किसान
किसान
बादलों में टकराव हुआ, घड़घड़ाने की आवाज सुनकर विश्वेश्वर जी ने आकाश की तरफ गौर से देखा, क्योंकि ऐसा तो लगभग दो दिन से हो रहा था, बादल घीर कर और टकराकर भी बिना बरसे हुए ही रह जा रहे थे।
अब विश्वेश्वर जी, आकाश की तरफ देखना बंद करके अपने काम में व्यस्त हो गए। घर के बाहर बगीचे में आम का पौधा लगाने के लिए गड्ढा तो पहले ही खोद चुके थे, आम के नन्हे पौधे का गड्ढे में डालने से पहले उन्होंने धरती माँ को नमन किया और आहिस्ते-आहिस्ते उन्होंने पौधे को खड़ा कर गड्ढे में मिट्टी भर दी।
बहुत देर से अपने पिता को देख रहा मोनु ने उत्सुकता वश पुछा ’’ बाबू जी ये क्या कर रहे हैं ? ’’ मोनु की तुतलाती बालपन की आवाज को समझकर उन्होंने जवाब दिया ’’ बेटा मैं आम का पौधा लगा रहा हूँ।
’’ इससे आम निकलेगा पत्ता पत्ता ? ’’
’’ हाँ बेटा पका पका। ’’
’’ खेत में तो आम के उतने सारे पेड़ हैं, फिल क्यों ? ’’
’’ वहाँ भी आम फलता है और यहाँ घर के पास भी आम फलेगा। तुम आम खाने उतनी दूर मत जाना। यहीं खा लेना। ’’
’’ चार दिन में इस से आम निकलने लगेगा ? ’’ बच्चे की उत्सुकता बढ़ती गई।
’’ नहीं नहीं बेटे, चार-पाँच साल लगेंगे, तब तक तुम और बड़े हो जाओगे, पत्थर मारकर तोड़ कर खा लिया करोगे। ’’
एक दिन विश्वेश्वर जी थके-हारे घर आए और आँगन में रखी चारपाई पर पसरते हुए आवाज लगायी ’’ गुणीया। ’’ विश्वेश्वर जी के चेहरे पर उदासी के बादल छाए नजर आए। चेहरा देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि कई दिनों से हँसे न हों और आगे भी कई दिनों तक उनके हँसने का काई इरादा न हो। गुणीया ने पानी बढ़ाते हुए पुछा ’’ मोनु के पिताजी, का हुआ ? आज चेहरा उतरा-उतरा काहे है ?
’’ कुछ भी तो नहीं। ’’ बोलकर विश्वेश्वर जी एक गिलास पानी एक ही बार में गटक गए।
’’ बोलिए न, सब ठीक तो है न? ’’ पत्नी के इस बार पुछने पर भी विश्वेश्वर जी ने ’’ ना ’’ में सिर हिलाया।
नन्हा मोनु जब सामने आया तो विश्वेश्वर जी एकटक निहारने लगे, मोनु ने कहा ’’ बाबू जी, हम आम के पौधे में कल भी पानी दिए थे और आज भी दिए पानी। ’’ भोली सी बात सुनकर विश्वेश्वर जी फीकी सी हँसी चेहरे पर बिखेरकर अपनी जेब से आइ आना निकालकर मोनु को देकर कहा ’’ जा बेटा , चॉकलेट खा लेना। ’’ मोनु ने आठ आना को उलट पलटकर देखा और खुश होकर दुकान की तरफ दौड़ गया।
विश्वेश्वर जी फिर उदास होक कुछ सोचने लगे तो उनकी पत्नी ने फिर झकझोर कर पुछा ’’ बताइए न बात का है? ’’
’’ का बताएं मोनु की माँ, बूंद बूंदी भी बंद, सरकार भी शांत-चुप और महाजान सिर पे चढ़ बैठा है, क्या खाक अच्छा होगा ? ’’ गुणीया ने सिर दबाते हुए कहा ’’ भगवान सब ठीक कर लेंगे। भगवान हम लोगों की परीक्षा लेते हैं और हमारी मदद भी करते हैं। ’’
’’ ठीक कहती हो, एक भगवान का ही तो सहारा है, भगवान अगर चाहे तो अच्छी बरसात में, महाजन के सारे कर्ज चुका दूंगा। सरकार का ध्यान जब जाए तब जाए। ’’ बोलकर विश्वेश्वर जी चारपाई से उठे और चौपाल से पे चले गए।
’’ का हो गिरिधारी काका, तबीयत पानी कैसन है? ’’ विश्वेश्वर जी ने आते-आते यह प्रश्न किया तो गिरिधारी काका ने कहा ’’ आओ बैठो बचवा, तबीयत पानी की क्या पुछते हो ? जैसन थी, वैसी ही है, न सुधरी है और न ज्यादा बिगड़ी है। ’’
