Rajeev Kumar

Classics

4  

Rajeev Kumar

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कर्म-शक्ति

कर्म-शक्ति

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सभासदों की उपस्थिति, मौन जागरूकता, ग्रहों की परिकल्पना, स्वच्छ वायु का स्वछन्द विचरण, नींद में उंघते द्वारपाल, सिंहासन के दोनों तरफ पंखा डोलाती दो अप्सरा और सिंहासन पर बैठे जगत-जनक इन्द्र भगवान जाने कौन सी समस्या का समाधान ढूंढ रहे थे ?

तभी आवाज आई ’’ नारायण नारायण। ’’ इन्द्रदेव जी ध्यान मुक्त हुए और नारद जी को आते देखा तो प्रसन्न हुए कि हो न हो कोई शुभ समाचार लाए हों।

’’ नारायण नारायण । ’’ नारद जी सिंहासन के पास आए और परिहास भरे स्वर में बोले ’’ हे देव , यहाँ सारे लोग मौन धारण क्यों किए हुए हैं ? ’’

इन्द्र भगवान अपना मौन व्रत तोड़ते हुए बोले ’’ प्रभू, अब आपसे क्या छुपाना ? एक आप ही है जो मेरे इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। ’’

नाराज जी ने भौंह सिकेड़ते हुए कहा ’’ समस्या, कैसी समस्या भगवान ? आप तो तीनों लोकों के स्वामी हैं आपको कौन सी समस्या विचलीत कर रही है ? ’’

इन्द्र जी ने ग्रहों की तरफ इशारा करते हुए कहा ’’ देखिए भगवान, इन ग्रहों को, सभी अपनी कार्य-प्रणाली को सुचारू रूप से चला रहे हैं, वायू भी स्वछन्द बह रही हैं, पंक्षी भी कलरव कर रहे हैं। ’’ नारद जी बीच में बात काटते हुए बोले ’’ मैं आपका तात्पर्य नहीं समझ रहा हूँ भगवन्त, कृपया कर आप स्पष्ट वार्तालाप करें। ’’

इन्द्र देव जी ने सभा में चहलकदमी करते हुए कहा ’’ सभी अपना कार्य सूचारू रूप से कर रहे हैं मगर मेरा एक अंधविश्वासी भक्त है जो अपना काम, अपना परिश्रम और सार्थक प्रयास छोड़कर मेरी भक्ति में लगा हुआ है, मेरे ही ध्यान में मग्न रहता है। ’’

नारद जी, हक्के-बक्के हो, आश्चर्य से इन्द्र भगवान से बोले ’’ हे देव, यह तो बहूत ही प्रसन्नता की बात है। मुझको तो इसमें कोई समस्या नहीं नजर आ रही है। ’’

इन्द्र भगवान ने इस प्रश्न का जवाब दिया ’’ देखिए देव, मैं जिस भक्त की बात कर रहाँ हॅँ, उसका नाम देवद है, वो भक्ति की आड़ में अपनी आलसी प्रवृति को पर्दा कर रहा है। मैं चाहता हूँ कि वो मेरी भक्ति करे लेकिन अधिक समय वो अपने कार्य पूर्ण करने में लगाए। ’’

नारद जी ने फिर प्रश्न किया ’’ लेकिन देव, इसमें मैं और आप क्या कर सकते हैं ? इसमें उसकी सदृबूद्धि का दोष है। ’’

इन्द्र देव ने जवाब दिया ’’ उसकी सद्बूद्धि अवश्य ही उसके पतन के लिए दोषी है, वो अपने आलसी स्वभाव के करण अपना और अपने परिवार का शत्रु बना हुआ है, वो खेती नहीं करता और न ही कोई अन्य व्यवसाय ही करता है, जिसके कारण घर में अनाज की किल्लत है। ’’

नारद जी ने फिर प्रश्न किया ’’ तो मैं आपकी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ ? मैं अपना अहोभाग्य समझुंगा। ’’

इन्द्र देव जी मुस्कराते हुए नारद मुनी के कान्धे पर हाथ रखकर बोले ’’ मैं चाहता हूँ कि आप पृथवी पर जाएं, उसकी सद्बूद्धि की खातीर उसके मस्तिष्क में प्रवेश कर उसे कार्य करने का सामथ्र्य प्रदान करें। ’’

