Kamini sajal Soni

Abstract

4.5  

Kamini sajal Soni

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कर्म क्षेत्र

कर्म क्षेत्र

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कुछ दिन इंतजार कर लो

घर बैठकर सुकून से

अपनों के साथ

बिता लो लम्हे प्यार के

खुशनुमा हवा का झोंका

आएगा खुशियों के संदेश लेकर

आजादी फिजाओं में

फिर सर उठाएगी।

रोज वही सुबह का अलार्म बजना.....निशा को उसे बंद करना पड़ा फिर से वही अलार्म बज उठा आखिरकार निशा को उठना ही पड़ा।

जब से निशा का सुबह-सुबह पार्क जाना बंद हुआ तब से वह घर पर ही वर्कआउट करती लेकिन उसमें इतना आलस भरा होता कि उसको अपने आप को उठाना बहुत मुश्किल होता।

बच्चों के स्कूल जब खुले रहते थे तो अचानक ही आंखे 6बजे खुल जाती और भागते दौड़ते हुए बच्चों का एवं पति का टिफिन बॉक्स तैयार करती।

फिर धीरे-धीरे बच्चों को प्यार से जगाना उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना तथा पति नीलेश को भी उठाकर तैयार होने के लिए बोलना फिर चाय चढ़ाना ....उफ कितने काम होते थे सुबह से ........आलस्य तो जैसे चुटकियों में काफूर हो जाता ।

निशा के पति नीलेश स्कूल में म्यूजिक टीचर हैं तथा उसी स्कूल में बच्चे भी पढ़ने जाते तो तीनों ही एक साथ निकलते तीनों का एक समय .....एक साथ जाना निशा को काफी भागदौड़ हो जाती थी सुबह से।

फिर कुछ ही घंटों बाद निशा को बेचैनी से इंतजार रहता है कि कब नीलेश स्कूल से उसको फोन करें ।

सुबह अलसाई हुई निशा उन दिनों को याद कर सोच रही थी इंसान मन भी कैसा है जब उसको पूरी आजादी मिलती है तो उत्साह खत्म हो जाता है और जब बंधन रहता है तो उसे आजादी का इंतजार रहता है और जैसे हर कार्य को पूरा करने का जुनून सर पर सवार रहता है।

अब अलसाई हुई निशा काफी हद तक सूक्ष्म व्यायाम से अपनी नींद दूर कर चुकी थी उसने फटाफट अपना वर्कआउट पूरा किया और शुरू हो गई इन खूबसूरत लम्हों को बच्चों के और पति के साथ मिलकर और खूबसूरत बनाने के लिए।

क्योंकि इस संकट की घड़ी में हर स्त्री की जिम्मेदारी भी तीन धूरियों पर सिमट गई है

अपने परिवार को हर संकट की घड़ी से बचा कर रखना

अपने परिवार के हर सदस्य के जीवन को खुश और सभी के स्वास्थ्य की रक्षा करना

परिवार में अध्यात्म और शांति का वातावरण बनाए रखना जिससे सभी को मानसिक संबल प्राप्त हो एवं इस संकट की घड़ी में सभी धैर्य से काम ले।

हर पल हर क्षण अपनों के साथ

रहने का जश्न जो मनाना है

इस खुशनुमा जिंदगी को

यादगार जो बनाना है।

अपनों के साथ ही तो जिंदगी का जश्न पूरा होता है जश्न कभी अकेले तो नहीं मनाया जाता। और जब सब साथ हैं इन कठिन मुश्किल की घड़ी में तो क्यों ना इनको यादगार बना ले यह सोचते हुए वह चल पड़ी अपने कर्म क्षेत्र की ओर।


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