ये वादा रहा
ये वादा रहा
"चाहे कितनी भी भलाई का काम कर लो, उस भलाई की उम्र सिर्फ अगली गलती होने तक ही है।"
"ये क्या बकवास शुरू कर दी तुमने आश्का सुबह सुबह!" अबीर ने झुँझलाते हुए अपनी प्रियतमा की ओर मुड़े बगैर ही टोक दिया।
"था कोई ऐसा, इस ज़माने में ऐसा कहने वाला की रिश्तों में कड़वाहट तभी दस्तक देती है जब कोई एक या दोनों एकदूसरे को सुनने का लहज़ा नज़रंदाज़ कर देते हैं। और फिर शुरू होती है मैदान - ए - जंग में मैडनेस!!" नख़रे कर कर के आश्का अबीर को चिढ़ाने का एक भी मौका न छोड़ते हुए बर्बस एक्टिंग वाले अंदाज़ में सुनाए जा रही थी।
और इस ओर, अबीर भी समझते हुए नासमझी का ढोंग रचाये हुए चिढ़ने का नाटक जारी रखे हुए था।
(( उफ़्फ़! कैसे आशिक़ हैं ये दोनों। आशिक़ी का सही मायने में मतलब नहीं जानते या न जानने का नाटक कर रहे हैं! )) - मन ही मन बड़बड़ाते हुए ताहा वहाँ से गुज़रते हुए तिलमिला उठा। अपने ही हाथों अपने दोनों कान बंद करते हुए अपने कमरे में लगभग दौड़ता हुआ ही पहुँचा।
बस, अब और नहीं। ऐसी होती है नोंकझोंक! ऐसा होता है प्यार, इश्क, मोहब्बत!! ना बाबा ना, मैंने नहीं पड़ना इन पागलपंती के झमेलों में! - ऊब चूका हूँ मैं तो रोज़ रोज़ की ऐसी बेतुकी बकवास सुन सुन कर।
ताहा को प्यार के लिए मनाने का उम्दा तरीका ढूँढ़ा है बच्चों ने। अब तो वो दिन दूर नहीं कि ताहा की दुल्हन इस आँगन में पायल छनकाती जरूर चहकेगी। और मैं उसे बेतहाशा प्यार - दुलार दूँगी। जरा सा भी सास बहू वाला व्यवहार नहीं करूँगी। - ताहा की अम्मी अपनेआप से बड़बड़ाती हुई बावर्चीखाने में चली गई।
"क्या लगता है तुम्हें अबीर, ताहा के दिलोदिमाग में प्यार मोहब्बत वाली शादी से मन उभर आया होगा या नहीं ?"
इशारों में अपनी बात समझाने की कोशिशों के चलते अबीर नाक पर एक उंगली रख ताहा के कमरे की ओर आगे बढ़ता चला गया।
जहाँ, ताहा, आश्का और अबीर के बातूनी ढिशुम ढिशुम को सुन बौखलाया हुआ कमरे के भीतर की दीवारों को मानो अपनी चहलकदमी से नापे जा रहा था।
क्या मुसीबत है। कितनी मुश्किलों से मैंने पारो को मनाया था कि हम प्यार वाली शादी रचाएंगे। घरवालों की 'ना' होने पर भागकर मंदिर में शादी करेंगे। फिर, कोर्ट मैरिज भी करेंगे। फिर तुम मेरे घरवालों को मनाने मेरे घर आओगी, और मैं DDLJ का राज बनकर तुम्हारें घर जाऊँगा।
हम एकदूसरे के लिए अजनबी बन अपने अपने घरवालों को मनायेंगे।
"पर, धत! सब उल्टा पुल्टा हो गया! अम्मी अब कभी नहीं मानेंगी प्यार वाली शादी के लिए!" रुआँसे होते हुए नन्हें बच्चे की भाँति ताहा रोने लगा।
कमरे के बाहर खड़े आश्का और अबीर इस योजना को सुनकर चौंक गए।
"ये पासा तो उल्टा पड़ गया अबीर! तुम्हारें भैया ने तो कितना धांसू प्लान बनाया था अपनी पारो से ब्याह रचाने का।" आश्का तो इम्प्रेस हो गई थी अपने फ़ास्ट फ्रेंड अबीर के बड़े भैया की प्यार वाली मैरेज की प्लानिंग सुनकर।
