वक्त का बदला

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आज बाजार में नव्या दिख गई। उसे देखकर मैं तो दंग ही रह गया। कहाँ ये फैशन के कपड़े पहनती थी और आज सादी सी सूती साड़ी में है। ये तो वो नव्या है नहीं! 

उसे देखकर अतीत नजरों के सामने घूम गया ।एक वक्त था जब मैं दिलो-जान से इसपर मरता था,हमारे काॅलेज की सबसे सुन्दर लड़की थी और काॅलेज की जान हुआ करती थी, पहले दिन से ही मैं उसके प्यार में पड़ गया लेकिन इसने मेरी सादगी के कारण सबके सामने मेरा मजाक उड़ाया और मुझे ठुकराया।

मैंने इस अपमान को अपना स्वाभिमान बनाया और इतनी मेहनत की आज मेरी अपनी कंपनी है, घर वालों ने जिद की तो शादी भी कर ली। एक दिन नव्या के बारे में पता चला कि उसके

शादी हो गई,मैं धीरे-धीरे अपनी दुनिया में रमने लगा, शालिनी ने जैसे मेरी दुनिया ही बदल दी और एक प्यारी सी परी ने आकर हमारी जिंदगी को पूरा कर दिया।  आज नव्या को इस हाल में देखकर पता नहीं क्यों मेरे दिल को अच्छा नहीं लगा बल्कि मायूसी हुई।शायद आज भी मेरे मन में कहीं न कहीं उसके लिए थोड़ा सा प्यार बाकी है।

मैं उसी सादगी के साथ पत्नी का हाथ पकड़ कर खड़ा था और वो एक हाथ में सब्जी का थैला तथा दूसरे में बच्चे का हाथ पकड़े पसीने में नहायी,सड़क पार कर रही थी। 

मैंने मन ही मन में सोचा कि किसी भी तरह से नव्या की मदद करूँगा, उसने न सही मैंने तो कभी उससे प्यार किया था !


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