"कोरोना लाॅकडाऊन-2"(आपबीती)
"कोरोना लाॅकडाऊन-2"(आपबीती)
अभी सुबह के 6:45 हो रहे है। ये देर रात पहुंचे और आज सुबह 8 बजे का MRI को जाना है। इन्होने वहीँ से सब इन्तेजाम कर लिया था। बेटा आज जल्दी उठा है और पापा के साथ साफ सफाई मे लगा है , मम्मी जी किचन मे हैं। वे रिलैक्स हैं , खुश हैं की उनका बेटा सकुशल फिर घर पर है।अभी इसी मंडे मॉर्निंग वापस अपनी पोस्ट पर गये थे। तब भी दर्द था पर दवा ले रही थी और तब दर्द इतना बुरी तरह नहीं बिगड़ा था। पर मुझे इनको घर के काम करता देख अच्छा नहीं लग रहा। ठीक से सोये भी नहींं हैं और मैं बेबस पड़ी हुई तुमसे मुखातिब हूं।ओके, ये आ रहे हैं, बाद मे मिलती हूं।
घड़ी 11:15 दिखा रही है , मैं फिर बैड पर हूं। MRI की रेपोर्ट कल मिलेगी। पौने आठ बजे जब निकले तो मम्मी जी ने सेनिटाइज़र, मास्क दिया और हिदायत दी की हमारे आने पर अगर वो रामायण पढ रहीं हों तो खुद ही जूते चप्पल बाहर उतारना, सीधे बाथरूम जा कर कपड़े मशीन मे और अच्छे से नहा कर ही बाहर आना, वो साफ कपड़े वहाँ रख देंगी। हम कार से जैसे कॉलोनी मे निकले देखा हमारी पूरी कॉलोनी के अन्दर सन्नाटा था मगर जैसे ही हम कॉलोनी से जरा बाहर आये लोगों को मास्क लगाये पैदल, बाइक, कार मे देखा। मेन रोड पर आये तो देखा, देवी मन्दिर के बन्द कपाट के बाहर काफी लोग पूजा अर्चना मे हैं, फलों सब्जियों की दुकाने खुली थीं और लोग बस घुस-घुस कर सब्जियां देख, ले रहे थे। जब हम मेन मार्केट पहुंचे जहाँ हमे पहुंचना था वहाँ और दिनो के मुकाबले 20% भी लोग नहींं थे ।लगभग सब दुकाने बन्द थी, मैडिकल स्टोर खुले थे , पैट्रोल पम्प पर 1-2 लोग कुर्सी डाल कर बैठे थे। जब कोई आ रहा था तो काम पर लग जा रहे थे। एक जगह डेयरी के बाहर जमीन पर गोले बने थे उसमे लोग खड़े थे एक औरत बीच मे आकर डेयरी वाले से दूध को कह रही थी मगर डेयरी वाले ने उसे पीछे गोले मे खड़े होने को कहा।ये देख कर ये मुस्कराये। बहुत अच्छे लगते हैं ये जब मुस्कराते हैं। खैर धनवंतरि स्कैन सेंटर पर मेन गेट पर एक आदमी सेनिटाइज़र की स्प्रे बोत्तेल ले कर खड़ा था।
उसने हमारे हाथ पर खूब स्प्रे किया।हम अन्दर गये। मरीज कम थे लेकिन सबको रिशेप्शन वाले बार बार दूरी बना कर बैठने को टोक रहे थे। सबने मास्क पह्ने थे। मुझे भी इनसे कुछ दूर बैठने को कहा। मेरा पहला नम्बर था । मुझे फिर दूसरी बिल्डिंग( जहां MRI होना था) मे जाने को कहा जो कुछ दूर थी । हम बाहर आये तो फिर स्प्रे हुआ । हम जब दुसरी बिल्डिंग मे पहुंचे तो फिर हमे सेनिटाइज़ किया गया। मेरे सारे गहने उतरवा दिये। जब नाक की लौंग और बिछिया उतारने को कहा गया तो मुझे अच्छा नहीं लगा। लौंग इन्होने जबसे दी थी तब से मैने कभी नहीं उतारी थी और बिछिया ये तो किसी भी सुहागन की मरते दम तक नहीं उतरती न ? हम सुनार के यहाँ भी, जब नयी भी लेते हैं तो दोनो पैर खाली नहीं होने देते। रोना सा आ गया था। पर इन्होने खुद मेरे पैरों से दोनो एक साथ निकाल कर जेब मे बाकी समान के साथ रख ली थीं।