Ragini Ajay Pathak

Abstract Drama Children

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Ragini Ajay Pathak

Abstract Drama Children

कटी पतंग

कटी पतंग

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  ससुराल में मेरी पहली मकर संक्रांति थी ठंडी की छुट्टियों पर पूरा परिवार इकट्ठा था मेरी ननद भी अपने दोनों बच्चों के साथ आयी हुई थी छत पर सब पतंग उड़ा रहे थे।


उन्हें एक साथ पतंग उड़ाता देख कर मुझे मेरा बचपन याद आ गया । अपने मायके में बचपन में हम सब भाई बहने आस पड़ोस के बच्चों के साथ मिलकर पतंगें उड़ाते। हम सब भाई बहन मिलकर एक सप्ताह पहले से ही पतंग बनाने की सारी सामग्री इकट्ठा करके एक साथ पहले पुराने अखबार या रंगीन पेपरों को लेकर अपने हाथों से पतंगे बनाते फिर उन्हें इकट्ठा करके एकसाथ मिलकर उड़ाने जाते।


लेकिन कभी किसी की कोई पतंग काटने की बजाय हमेशा मेरी पतंग कट जाती। और मेरे भाई बहन मुझे खूब चिढ़ाते। फिर मैं गुस्सा कर मुँह फुलाए छत के एक कोने में बैठ जाती। और फिर पूरा दिन उनको पतंग उड़ाते देखती । उन्हें देखकर जब मेरा मन उड़ाने को बहुत मचलता तो भाई बहनों का मुझे जीभ चिढ़ाते हुए चेहरे देखकर याद आ जाता कि मैं तो गुस्सा हूँ। मेरी पतंग तो कट गई है। इन्हीं खट्टी मीठी यादों को लिए हम सब छोटे से बड़े हो गए। बचपन की छोटी हाथ से बनी पतंगों की जगह अब पतंगें बड़ी और डिजाइनदार, धागा ब्लेड सा धारदार हो गया था पर दोनों ही पतंगों पर दोनों के लिए आकाश एक जैसा था नीला ,रौशनी से भरा बिना सीमाओं के अनन्त। बस हम भाई बहनों के बड़े होने से हमारी पतंगों की जगह हमारी जिम्मेदारियों और हमारे सपनों ने ले ली जिसमें हम उस सपने को पतंग विहीन पर उन्हें उड़ाने की चाहत तो पतंगों सी लेकर पूरा करने में जी जान से जुटे थे वो सपने पूरे भी हुए। हम सब भाई बहनों ने अपने सपने पूरे किए और पतंगों की डोर की छोड़कर कब जिम्मेदारियों की डोर को हाथों ने पकड़ लिया पता ही नहीं चला। 


    आकाश में पतंगों को देख मैं अपने बचपन की यादों में खोयी हुई थी कि तभी मेरी ननद का छोटा बेटा मेरी पतंग कट गयी कहकर रोने लगा। और मैं अपने बचपन की यादों से बाहर आकर उसे मनाने में जुट गई। उसे एक के बाद हम सब एक रंगबिरंगे पतंग दिखाकर मनाने की कोशिश में लगे हुए थे लेकिन उसने जिद की उसे दूसरी पतंग नही उड़ानी उसे उसकी वही पतंग चाहिए । पतंग कटकर फट चुकी थी तभी मेरे पति अजय ने उसे ड्रोन लाकर दिया। जिसे देखकर वो खुश होकर चला गया।


तभी मेरे ननदोई जी ने कहा ,"भाभी जी आप भी आइए । अब एक पतंग प्रतियोगिता रखते है देखते है कौन किसकी पतंगे अधिक काटता है ? किसी पतंग सबसे ऊंची उड़ती है ।


मेरे सामने रील के धागे सजाए हुए, ढेर सारी तितलियों की आकृति की रंगबिरंगी पतंगे रख दी गयी।


मैं आश्चर्यचकित होकर पतंगबाजी की सारी सामग्री देखकर डर रही थी।


मैंने अपने पति से कहा -" अजय ये पतंगे मेरे सामने क्यों? तुम तो जानते हो मैं इसमें हार जाऊंगी, तुम पतंग की पेंच लड़ाओ मैं पकड़ूंगी"


अजय ने कहा, "अरे, तुम इतना क्यों डर रही हो? हार भी गयी तो कोई बात नहीं ये तो घर की ही प्रतियोगिता है।"


इतना सुनकर मैंने मुस्कुराते हुए ठीक है में सिर हिला दिया लेकिन मैं अपने मन को कैसे समझाती की मुझे तो आज भी मेरी पतंग कटने पर रोना आता है। और काटने वाले पर गुस्सा।


तभी ननदोई जी ने आवाज लगाई ,"क्या हुआ?"


"भाईसाहब लगता है भाभी जी हारने के डर से खेलना नहीं चाहती।"


अजय ने कहा, "अरे! ऐसा कुछ नहीं है। आप प्रतियोगिता शुरू कीजिए।" कहते हुए अजय ने मुझे आंख मारते हुए पतंग उड़ाने के लिए कहा और खुद ढील देने लगे।


अजय ने पतंग उचका दी और मैंने अपनी आँखें बन्द कर के पतंग को ताना और उड़ाने की कोशिश की। पतंग बार बार गीर जा रही थी। लेकिन मेरी दो-चार कोशिश के बाद पतंग उड़ चली नील गगन में। पहली बार मेरे हाथों पतंग सबसे ऊंची उड़ रही थी सब मेरा नाम लेकर ताली बजा रहे थे।


अजय कभी मुझे तो कभी मेरी पतंग की तरफ मंत्रमुग्ध होकर देखे जा रहे थे


   अचानक ननदोई जी ने अपनी पतंग मेरी पतंग से फंसा ली। और कहा ,"भाईसाहब भाभी जी बचाइए अपनी पतंग को "


मैंने इस खेल में पहले से हारी हुई योद्धा का ख्याल जेहन में बैठा रखी थी। हर बार खुद पतंग कट जाना मुझे याद था लेकिन उसके साथ आज याद आ रहा अपने भाई बहनों से जुड़े कुछ दांव पेंच। धागे को ढील दी फिर खींच कर खुद की आंखें मूंद ली।


   अजय जोर से चिल्लाए," कट गई पतंग ।"


मैंने पतंग की डोर छोड़ दी और आंखें बंद किए हुए जोर जोर से अजय से लिपट कर बच्चों की तरह रोने।"


"हिप हिप हुर्रे"...."हिप हिप हुर्रे"


भाभी आप जीत गयी।


ननद ननदोई के साथ घर के अन्य सदस्यों की आवाज सुनकर मैंने आंखें खोली तो देखा नीले आकाश में मेरी पतंग स्वतंत्र उड़ रही थी जिसकी डोर अजय ने अपने हाथों में संभाल रखी थी


 और दूसरी तरफ नन्दोई जी की पतंग कट कर आकाश से धीरे-धीरे नीचे आ रही थी।


अजय -" रागिनी तुम तो जीत गई।"


इतना सुनते मेरा मन आज बच्चे की तरह नाचने का करने लगा। और मैं मन ही मन खुशी से झूम उठी।


मेरे समस्त पाठकों एवं साथी लेखकों को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं


धन्यवाद


    



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