Mrugtrushna Tarang

Fantasy Inspirational Children

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Mrugtrushna Tarang

Fantasy Inspirational Children

मोन्सुन, आई हेट..!

मोन्सुन, आई हेट..!

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बारिश की झड़ी आज सुबह से निकलने का नाम ले रही थी। ननु को बारिश में भीगना, जैज़ गाने गुनगुनाना बहोत ज्यादा पसंद था। पर 'न्यूमोनिया हो जाएगा तुम्हें! फिर इंजेक्शन लेने पड़ेंगे रोज।' सुनकर ननु मन मारकर घर में ही रहती। बारिश की फुहारों से दूर। बहोत दूर।

आज भी वो रिमझिम बरसती बारिश को लेकर बेहद खुश थी। बारिश वाली सुबह को जी भर के जीना चाहती थी। मौक़ा भी था, और दस्तूर भी। ननु की माँ कमल फैक्टरी गई हुई थी। और दादी, दादा भी घर से दूर किसी मंदिर में प्रवचन सुनने गए हुए थे।

ननु घर में अकेली थी। बिल्कुल भी अकेली तो नहीं कह सकते। फिर भी गुड्डी दीदी की निगरानी में ननु कभीकभार अपनी मन मर्जी भी चला ही लेती थी।

बस वैसे ही अपने स्टडीरूम की बाल्कनी की रैलिंग पर बैठी ननु गार्डन में चारों तरफ फैली हरियाली की खूबसूरती का आनंद ले रही थी। तभी बारिश की बूंदें रिमझिम रिमझिम गिरने लगी। कड़कती धूप देख ननु को गरजने वाले बादल फटने का भय न लगा। और वो वहीं रैलिंग पर पैर जमाये बैठी रही।

तभी अचानक उसकी नज़र बगीचे की गिली मिट्टी पर बनते जा रहे पानी के गड्ढे पर जा टिकी। उस गड्ढे में गिरे गिलहरी के नवजात बच्चे की जद्दोजहद महेनत ने उसे भीतर से झकझोर दिया। वो फ़ौरन दौड़ी और उसे गड्ढे से उठा कर अपने सिक्रेट टैंट में ले गई। और उस गिलहरी के बच्चे को अपने सूखे टर्किश नैपकिन से पोछने लगीं।

पहलेपहल तो वो नन्हा सा गिलहरी का बच्चा घबराने लगा। और हैरतअंगेज निगाहों से ननु को देखते हुए छटपटाने लगा। पर ननु को उसकी देखभाल करते देख वह निश्चिंत हो गया। और उसने ख़ुदको सुरक्षित हाथों में देख सुकूनभरी गहरी सांस ली।

 ननु को गिलहरी के बच्चे के अधखुले मुँह को देख उसकी एवं खुदकी भूख का एहसास हुआ। ननु ने इधर उधर नज़र घुमाई पर उसके सिक्रेट टैंट में कुछ भी न मिला। उदास मन से ननु का चहेरा रुंआसा हो गया। तभी उसके नन्हें से दिमाग की बत्ती लपक झपक, लपक झपक करने लगी। उसका चहेरा चाँद देख मुस्कुराती कुमुदिनी सा खिल गया।

 ननु ने एक हाथ से गिलहरी के नन्हें बच्चे को कस के पकड़ा और दूजे हाथ से अपनी हैंड बैग टटोलने लगी। नौ साल की नन्हीं सी ननु के हाथ भी तो नन्हें ही थे। जो बैग को टटोलने में छोटे पड़ रहे थे। फिर भी उसने तनतोड़ मेहनत की। और तभी कुछ कड़क चीज़ उसके हाथ लगी। खुशी खुशी ननु ने वो चीज़ को अपनी नाजुक उंगलियों से बाहर निकालने का प्रयास किया। पर नन्ही हथेलियों से उस वस्तु पर की पकड़ मजबूत न हो पाई। और वो वस्तु फिसलकर बैग के दूसरे कोने से टकराकर अंतिम छोर में जा चिपकी।