फिर मुझे एप्रेंन पहनने को बोला मगर वे सब कौल्लर से गंदे थे, मैने मना दिया और अपने साफ धुले कपड़े बिना अन्त: वस्त्रों के ( बहुत ही गन्दा सा लगा पर मरीज की नहीं चलती) पहने ही मुझे MRI मशीन के लिये तैयार किया गया । " जरा भी मत हिलना " निर्देश मिला । कान मे हेडफोन जैसा पहनाया गया, दोनो पैरों को खींच कर एक स्तिथि मे किया।दर्द हुआ था पर फिर मेरे शरीर को एक बेल्ट से बांध दिया की मैं हिलू न। फिर मशीन ने मुझे अंदर लेना शुरु किया, डर के मारे मैने आँखें बन्द कर लीं। मशीन तीन चार तरह की जोर जोर आवाजें करती बडी डरावनी महसूस हो रही थी। मैं चुपचाप बस वैसे ही पड़ी रही।कमर मे हल्का दर्द बढ़ रहा था।कुछ टाईम उसमे रह्ने के बाद मशीन ने मुझे फिर बाहर किया। इस बार कोई और आया और मुझे फ़्री किया।
जब हम लौट रहे थे तो 10:05 बज गया था ।लौटते समय देखा ज्यादातर लोग सड़क से नदारद थे। पोलिस का सायरन बज रहा था। डेयरी बन्द हो गयी थी। सिर्फ रस्ते मे छोटे मोटे मैडिकल स्टोर खुले थे। रोड पर कभी कभी एक दो लोग अपनी अपनी कॉलोनी मे जाते दिख रहे थे। हम अपनी कॉलोनी के जैसे जैसे करीब आ रहे थे सड़कें और सूनी होती जा रही थीं । कॉलोनी के पास की रोड पर सब्जी और फल की दुकाने सब बन्द हो गये थे। हम कॉलोनी मे आये तो देखा छतों पर धुले कपड़े डले हुए थे।
दोपहर के 2:00 बज गये हैं । कोरोना से एक ये चीज भी हुई है , घर मे आज और परिवारों की तरह हम सब भी साथ हैं।खाना खाने के बाद बेटा, मम्मी जी और ये बगल के कमरे मे साथ बैठ कर अपनी पुरानी जाने कब-कब की बातें कह रहे हैं । बेटा " हैं ?!!! दादी जी ऐसा भी करते थे पापा? पापा?!!! आप तो बहुत नौटि थे फिर तो !!" कह कर हैरानी जता रहा है और दादी और ये हँस रहे है। अच्छा सा लग रहा है ।जब से इनकी जौब दूसरे शहर लगी है ये प्यारा सा माहौल अब अक्सर 15 दिन या एक महिने मे ही मिलता है, किस्मत मेहरबां तो हफ्ते मे भी, इस बार जरा जल्दी , मेरी तकलीफ की मेहरबानी से। मां कहती थी की गौर करोगी तो हर दुख के साथ एक सुख की झलक भी होती है , कभी स्पष्ट कभी अस्पष्ट।सच लग रहा है।
शाम होने वाली वाली है अभी 3:45 हुआ है ।बेटू भाग कर मेरे पास आया था ।बहुत एकसाइटेद हो कर बता रहा था की कॉलोनी मे कुछ लोग आये है ।खिड़की दरवाजे बन्द करने को कहा है।दवा का छिड़काव होगा हर एक कार मोटर सायकिल गेट पर ।सबने " टी वी " वाले ( टी वी मे दिखने वाले) मास्क पह्ने हैं।कह कर वो वापस भाग गया।मेरा बड़