नारद मुनी सकपकाए और अपनी असमर्थता को व्यक्त करने का प्रयत्न किया मगर असफल रहे, फिर बड़बोले पन में उन्होंने कहा ’’ देव, मैं पृथ्वी लोक में जाने में असमर्थ हूँ और इस पर तो विचार कीजिए कि अगर मैं पृथ्वी लोक गया तो स्वर्ग लोक का कार्यभार कौन संभालेगा ? ’’ नारद मुनी के कथन समाप्त होते ही यमराज महाराज वहाँ आ पहूँचे ।

इन्द्र भगवान ने यमराज महाराज पर दृष्टि डाली ओर नारद मुनी से कहा ’’ आपकी अनुपस्थिति में यमराज महाराज आपका कार्यभार संभालेंगे। ’’

नारद जी अपनी हँसी को दबाते रहे और अन्त में ठहाका लगाकर हँस पड़े और बोले ’’ नारयण नारायण, कौवा चला हंस की चाल और अपनी चाल भूल गया। इन्को तो केवल जीवन लेना आता है, जीवन देना ये क्या जानें ? ’’

यमराज महाराज यह सब सुनकर बबूला हो उठे और इन्द्र भगवान से बोले ’’ मैं तो भूले-भटके, मनुष्य की गहन तपस्या को देखकर उसका जीवन लौटा भी दिय करता हूँ आपको तो मालूम है कि सावित्री का हठ देखकर मैंने सत्यवान के प्राण वापस लौटा दिया था, मगर नारद को तो चूगली के सिवाय कुछ और आता ही नहीं। ’’

इस बार नारद मुनी भी आग बबूला हो उठे और ’ नारायण नारायण करते हूए स्वर्ग लोक से पृथ्वी की तरफ प्रस्थान कर गए।


भाग-2


सूदूर में प्राकृतिक छटा का समागम लिए गाँव पनीहारी, जहाँ देवदŸा नाम का इन्द्रभक्त अपनी पत्नी और बच्चों समेत रह रहा था। तु तु मैं मैं और भुखमरी के बावजूद घर में थोड़ी सी शांति छाई हुई थी, क्योंकि घर में थोड़ा बहूत अनाज था। ज्यों ही देवदŸा ने इन्द्रदेव की पूजा-अराधना समाप्त किया त्यों ही उसकी पत्नी परवतिया बरस पड़ी और बड़बड़ाते हुए कहने लगी ’’ तुम तो नीखट्टू, आलसी और कामचोर हो गए हो। खेत सुख गए हैं, गाँ के लोग पानी का इन्तजाम कर रहे हैं या कोई दू सरा रोजगार कर रहे हैं और तुम इन्द्र देव की पूजा में व्यस्त रहते हो, मैं यह नहीं कहती कि पूजा मत करो....लेकिन.......। ’’

ठतना सुनते ही देवदŸा बोल पड़ा ’’ सारा दिन हल्ला करती रहती हो, तूम क्या जानो भक्ति की शक्ति ? ’’ और देवदŸा बाहर निकल गया, बाजार की ओर चल दिया, रास्ते में ही उसे दीनू काका मिल गए। 

’’ कैसा चल रहा है काका ? ’’ देवदŸा ने पाँव छूूते हुए पुछा।

छीनू काका ने निराशा भरे स्वर में कहा ’’ का हाल-चाल अच्छा रही ? बूंदा-बूंदी का कोनो ठौर-ठीकाना नहीं, भगवान जाने इन्द्र भगवान कब खुश होइहें। ’’ दीनू काका चल देते हैं और देवदŸा भी बाजार की तरफ चल देता है।

बजार में खचाखच भीड़ थी, सभी लोग चहलकदमी कर रहे थे, तभी एक अदृश्य ज्योति चमकी और नारद मुनी प्रकट हुए। करताल की आवाज आई और साथ ही आवाज आया ’’ नारायण नारायण। ’’ सभी लोग नारद मुनी को देखकर आश्चर्यचकित हुए, फिर सभी ने नारद मुनी को बहरूपिया ही समझा और सभी अपने अपने काम में लग गए।





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