एक ही हाथ से काम ले रही ननु का नन्हा सा हाथ दुखने लगा। हाथ को दूसरी ओर झटककर ननु ने पापा जैसी स्टाइल में ही 'उफ्फ्फ' कहा। और खुद से ही खुद पर हँस दी। ननु को हँसता, मेहनत करता देख वो गिलहरी का नन्हा बच्चा भी मुस्कुराने की कोशिश करने लगा। पर खाली पेट ने उसका साथ न दिया। और वो मुरझाने लगा।

तभी ननु ने अपनी बैग के बगल में छूट चुके कल वाले जामफल के कुछ फांहे देखें। तो उसका एक नर्म सा टुकड़ा गिलहरी के बच्चे के सामने रख उसे खिलाने लगी। गिलहरी का बच्चा उस फल के टुकड़े को इस तरह से चिपक गया, कि मानो, जैसे कोई नवजात बच्चा अपनी माँ की छाती से स्तनपान करने को उतावला हो उठा हो।

ये सब नज़ारा ननु मंत्रमुग्ध होकर देखने लगी। और उसे माँ कमल की एहमियत का कुछ कुछ अंदाज़ा होने लगा। और अपनी माँ भी याद आने लगी।

गिलहरी के उस बच्चे को 'स्वीटू' नाम से पुकारते हुए ननु उसे फल खिलाने लगी। बच्चा भी खुशी खुशी फल को चटखारे लेते हुए उसे चुसते हुए खाने में व्यस्त हो गया।

और ननु अपनी ज़िद्द को याद करके रुंआसी होने लगी। उसे रह रहकर अपनी माँ कमल की बातें याद आने लगी। चार माह पूर्व भी ऐसा ही कुछ अनबना सा हुआ था। और उसने पापा के जाने के बाद सौतेली माँ कमल को दो टूक सुना दिया था। और भूखी ही बाल्कनी में सोने चली गई थी। माँ कमल ने बहोत कोशिश की ननु को मनाने की, समझाने की। पर वह एक न मानी और रूठकर चली गई अपनी दादी के पास।

वह दादी, जिसने ननु को लाड़ लड़ाते हुए ज़िद्दी बना दिया था। कोई भी सब्जी न खाते हुए सिर्फ आलू ही खाती रहती। और आये दिन हर दो महीनों में दवाखाने का रुख़ करवाती। दवाइयों की आड़ असर और कमज़ोरी के चलते ननु उत्साहित न रह पाती। चिड़चिड़ापन उसका बढ़ता ही चला जाता। ऊपर से पढ़ाई के बदले सिर्फ और सिर्फ कार्टून चैनल देख देख कार्टून कैरेक्टर 'शिन शेन' सा व्यवहार करने लगती। उल्टे मुँह जवाब देना, बदतमीज़ी करना आम बात हो गई थी।

एक दिन तो हद ही हो गई। ननु ने दादी के घर में टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलना शुरू किया। और तीसरे या चौथे बॉल में ही हॉल में रखा टीवी स्क्रीन तोड़ दिया।

दादी ने झपाक से ननु की सौतेली माँ कमल को फोन पर बहोत खरी खोटी सुनाई। और नया टीवी खरीदकर देने की डिमांड भी की। पर ननु को एक शब्द भी नहीं सुनाया। (ताकि ननु के मन से उसकी दादी का मोह चकनाचूर न हो जाये। और अगर गलती से कमल ने कुछ कह दिया, तो, वो सौतेलेपन के लेबल से एक और बार चिपका दी जाएगी।) जिससे ननु की शह बढ़ती चली गई।

और शिष्टाचार सिखाती माँ कमल सौतेली पोर्ट्रेट होने लगी। दूसरी ओर दादी का पूजा पाठ उसे अखरने लगा। और उसीके चलते ननु प्रभु भक्ति से चिढ़ने लगी। अपनी जिद्द पूरी करने के लिए कोई भी हद तक गुजरने लगी। फिर चाहे वो फल सब्जी खाने की बात हो या आइसक्रीम न खाने की बात हो। मन में आया कि वो तुरंत 'पूरा होना ही चाहिए' का आलाप बजाने में कोई कसर बाकी न रखती ननु। और जिद्द पूरी न होने पर उधम भी मचाती। इतना की, सामनेवाला उसके सामने घुटने टेकने पर मजबूर हो जाये।


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