इधर अबीर परेशान सा बारामदे में यहाँ से वहाँ चक्कर काटने लगा। आश्का उसके पीछे पीछे उसकी स्पीड को मैच करती हुई दौड़े जा रही थी और बड़बड़ा रही थी। जिसका कोई असर अबीर के दिलोदिमाग पर नहीं होता होगा, ये स्पष्टरूप से नज़र आते हुए भी आश्का अबीर की अम्मी को दिया हुआ वादा पूरा करने में जान लगाए हुए ज़हेमत और ज़िल्लते भी उठाये जा रही थीं।
आश्का को मद्धम सूर में अपनेआप से बड़बड़ाते हुए देखकर अबीर को अपनी बेतकल्लुफी वाली बेवकूफ़ी पर शर्मिंदगी महसूस हुई और कान पकड़कर मुर्गा बनने का नाटक करते हुए वह आश्का के सामने कुकड़ेश्वर बना घूमने लगा।
आश्का के मुँह से हँसी फूटी और कहकहे लगाते हुए लोटपोट हो गई।
अपने कमरे के बाहर से अचानक से कहकहे की आवाज़ें सुन ताहा सक्ते में आ गया।
"पारो, मैं तुम्हें थोड़ी देर में कॉल करता हूँ।"
"पर क्यों? अभी क्यो बात नहीं हो सकती? अच्छे खासे मुड़ का भर्ता बना दिया। जाओ, नहीं करती बात तुमसे!" गुस्सा जतलाते हुए पारो ने फोन काट दिया।
ताहा का पूरा ध्यान कमरे के बाहर से आ रहे कहकहे पर् टिका हुआ था, वर्ना, कोई और वक्त होता तो ताहा का पारो को मनाने का सिलसिला घंटे भर तक चलता और आखिरकार ताहा को सॉरी के मुवावजे के तौर पर पारो को गोल्डन शीट्स खिलवाने भायखला लेकर जाना पड़ता। तब जाकर के देवदास (ताहा) की पारो मानती और मनवाती भी।
अपने कमरे के दरवाज़े की कुंडी को धीरे से बिना आवाज़ किये खोलकर जब ताहा ने देखा तो भौचक्का सा रह गया।
अबीर आश्का के पैर दबा रहा था और हिंदी फिल्मों की वैम्प जैसी आश्का अपने प्रेमी -कम- शौहर से नख़रे उठवा रही थी। ताहा की आँखों के सामने अपने ब्याहता जीवन का मन्ज़र घूमने लगा। - "ताहा डार्लिंग, आज तुम्हारी अम्मी की सेवा कर करके मैं तो बेहाल हो गई। डार्लिंग, क्या हम आज हॉटल में खाना खाने जाएँ! देखों ना, मेरे नाजुक से हाथों में कैसे सूजन सी आ गई है। प्लिज़।"
दूसरी ओर से अम्मी की चीख सुनाई पड़ती है -
"या अल्लाह! कैसी ब्याहता घर ले आया कमबख्त। कितनी बार कहा था तुम्हें, कितना समझाया था कि, इस साहबजादी से ब्याह मत करना। हुकुम चलाएगी, तुम्हें और मुझे जहन्नुमी ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर देगी। पर, बेटा तुमनें मेरी एक न सुनी। अब भुगतना तो हम दोनों को ही पड़ेगा ना!!"
((बस, अब और नहीं। मैं इस दोहरी ज़िंदगी से तंग आ गया हूँ। एक ओर मेरी अम्मी है, जिसने मुझें प्यार दुलार से पाल पोसकर बड़ा किया, उनका ऐहसान सातों जन्म तो क्या सातसौ जन्म तक न चूका पाऊँगा। -
दूसरी ओर मेरी ज़िंदगी है, जिसने मुझें जीने का सलीका सिखलाया। पर अब इन दोनों में से किसी एक को चुनना यानि अपनी ही मौत को दावत देने के बराबर है। क्या करूँ?))
