Arun Gode

Tragedy

3  

Arun Gode

Tragedy

लालच

लालच

7 mins
399


 एक साधारण गांव में एक स्वर्णकार परिवार था। परिवार अच्छा-खासा बड़ा था। परिवार में छः भाई और तीन बहने थी। घर का मुखिया की सोने-चांदी की दुकान बाजार में थी। कुछ जान-पहचान होने के कारण उसे एक सरकारी राशन की दुकान भी मिली थी। परिवार बड़ा था। लेकिन मुखिया काफी चतुर होने से वह परिवार की परवरिश बहुत अच्छे ढंग से कर रहा था। सभी बच्चे स्कूल जाया करते थे। घर में सबसे बड़ी लड़की थी। अन्य सभी भाई बहन उससे छोटे थे। उम्र होने पर स्कूली शिक्षा के बाद उसकी शादी हो गई थी। घर का बड़ा लड़का काफी बड़ा हो चुका था। उसे पढ़ाई में कुछ ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। वह स्कूली शिक्षा के बाद पिताजी के साथ हाथ बटाया करता था। पिताजी से उसने स्वर्णकारी के सभी हुनर सीख लिए थे। लड़के का हुनर देखकर पिता काफी खुश होकर, उसे और महारत स्वर्णकारी हासिल करने हेतु, प्रशिक्षण के लिए राजकोट भेजा था। प्रशिक्षण करके उसने अपने नई दुकान उसी गांव में खोली थी। लड़के ने जिम्मेदारी संभाली यह देखकर उसकी शादी कर दी गई थी। कुछ अरसे बाद उसने अपनी किस्मत आजमाने के लिए ससुर के बड़े शहर में अपनी दुकान खोली थी। उसके बाद , अन्य कनिष्ठ दो भाइयों अपनी स्नातक तक की पढ़ाई कर ली थी। तीसरे नंबर के भाई के कुछ सितारे काफी बुलंद थे। गर्मियों के दिनों में वह अपने मामा के घर गया था। उसकी अच्छी पहचान मामा के किरायेदार से हो चुकी थी। वह एक अधिकारी था। नागपुर में किसी अन्य जगह से स्थानांतर पर आया था। जान-पहचान बढ़ने से उसने उसे सरकारी नौकरी का तोहफा दिया था। अनिल नौकरी लगने से बहुत खुश था। वह अपने दोनों बड़े भाइयों से सभी मामलों दो कदम आगे था। अभी तो उसके दूध के दाँत भी नहीं टूटे थे कि वह अपना दिल अपने जीजा के बहन के लड़की को दे चुका था। उसे प्रेमरोग लग गया था। अनिल ने अभी कार्यालय में अपनी अच्छी पैठ बना ली थी। उसे के ऊपर अधिकारी का छत्र था। उसे प्रशासन में कारकुन की अच्छी महत्वपूर्ण टेबल मिला थी। अधिकारी और अनिल में अच्छा तालमेल बन चुका था। इसलिए वह साहब के बाद उस सरकारी दफ्तर में प्रभावशाली कर्मचारी था। अभी उसका इश्क उफान पर था। लड़की का भी उस में सक्रिय योगदान था। परिवार में सभी को इस इश्क की भनक लग चुकी थी। दामाद ने ससुर से इस प्रेम कहानी को हकीकत में बदलने की गुहार लगाई। दामाद को ससुर मना नहीं कर पाये थे। लेकिन इस शादी में अनिल का बेरोजगार बडा बाई था। उसकी शादी किये बिना छोटे की शादी करना समाज में सामान्य बात नहीं थी। उसके पिताजी ने उस लड़के के लिए रिश्ते देखना शुरु किया था। अनिल ने अधिकारी की मदद से उसके नौकरी का प्रबंध किया था। पहिले बड़े भाई की शादी हुयी। जब उसकी शादी हो होने वाली थी। उसने अपने दोस्तों के आमंत्रित किया और नौकरी करने वाले दोस्तों को कुछ निजी खर्चे के लिए आर्थिक मदद की गुहार भी लगाई थी। दोस्त के शादी में दोस्त ऐश करने जाते है। लेकिन इस दोस्त के शादी में , लाचार दुल्हे के दोस्त उसकी मदद करने गयें थे। शादी होने के कुछ महा बाद उसे अन्य शहर में अपने छोटे भाई के मदद से नौकरी मिल गई थी। अभी अनिल का रास्ता खुल गया था। उसने अपने इश्क को शादि-शुदा जिंदगी में बदल दिया था।खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान। अनिल अभी कार्यालय में तनख्वाह के अलावा ऊपरी कमाई कर था। उसके अच्छे दिन चल रहे थे। उसने कई अपने गांव के घनिष्ठ मित्रों को नौकरी दिलाई थी। दिनों दिन बिना कुछ ज्यादा प्रयास से घर में धनवर्षा नियमित हो रही थी। मानो लक्ष्मी उसी पर अपनी माया कर रही थी। उसे दो बच्चे भी थे। छ्त्रधारी अधिकारी कुछ साल बाद चले गये थे। उनकी जगह दूसरे अधिकारी आ चुके थे। जानेवाले अधिकारी अपने जगह आनेवाले अधिकारी को सभी जानकारियां दे के जाते है। ताकि उनके जाने बाद उनके कार्यकाल का कोई मामला तुल ना पकड़े। कोई जांच ना बैठे।

