बचपन की मीठी सी याद
बचपन की मीठी सी याद


आज छोटी पोती को जैसे ही कहते सुना, " दादाजी कितना अच्छा होता अगर हमलोग आपके और दादीमाँ के तरह जल्दी से बड़े हो जाते तो कुछ पढ़ना-लिखना नहीं पड़ता और आराम से सोते।"
मन अतीत में चला गया, हम भी अपने बचपन में ऐसे ही सोचते थे,खेलकूद में लगे रहते, तरह-तरह के खेल खेलते, गिल्ली- डंडा,कंचे,पिट्ठू,छुपन-छिपाई,चोर-पुलिस, शरारतें करते, दिन-दिन भर मौज-मस्ती चलती, कभी इस दोस्त के घर पकौड़े खा रहे हैं, तो कभी किसी दूसरे के यहाँ समोसों की दावत उड़ा रहे हैं,पढ़ाई तो साथ में ही हो जाती थी।
खेतों में से कच्ची मटर, मूली, गाजर और ईख तोड़कर खाते तो कभी कच्ची इमली, अम्बियाँ और खट्टी- मीठी बेर। कच्चे अमरूद, जामुन, आम, लीची तो हम सभी बच्चों के मनपसंद हुआ करते थे।
सभी अलमस्त फिरते थे । उस वक्त शायद ही कोई बच्चा होगा जो घर में टिककर रहता था, जो ऐसा करता उसे पढ़ाकू, किताबी कीड़ा कहा जाता, जो पढ़ते भी वो रात को घर में छुपकर!
गाँव में तब टेलीविजन भी नहीं आये थे,घर में रेडियो होना शान की बात मानी जाती थी, बायस्कोप देखते, मेलों का आयोजन होता, साप्ताहिक हाट में घूमने में मजा आता,
सर्कस होता, खेल-तमाशे, कठपुतली का नाच होता और भी कितना कुछ था।
लेकिन वक्त के साथ साथ शरीर भी बढ़ा और बुद्धि भी और उसके साथ ही जिम्मेदारियाँ भी बढ़ती ही चली गई, सतरहवॉं साल लगते ही बाबूजी के साथ खानदानी व्यवसाय में लग गया और अगले ही बरस माँ-बाबूजी ने सुशीला को जीवनसंगिनी बना दिया। फिर क्या जल्दी ही छह बच्चों का बाप बन गया,जिम्मेदारियाँ बढ़ती गई, सुशीला ने घर संभाला और मैंने व्यापार! बच्चे बड़े हो गए सबके घर बस गए, तीनों लड़कियाँ अच्छे घरों में ब्याही हैं।
जिसको जिन्दगी जहाँ ले गई, वहीं रह रहे हैं, बेटे अपनी रोजी-रोटी खुद देख रहे हैं और तरक्की भी कर रहे हैं। हम दोनों पति-पत्नी बारी, बारी से सबके घर आते जाते रहते हैं। सभी सुखी हैं, बहुएँ भी अच्छी हैं, मजे से कट रही है ।
उम्र के इस दौर में पोती ने बचपन की यादें ताज़ा करा दी तो मन अतीत में गोते लगाने लगा, मैंने पोती को खुश करने के लिए कहा,चलो मेरी गुड़िया रानी आइसक्रीम खाने चलते हैं, पसंद है ना मेरी लाडो को ! लाडली बिटिया जोर से मुस्कुराकर मुझसे लिपट गयी और कहा दादाजी आप बहुत अच्छे हैं !