वो मेरा पहला प्यार
वो मेरा पहला प्यार


दुनिया में शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जो प्यार की गलियों से गुजरा ना हो।हर इंसान प्यार के पहले एहसास से एक न एक बार जरूर ही रूबरू होता है।मैंने भी प्यार को शिद्दत से महसूस किया है।
मेरी ज़िन्दगी में पहला प्यार खुशबू के झोंके की तरह आया और मुझे पूरी तरह अपने गिरफ्त में लेकर सराबोर कर गया,आज भी उसकी यादों में तन- मन भीगा -भीगा सा लगता है।
बात उन दिनों की है जब मैं ने बारहवीं की परीक्षा पास करके शहर के सबसे अच्छे काॅलेज में बी एस सी प्रथम वर्ष में दाखिला लिया था साथ ही इंजीनियरिंग के प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने के लिए कोचिंग भी कर रहा था क्योंकि इंजीनियर बनना मेरे बचपन का सपना था।
एक दिन बड़े जोरों की बारिश हो रही थी और मेरे कोचिंग क्लास जाने का समय हो गया था मैं निकल ही रहा था कि मम्मी ने कहा "ऋशु बेटा, बारिश थोड़ी कम हो जाए तो चले जाना, बारिश में भीग गए तो सर्दी लग जाएगी," दस मिनट इंतजार करने के बाद वर्षा रानी मुझपर मेहरबान हो गई और मैं निकल कर गेट खोलने ही वाला था कि दूसरी ओर से किसी ने गेट खोल दिया, इस अचानक खुलने के कारण जो भी सामने से आ रहा था उससे मेरी सीधी टक्कर हो गई, अरे पर ये तो एक लड़की थी, मैंने साॅरी कहने के लिए जैसे ही उसकी तरफ देखा, उसकी खूबसूरती में खो गया। अपना बैग और छतरी संभालती हुई वह बहुत प्यारी लगी मुझे, निखरी रंगत, लम्बे बाल, बोलती आँखें, और आकर्षित करने वाला व्यक्तित्व।
शायद मम्मी की स्टूडेंट होगी, उनसे पेंटिंग सीखने आई होगी, मैंने मन ही मन में सोचा। अंदर से मम्मी की आवाज़ आई, "ऋषभ बेटा जल्दी जाओ वर्ना कोचिंग क्लास के लिए देर हो जाएगी", और मैं खूबसूरत हसीना के जादू में लिपटा हुआ कोचिंग क्लास के लिए निकल पड़ा। आज पढ़ने में मन ही नहीं लगा। उसी के ख्यालों में खोया रहा मैं तो!
अब ये रोज की बात हो गई मेरे कोचिंग क्लास जाने का समय और उसका मम्मी से पेंटिंग सीखने के लिए मेरे घर आने का एक ही समय था,मैं जानबूझकर जाने में थोड़ी देर करता ताकि उसे देख सकूं,मेरे बार-बार देखने से उसका ध्यान भी मेरी तरफ होने लगा, अब वह भी मुझे देखने लगी थी और कभी-कभी नज़र मिल जाती तो मुस्कुरा भी देती थी।
लगभग दो महीने होने को आए थे और अभी तक मुझे उसका नाम भी नहीं पता था, हालांकि वह मुझे जान गई थी कि मैं कौन हूँ और मेरा नाम क्या है।एक दिन मैंने उससे उसका नाम पूछ लिया ।उसने अपना नाम रेशम बताया। जो कि उसके व्यक्तित्व के साथ मिलता था, मैंने उसके नाम की तारीफ कर दी तो वह शर्म से मुस्कुरा दी।
धीरे-धीरे समय गुजरता जा रहा था और उसके पेंटिंग का कोर्स भी पूरा होता जा रहा था।मम्मी हमसे अपने छात्रों की ज्यादा बात नहीं करतीं हैं लेकिन एक दिन मम्मी ने मेरे और पापा के सामने रेशम की बहुत ज्यादा तारीफ की कि किस तरह दो ही महीने में उसने छह महीनों का कोर्स पूरा कर लिया है।
अगले दिन रेशम अंतिम बार पेंटिंग क्लास में आई और राधा-कृष्ण की पेंटिंग मम्मी को देकर चली गई(मम्मी अपने छात्रों से फीस नहीं लेतीं हैं, इसलिए जो भी उनसे सीखते हैं सभी गुरूदक्षिणा में उन्हें पेंटिंग देकर जाते हैं और मम्मी उसे सजाकर रख देती हैं)उस दिन के बाद मैंने कभी भी रेशम को नहीं देखा, प्यार तो था पर हिम्मत नहीं थी,इजहार करने की, इनकार से डर जो लगता था!
जिन्दगी में बहुत कुछ करना बाकी था
सो इश्क के इजहार से डर लगता था
जिन्दगी में बहुत सी चुनौतियां थी जिनका सामना करना था, अपना लक्ष्य प्राप्त करना था, सो इस प्यार को अपनी ताकत बनाकर मैंने जी-जान से पढ़ाई में खुद को झोंक दिया, दिल में आशा का दीप जलाकर रखा था, कि मेरे इंजीनियर बन जाने के बाद रेशम को ढूंढ कर उसे शादी के लिए कहूँगा, वो जरूर मान जाएगी। तो अभी पहले सपने को पूरा करने में जुटा हूँ और यकीन है कि मेरे बाकी के सारे सपने भी जरूर पूरे हो जाऐंगे।
जब भी कभी बारिश होती है तो रेशम के साथ वो पहली मुलाक़ात याद आ जाती है•••