ा मन था कि मैं भी देखूं ।मैं धीरे से बिना आवाज के उठी भी थी , थोड़ा पैर मे खिंचाव सा हुआ था लेकिन सच बड़ा मन था पर पता नहीं कैसे इनको भनक लग गयी इस से पहले मैं अपने रुम से बाहर आती ये चले आये और डपट दिया " क्या बच्चों की तरह , चुपचाप लेटी रहो। " अब लेटी पड़ी हूं। अब थोड़ा मेसेज चैक कर लूँ। लेटे-लेटे मोबाइल पर यही हो सकता है ।
अभी सिर्फ शां के 4 ही बजे हैं । अब और भी बुरा लग रहा है , इनको वर्क फ्रॉम होम की मंजूरी मिली थी पर कीसी ने ऑब्जेक्शन कर दिया है सो एडिटर ने काल कर ब्यूरो सेंटर पर ही अपने रुम पर रह कर कवरेज करने को कहा है। इन्होने लीव अप्लाय कर दी है, कह रहे थे की कल कम से कम MRI की रेपोर्ट तो ले लूं, आगे क्या कर सकते हैं ये तो पता चले। पर मम्मी जी बहुत गुस्सा हो रही हैं। बता रहीं हैं की आज सुबह जब हम MRI कर रहे थे तो मम्मी जी को जेठ जी का फोन आया था। वे भी कोरोना संकट मे "अनिवार्य सेवा" मे हैं, मैडिकल डिपार्टमेंट मे हैं । जेठानी जी बता रहीं थी की आज कल वे देर रात आते हैं। घर मे आने से पह्ले पूरी ड्रिल्ल होती है। अब उनको सस्पेकट के साथ काम करने को कहा गया है । मम्मी जी कह रही हैं की वे 'सतमासी ' हैं ( प्री मेच्योर डिलीवरी हुई थी) उनको संक्रमण जल्दी पकड़ता है ।हमेशा कुछ न कुछ छोटी मोटी बीमारी लगी ही रहती हैं। इस वक्त 50 के करीब हैं , हाई बीपी और सूगर के पेशेंट हैं पर मना नहीं कर सकते।नवरात्रि के सारे व्रत भी रखते हैं , अभी भी उठाये हुए हैं । मम्मी जी दुर्गा जी के आगे हाथ जोड़े हुई हैं ।" मैया रक्षा करना दुन्नो बेटा पर हाथ रखना"। यार !!अचानक घर का अजीब सा माहौल हो गया है। अब बाद मे लिखुंगी।
मोबाईल पर अभी 4:50 दिख रहा है और अभी whatsapp पर मेरी परिचित ने एक लिस्ट भी भेजी है जिसमे हमारे जिले के संदिग्धों की लिस्ट है। उसमे हमारी कॉलोनी के आस पास काफी लोग हैं और सबसे डरावनी बात ये की एक ठीक मेरे सामने वाली लेन मे है। और आज सुबह जब हम MRI के लिये गये थे मेरा बेटा उसी के पास की दुकान से मैगी लेने गया था। ईश्वर बहुत बुरे-बुरे खयाल आ रहे ।
शाम 7:46 पर बहन का जापान से फोन आया था ।मेरी सूरत देखते ही बोली " क्या हो गया?", फिर सब जान कर बोली" कुछ नहीं होगा; तुम सबको वैसे भी प्रीकौशन लेना चाहिये जब तक वो बन्दा क्लियर नहीं होता।ज्यादातर तो क्लियर ही हो रहे इंडिया में। रिलैक्स करो"। पता नहीं क्यूँ वो जैसे बोल रही थी लगा मेरी मां बोल रही है।दिल थोड़ा संभला सा लगता है।
रात के 8:17 हो रहे हैं । नीचे के फ्लैट मे रहने वाली बच्ची हमारी प्लेट लौटाने आई थी।बेटे ने कहा तुम नीचे रख दो हम ले लेंगे।बोली प्रसाद है, एसे नहीं लेते।बेटे ने उसे कहा तुम अब बाहर मत निकलो, एक सस्पेक्ट अपनी कॉलोनी मे है। वो बोली उन्हे तो पहले से पता है तभी तो वो नहीं जा रही कहीं भी ।अभी बेटे ने मुझे जोर से बोल कर बताया है की माँ देख लो सबको पता था हमे ही नहींं। हे ईश्वर!