- ताहा आश्का और अबीर की नौटंकियों को समझ नहीं पाया और उसने माँ को बचपन में दिया हुआ वादा निभाने की ठान ली। और लड़कपन में पारो को दिया हुआ वादा तोड़ - मरोड़कर अपने सच्चे प्यार को भुलाने की कोशिशों में पारो की हेल्प लेने चला गया।
ड्रामेबाज आश्का और अबीर, अपने बड़े भाई की दिमागी हालत से वाकिफ़ थे। तभी तो अपनी अम्मी के दूध का कर्ज चूकता कराने के चक्कर में कहीं सगे भाई जैसा यार न खो दे, बस ये डर से चुप रहे।
बस, इसी उधेड़बुन में आश्का को अम्मी पास छोड़कर वो खुद ताहा के पीछे पीछे कुछ दूरी बनाते हुए चलता रहा।
अगले ही नुक्कड़ पर ताहा (देवदास) की पारो का महल जैसा बड़ा सा घर था।
पारो, ताहा की फूफी के दूसरे शौहर की ही पहली बेटी थी। और, खेल खेल में दोनों को इश्क हो गया। घरवालों को ये रिश्ता मंजूर था, लेकिन, पारो और ताहा के बीच पनप रहे मनमुटावों का पर्मनन्ट सॉल्यूशन लाने की जद्दोजहद के बावजूद उनके बीच की 'तूतू-मैं मैं' लपकझपक सामने आती रहती, और दोनों परिवार वाले हैरान परेशान हो उठते।
हफ़्ते में सातो बार 'आई लव यू' और दूसरे ही दिन 'आई हेट यू' सा माहौल खड़ा हो जाता उन दोनों के दरम्यान।
रिश्तों में दरारें पड़नी शुरू होने लगी। फूफू जान समझदार थे, इसलिए बच्चों की गलतियों को नजरअंदाज करते चले जा रहे थे।
और इसीलिए, ताहा की अम्मीने ताहा के जिगरी दोस्तों में से आश्का और अबीर को नौटंकियों के जरिये उन दो बेवकूफ प्रेमियों को सबक सिखलाने का ज़िम्मा सौंप दिया।
अब,
कहानी क्लाइमेक्स पर आकर टिकी थी।
"पारो, पारो, जल्दी नीचे आओ।" ताहा ने हड़बड़ाते हुए पुकारा।
"ताहा डार्लिंग, फोन काटकर तुम्हारा यूँ मुझे रूबरू मनाने आना मुझें बहोत ही भाता है। आई लव यू जानू!"
"पारो, मैं पहले वाला वादा निभाने के लिए दूजा वादा होल्ड पर ले जाने के लिए तुम्हारी हेल्प चाहता हूँ। क्या तुम मेरी हेल्प करोगी?"
"ताहा, कौन सा पहले वाला वादा और कौन सा दूसरा? कुछ समझें वैसा बोलो ना!"
"मैं, ताहा शेख, अपनी अम्मी को दिया हुआ वादा निभाने के लिए तुम्हें दिया हुआ वादा होल्ड पर ले जाने की बात कर रहा हूँ जानू!"
"मैं राज़ी हूँ, बेतहाशा ख़ुश हूँ कि आखिरकार तुम्हें यह इल्म हो ही गया कि, माँ हमेशा से पहले नंबर पर ही होनी चाहिए। दोस्त, प्रेमिका या बीवी उसके बाद में।"
"आई एम प्राउड ऑफ यू पारो!"
"मि टू ताहा।" कहकर दोनों एकदूसरे के गले मिल गए। और घंटों यूहीं एकदूजे को चिपके झूमते रहे।
और तभी आसमान से कागज़ी रंगबेरंगी फूल बरसने लगे।
"मियां को बीबी और बीबी को मियां कुबूल है।
निकाह सम्पन्न हुआ।"
ताहा के अम्मी और फूफू - फूफी जान के साथ साथ आश्का और अबीर ने भी रंगबिरंगी फूलों की पत्तियाँ बरसाई।
एक वादा निभाते हुए दूजा जोड़ने चले दो प्रेमी, दो पंछी,
बनाने चले एक नया आशियां।।
आश्का और अबीर ने अम्मी के ईर्दगिर्द ही सात फेरों के सातों वचन दोहराने शुरू कर दिये -
और ताहा और पारो ने पहला वचन एक साथ दोहराया...
मैं तुम्हारी हर एक बात सुनने का वादा करता हूँ।
मैं तुम्हारी हर एक बात सुनने का वादा करती हूँ।
माइक पर कहीं से किसीका प्रवचन सुनाई देने लगा -
"संचार के आसपास संबंध बनाए जाते हैं, और संचार एक दो-तरफ़ा सड़क है। यदि आप चाहते हैं कि आपकी आवाज़ सुनी जाए, तो आपको यह भी निश्चित रूप से सुनना चाहिए कि आपके साथी को क्या कहना है।
खुले विचारों वाले हों और चीजों को उनके दृष्टिकोण से देखने की कोशिश करें। ऐसा करने से सच्ची समझ के द्वार खुलेंगे।"
शायराना अंदाज़ में फूफू और फूफी ने मशहूर शेर गुनगुनाया :
"कलम क्यों चाहती है लिखना
तेरी ही ज़ुबाँ में हर नया किस्सा,
कुछ तो है बात ख़ास तुममें
भूल न पाऊँ हिस्सा दर हिस्सा !