’’ दवा-सुइया कराए कि नहीं ? ’’
’’ आधी खुराक ली थी, अब उमेशवा बोलता है कि रूपए नहीं हैं। सब्जी बेचकर थोड़ा बहुत खाने भर हो जाता है। ’’
’’ सही कहते हो काका, फसल का बहुत बुरा हाल है, कुछ अच्छा कहा क्या, सोचा भी नहीं जा सकता। ’’
मुकरू न बात काटते हुए कहा ’’ नहीं विश्वेश्वर भइया, सुना है, नई सरकार हम किसानों के लिए बहुत सारी योजनाएं बना रही । ’’
’’ हाँ, बना तो रही है, मैं भी तो यही सुन रहा हूँ । सरकारी काम, और वो भी इतनी जल्दी ? का बात करते हो मुकरू भइया। ’’ विश्वेश्वर ने गमछी से पसीने से लथपथ चेहरे को पोंछते हुए कहा ’’
धीरे-धीरे मोनू भी बड़ा हुआ और आम का पेड़ भी। जबसे वो पौधा लगाया गया था, रोज मोनु पानी डालता, बकरीयों से और गायों से बचाता था।
पौधे के पेड़ बन जाने पर वो रोज उसकी छाँव में खेलता था, दोस्तों को आम के पौधे लगाए जाने के समय की सारी भावनाओं को बताता था। एक दिन मोनु को उसके दोस्तों ने कहा ’’ हमको भी देगा न आम खाने ? ’’
’’ हाँ हाँ, क्यों नहीं दूंगा, आम खाने की चीज है। ’’ मोनु ने अपने दोस्तों से मासूमियत भरे अंदाज में कहा।
मंजरी खुब आए, आम हर डाल की शोभा बढ़ाने लगा। मोनु का एहसास खुशी के मोर दस गुणा हो आया। इधर चिन्ता ने विश्वेश्वर जी को बीमार कर दिया, कभी-कभी तो खुद में भी बड़बड़ाने लगते। गुणीया के समझाने से बाहर की बात हो गई तो, उसने बिरादरी वालों से जाकर कहा।
गिरीधारी काका ने समझाते हुए कहा ’’ चिन्ता तो किसी बीमारी का इलाज नहीं हे, का हुआ चिन्ता से, भुरंगवा का प्राण चला गया। ’’
बुधीया काकी ने भी समझाते हुए कहा ’’ हाँ बेटवा, तुम्हारे काका ठीक कह रहे हैं, बहुत शरीर धंसा लिए हो, फिकर मत करो, जो होगा सो अच्छा होगा। ’’
मुकरू ने समझाते हुए कहा ’’ का करते हो विश्वेश्वर भइया, दूसरे जिले की पंचायत में सरकारी सहायता मिलना शुरू हो गया है। तनीक सबर करो भइया। ’’
विश्वेश्वर जी ने कहा ’’ ठीक कहते हो चिन्ता ठीक नहीं है, लेकिन का करूं, चिन्ता आ ही जाती है। ’’ समझा-बुझाकर सारे लोग अपने घर चले गए।
मोनू ने कहा ’’ बाबू कल आम तोड़वा दोगे न ?’’
’’ हाँ हाँ बिटवा, दिनशु को बुलवाया है। ’’
गुणीया अपने पति को पंखा झलने लगी और मोनु भी कुछ देर तक सिर दबाता रहा। गुणीया और मोनु सो गए, मगर विश्वेश्वर जी की आँखों ने नींद गायब थी, सारी रात सोचते रहे। सुबह जब गुणीया ने दरवाजा खोला तो देखा कि आम के पेड़ पर लटके हुए हैं। मोनु को आवाज देने के साथ ही बेहोश होकर गिर गई।
मोनु ने आम के पेड़ से उतरी पिता की लाश से लिपट कर कहा ’’ बाबू इसी लिए आम का पेड़ लगाया था आपने ? आपने अपनी फाँसी का सामान तैयार किया था ? ’’
मोनू मरी मरी सी आँखों से अपने मृत पिता जी को देखता रहा।
माँ को दिलासा भी देता रहा। क्रियाकर्म खत्म हो जाने के बाद, बड़े ही गुस्से में कुल्हाड़ी ले जाकर बड़बड़ाया ’’ इस आम में मीठास नहीं कड़वाहट है। इसी ने मेरे पिताजी को मुझसे छीना है। ’’ आस-पास जमा हुए लोग, मोनू को समझाने लगे, उसने गुस्से में आकर कुल्हाड़ी का एक वार किया और खुद ही पेड़ को अपनी बाँहों के पाश में बांधकर ’’ बाबू जी, बाबू जी। ’’ बोलकर फुट-फुट कर रोने लगा।
समप्त