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Mrugtrushna Tarang

Abstract Crime Fantasy

3  

Mrugtrushna Tarang

Abstract Crime Fantasy

कर्म फल

कर्म फल

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सर्व सामान्य लोगों के लिए ब्रिगेडियर रत्न सिन्हा के अस्थियों से भरे कलश को लाल कपड़े से बांधने की कोशिश में आला अफसर को सफलता नहीं मिल रही थी।

तभी,

वहाँ पर एक फ़टे पुराने कपड़े पहने आम आदमी आया। और अस्थि कलश को खोलकर बारीकियों से उसे देखने लगा।

आसपास खड़े सारे के सारे योगिसर्स उस आम आदमी को दूर भगाने की कोशिश में जुट गए।

पर,

वो फकीर सा आदमी वहाँ से रत्ती भर भी न हिला।


सभी की नज़रों के सामने से वह अस्थि कलश को ले भागा। सब उसके पीछे भागे। संकरी गलियारों में वो फ़कीरा कहीं गुम हो गया।


घंटे भर बाद वो फ़कीरा एक के बदले दो कलश लेकर लौटा।

अफसर ने उसे धर दबोचा। पूछने से पूर्व वो बोला -

"ब्रिगेडियर साहब को अकेले कैसे स्वर्ग लोक जाने दे सकता था?"


आश्चर्यजनक निगाहों से हर कोई एक दूजे को घूरे जा रहे थे।

सभी की आँखों में

प्रश्नात्मक चिह्न देख फ़कीरा बोला, 

"जिसको पैरों तले कुचलकर आगे बढ़ते जा पहुँचे थे आपके साहब। उन सभी को भी तो स्वर्गलोक नसीब होना चाहिए ना!"


"ब्रिगेडियर रत्न सिन्हा जी की अस्थियाँ किसमें हैं?"

रत्न सिन्हा की पत्नी ने ऊँचे स्वर में सवाल किया।


"सारी अस्थियों को मिक्स करके दोनों कलशों में बराबर हिस्से में भर दिया। ताकि, कोई भी पीछे न रह जायें।"

फ़कीरा अपने मस्तमौला अंदाज़ में गुनगुनाता वहाँ से चलता बना।


भीड़ में खुसुरपुसुर शुरू हो गई। ब्रिगेडियर रत्न सिन्हा की अस्थियों को उनके मानस पुत्र श्रीसंथ सिन्हा ने गंगाजी में विसर्जित कर दिया।


ब्रिगेडियर के संग पीड़ितों की अस्थियाँ भी उन्हीं के साथ स्वर्गलोक के दरवाजे पर जा पहुँची।


उन्हें छोड़ सभी को स्वर्गलोक प्राप्त हुआ। और वे अपना रुतबा पृथ्वी की भाँति ऊपर स्वर्ग लोक में चलाने में नाकामयाब रहें। अगले 100 वर्षों तक।



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