8:40 पर वाट्स एप्प मे एक सीनियर ने लिस्ट भेजी है वहटसप्प पर आस पास की ग्रोसरी स्टोर की जो सरकार के आदेश पर होम डेलीवरी करेंगे। ये पहले नहीं हो सकता था क्या ?
9:00 की न्यूज़ लगायी हैं मम्मी जी ने ।पर अब टीवी सुनने का मन नहींं हो रहा। अभी WHO ने कहा की सिर्फ लोकडाउन से कुछ नहीं होने वाला। ईश्वर मेरा डर बेमतलब निकले।ये कोरोना खुद ही खत्म हो जाय प्लीज।
रात के 10:18 हो गये हैं पर मेरे मन से नेगेटीवीटी नहींं जा रही, एक दो जगह मीडिया प्लेटफॉर्म पर कुछ लिख दिया है, और किस से शेयर करूं। तुम भी तो सिर्फ सुनती ही हो, जवाब तो देती नहींं कभी। तुमको बोलने वाली डायरी होना चाहिये था। बेकार अपनी लिखे जा रही हूं ।
सो सॉरी डीयर, अभी 10: 30 हो रहा है , पर लग रहा है कितनी देर हो गयी है । पर फिर से सॉरी, मन ठीक नहीं है, मेरे साथ ऐसा ही होता है। जब मन ठीक नहीं होता तो तुमपर कुछ भी लिख देती हूं, फिर से सॉरी। यार, मेरे बहुत से वहटसप्प ग्रुप और फेसबूक पर कोरोना से रीलेटेड बहुत सारे मेसेज शेयर हो रहे हैं, ज्यादातर डरा ही रहे हैं मगर लोगों की चेतावनी और एक्सपेरियेंस के वीडियो मेसेज देखे बिना नहीं रह पा रही। फेसबूक पर इनके एक वाइल्ड लाइफ गुरू हैं , मेरे फेसबूक फ्रेंड भी हैं। उनकी एक पोस्ट देखी, लिखा था की भय की बातें बार-बार देखने सुनने से एक सम्मोहन हो जाता है और व्यक्ति भय से ही जुड़ी चीजें देखने लगता है और उसी से मर जाता है, जबकी उतना भयाक्रांत होने की जरूरत नहींं होती। और भी अच्छी बातें थी, मेरी एक वैसी ही कोरोना से मेरे डर की पोस्ट पर उनकी पॉजिटिव टिप्पणी भी थी।पढ कर अच्छा लगा। और अभी एक वाट्सअप ग्रुप मे आये एक मेसेज से जरा हंसी सी भी आई है।अरे हाँ! एक बात बताना तो भूल ही गई। एक सोशल प्लेटफॉर्म पर मेरी 'क्षणिका' को फ़र्स्ट प्राइज़ मिला है वो भी इंग्लिश लैंग्वेज मे!!
11:20 हो गया है, सब जगह खामोशी ही खामोशी हैं। बेटा दादी सो गये हैं और अब ये भी आ गये हैं। दवा दे कर कह रहे हैं की" मैं ज्यादा सोचना बन्द करूं नहीं तो मन से बीमार हो जाऊंगी, कुछ भी बुरा नहीं होगा।" जब भी ये ऐसा कुछ कहते हैं तो भरोसा होता है और हाँ ये बहुत अच्छा गाते- गुनगुनाते भी हैं तो आज फिर से फ़रमाइश करूंगी , पता है मुझे, पूरी ही होगी। अब उम्मीद हो रही है की अच्छे से सो पाऊंगी।
चलो फिर, गुड नाइट डीयर, अब कल मिलते हैं।