Bindiya rani Thakur

Romance Fantasy

4.3  

Bindiya rani Thakur

Romance Fantasy

तुम्हारा साथ जैसे जन्नत

तुम्हारा साथ जैसे जन्नत

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पड़ोस में बच्चों के झगड़ने की आवाज़ से मेरी नींद खुल गई, श्रेयस अभी भी सो ही रहे है, रविवार का दिन है इसीलिए देर तक सोने का इरादा है जनाब का!

दोबारा सोने की कोशिश की तो नींद ही नहीं आई, खैर अब नींद खुल ही गई है तो बिस्तर छोड़, मुँह धोकर बालकनी में आ गई।

सामने वाले घर से अब भी बच्चों की आवाज़ आ रही है, अब उनकी माँ के डाँटने की आवाज़ आई और बच्चे चुप हो गए। 

आजकल के बच्चों को प्यार से बात करना आता ही नहीं, माता-पिता भी क्या करें? कितना समझाएँ, जिनके इर्द-गिर्द जीवन की धूरी घूमती है, उन्हें ही समझाते-बुझाते, पढ़ाते-लिखाते समय बीत जाता है उनका।

इस मुहल्ले में मैं और श्रेयस सबसे अलग हैं क्योंकि हमारे बच्चे नहीं हैं। विवाह के बारह वर्ष हो गए लेकिन मेरी गोद अब तक सूनी है, हमने सारे उपाय करके देख लिए हैं, पर नतीजा शून्य है। अब गोद लेना ही एकमात्र विकल्प है जो श्रेयस के माता-पिता को मंजूर नहीं है।

ऐसा नहीं है कि हमें बच्चों से प्यार नहीं है और हमें बच्चे चाहिए ही नहीं, हर इंसान की तरह हमें भी यह सुख चाहिए लेकिन क्या करें शायद भगवान की इच्छा ही नहीं है, या कुछ और इंतजार करना होगा, हम एक-दूसरे के साथ बहुत खुश हैं। लेकिन परिवार तो बच्चों से ही पूरा होता है ना!

कभी-कभी मन बहुत ही ज्यादा दुखी हो जाता है जब लोगों को कहते सुनती हूँ कि ये जान-बूझकर ही माता-पिता नहीं बन रहे हैं, ये तो एक- दूसरे के साथ ही खुश हैं इन्हें बच्चों का कोई शौक ही नहीं है, लोगों की ऐसी बातें ज़हरीले तीर सा तन-मन को घायल कर जातीं हैं, पर श्रेयस कहते हैं,"शायना! लोगों की बातों को दिल से मत लगाया करो, उन्हें समय गुजारने के लिए एक मुद्दा चाहिए, आज हम उनके निशाने पर हैं कल उनको कोई और मिल जाएगा बातें बनाने के लिए, तुम्हारे लिए इतना ही काफी होना चाहिए कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, और सारी उम्र करता ही रहूँगा। बच्चों का क्या है, अगर किस्मत में लिखा होगा तो हो ही जाएँगे, और नहीं भी हुए तो बहुत से बच्चों को माता-पिता की जरूरत है हम उनको अपने घर ले आएंगे और प्यार देंगे, तुम उदास मत हुआ करो , मुझे बहुत बुरा लगता है।

मैं बैठी- बैठी सोच ही रही थी तभी श्रेयस चाय के दो कप लेकर आ गए मैंने कहा, "इतनी जल्दी उठ गए, मुझे पुकार लिया होता"

"सोचा सुबह- सुबह चाय पिलाकर तुम्हारी खातिरदारी की जाए", उन्होंने कहते हुए जोर का ठहाका लगाया। 

"इतने जोर से क्यों हँस रहे हैं पड़ोसी क्या सोचेंगे", मैंने कहा ।

जिसे जो सोचना है सोचने दो, श्रीमती जी तुम चाय पीयो ठंडी हो जाएगी, कहते हुए श्रेयस ने बड़े ही प्यार से मुझे देखा।

उनकी ऐसी बातें ही तो हैं जो मुझे कभी भी उदास रहने नहीं देतीं। हमेशा की तरह उन्होंने मेरी सुबह खुशनुमा बना दी।



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