Bindiya rani Thakur

Children Stories Inspirational

4.7  

Bindiya rani Thakur

Children Stories Inspirational

अन्न का महत्व

अन्न का महत्व

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दादीमाँ अपने कमरे में रामचरित मानस का पाठ कर रही थीं तभी उन्हें बाहर के कमरे से बहू और पोते के जोर-शोर से आवाजें सुनाई दीं। इस शोरगुल में वे पाठ करने में अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही थीं ,सो उन्होंने किसी प्रकार पाठ पूरा किया और बाहर जाकर बहू से पूछा,' मानसी बेटा क्या बात है किस बात पर वत्सल बेटे को डाँट रही हो!"

मानसी बच्चे के वजह से पहले- से ही परेशान थी बोली,"माँ अब आप ही समझाइए अपने लाडले को!एक तो खाने में इतने नखरे करता है ये नहीं खाना,वो नहीं खाना और उपर से हर दिन इतना खाना गिराता है जितने में किसी छोटे बच्चे का पेट भर जाए! मैं तो परेशान हो चुकी हूँ माँ!"

"अच्छा ठीक है मानसी बेटा, तुम जाओ कुछ देर आराम कर लो", आज मैं अपने वत्सल को खाना खिलाऊँगी।

मानसी ने कहा, "ठीक है, माँ अभी वैसे भी रसोई में काफी काम बाकी हैं, वही देख लेती हूँ",कहकर मानसी रसोई में चली गई ।

माँ को जाता देख वत्सल चुपचाप खाने लगा,दादीमाँ ने कहा, "वत्सल बेटा, आप मम्मा को क्यों परेशान करते हो, अच्छे बच्चे ऐसा करते हैं क्या? आप तो मेरे अच्छे बेटे हो ना फिर ऐसे क्यों करते हो?

मम्मा का नाराज होना भी जायज है ,इतना खाना गिराया है आपने! इससे पता है किसी का पेट भी भर सकता है,हमारे ही देश में कितने बच्चे हैं जिन्हें खाने को नहीं मिलता है, वे कचरे के ढेर से उठाकर खाना खाते हैं, छोटी सी उम्र में काम करने में लग जाते हैं, मजदूरी करते हैं,होटलों में जूठे बर्तन साफ करते हैं ताकि दो वक्त का खाना खा सकें,और आप रोज किसी के हिस्से का अन्न बर्बाद करते हैं,यह अच्छी बात है क्या?"

इतनी देर में वत्सल का खाना खत्म हो चुका था,अब दादीमाँ उसका मुँह धुला रही थी,हाथ-मुँह धोकर दोनों आंगन में आ गए।वहां से दादीमां उसे उस जगह ले गईं जहां घर का कचरा फेंका जाता था, उस जगह कुछ बच्चे वही खाना खा रहे थे जो वत्सल की माँ कुछ देर पहले फेंककर गई थी,वत्सल की आँखें भर आईं उसने दादीमां से माफी मांगी और कहा कि वह आज से अन्न बर्बाद नहीं करेगा और दादीमां से कहा,"दादीमाँ क्यों न हम सबके घर- घर जाकर उनसे बचा हुआ खाना जमा करें और जरूरतमंदों में बांट दें ताकि किसी को इसतरह कचरे के ढेर से खाना उठाकर खाना ना पड़े और वो भी बचा हुआ ही सही पर साफ खाना खा सकें।"

अपने पोते के इस बदली हुई सोच से दादीमाँ सौ प्रतिशत सहमत थीं।



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