          इसलिए अनिल की सीट भी कायम थी। दोनों में पहिले अधिकारी की तरह समन्वय था। धन वर्षा पूर्व की तरह चल रहा था। इन सब कार्यों में पार्टियां चलती रहती थी। उसके कारण शौक भी बढ़ चुके थे। शौक बढ़ने से पैसा गलत तरीके से कमाने का लालच भी बढ़ता है। नये अधिकारी शायद कुछ ज्यादाही लालची थे। अनिल भी उसी ढांचे में ढल गया था। भावनायें, रिश्ते, किसी की मजबूरी उसके लिए कोई माने नहीं रखती थी। कैसे और कहाँ से पैसा आयेगा यही जीवन का एक मात्र उद्देश्य हो गया था। पहिले किसी के निजी काम करने के लिए रिश्वत लेता था। बाद रिश्वत लेकर भी काम नहीं करता था। पैसे देने वाले चक्कर लगा- लगाकर थक और परेशान हो जाते थे। सिर्फ नेताओं की तरह सबको आश्वासन दिया करता था। उसका एक करीबी मित्र था। किसी माजी सैनिक कि नियुक्ति का मामला था। वह जानता था कि अनिल ये काम पैसे लेकर कर देगा !। उस मित्र ने बड़े उम्मीद के साथ उसे रिश्वत दी थी। उसे लगा माजी सैनिक का काम है। उसके कहने से कर देगा। बहुत समय बीत गया। लेकिन उसने उसका काम किया नहीं। सैनिक चक्कर लगा-लगार परेशान हो गया था। आखिर उसे उसके मित्र को बात करनी पड़ी थी। मामला निपटाने के लिए उसने सैनिक को जाली आदेश दिया था। उसे लगा कि जहाँ उसकी नियुक्ति हुईं है। वहाँ का अधिकारी उसे काम रख लेगा। लेकिन वह अधिकारी ने, जब –तक कार्यालियन आदेश उसे प्राप्त नहीं होता है। उसे काम पर रखने से मना किया था। फिर उसके मित्र ने अनिल से उस माजी सैनिक संबंध में बात की थी। अरे तुझे काम नहीं करना है, तो मत कर। लेकिन उसके पैसे लौटा दे। आखिर उसने जुगाड़ करके उसके पैसे लौटायें थे।

    अनिल ऐसे कई मामले में लिप्त था। अधिकारी की शह पर वह काम कर रहा था। अचानक किसी मामले में चौकसी बैठी। अनिल उस केस में निलंबित हुआ था। जांच चल रही थी। सामान्यता सभी निलंबित मामले में चौकसी पुरी होने पर ,कुछ कमियों को नजर अंदाज करके प्रशासन निलंबित कर्मचारी को फिर से काम रख लेता है ।अधिकारी का राजनैतिक प्रभाव होने के कारण उसने अपने आप को इस मामले में खुद को निर्दोश स्थापित कर दिया था। सभी विभागों में अधिकारियों के प्रति नरम रवैया अपनाया जाता हैं। लेकिन इस केस में जांच समिति को किसी को तो भी दोषी बनाना था। क्योंकि मामला संगिन होने के कारण यह अनिवार्य था। अनिल ने इस मामले को बहुत गंभीरता से नहीं लिया था। उसे कुछ बचाव के अवसर मिले थे। लेकिन उसकी बुद्धि वितरित दिशा में काम कर रही थी। वो सोच रहा था कि इन सब मामले में अधिकारी भी लिप्त हैं। इसलिए वह उसे भी बचा लेगा !। यह उसकी सोच उसे ले डुबी थी। अंत में अनिल की कार्यालय से सेवायें समाप्त हो गई थी। अब वो रास्ते पर आ चुका था। धीरे-धीरे उसकी आर्थिक हालात बहुत खराब और बिगड़तीचली गई। उस कार्यालय से उसकी सेवायें दोषी पाने के कारण समाप्त हो गई थी। इस लिए उसे किसी सरकारी सेवा का लाभ नहीं मिला था। उस पर कलंक लगने के कारण उसे कहीं जॉब भी कोई दे नहीं रहा था। नौबत यहां तक आ गई थी कि बच्चों को पढ़ाना भी कठिन हो चुका था। पत्नी दूसरों के घर खाना बनाने का काम कर रही थी। बड़े बुरे हालातों का परिवार ने सामना किया था। लेकिन बच्चे होनहार निकले थे। लड़की को बैंक में जॉब मिल गया लड़का भी इंजीनियर होकर किसी कंपनी में काम करने लगा था। अभी फिर से हालत सामान्य हो गये थे। लेकिन अनिल के लालची आदत के कारण परिवार के सदस्यों को जो कठिनाई का सामना करना पड़ा। वो तो भुलाया नहीं जा सकता है। लेकिन जीवन भर अभी पति-पत्नी को लाचार होकर जीना पड़ेगा ! आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी रहे ना पूरी पावे। अगर वो लालच नहीं करता तो सेवानिवृत्ति के बाद आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर होता। आगे की जिंदगी शानों शौकत से जी सकता था। लेकिन अढाई दिन की बादशाहत लिए जिंदगी भर के लिए अपना सा मुंह लेकर रहना पड़ा ।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy