कीचड़ में कमल

कीचड़ में कमल

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साड़ी का खूँट पकड़कर बेटा मुझसे हठ करने लगा, “अम्माबताओ न कीचड़ में क्या खिलता है ?

“चल हट,अभी तंग मत कर। देख ऊपर, कितने घने बादल हैं जोर से बारिश आने वाली है। जल्दी-जल्दी धान का बिचड़ा लगाकर घर जाना है न। तुझे सब मालुम है कल से घर में चूल्हा नहीं जला है। क्या पता इंद्र देव आज भी कुपित हो जाएँ ? ओले बन कहर बरपायेंगे तो खाना-पीनारहना, सब दूभर हो जाएगा ! घर पहुँचते-पहुँचते अगर जलावन सूखी नहीं बच पाएगी तो फिर कल की ही तरह, सत्तू खाकर दिन काटना पड़ेगा ! और इधर, बेचारे इन बिचड़ों को जो बुरा हाल होगा वो भगवान ही मालिक हैं !”

“अम्मा पहले मुझे बताओन ?”

“तू भीसच मेंबड़ा जिद्दी है। बिना बताये कभी मानता कहाँ ! बेटा, कीचड़ में बिचड़ों का मुस्कुराना, मेरे मन को बहुत सुकून देता है। रेतू क्या समझेगाअभी ! देख इसे, इसी तरह अबोध जो है !"

धान के बिचड़ों को कीचड़ सने हाथों से सहलाते हुए मैं मुस्कुराकर बोली।

“पर, अम्मा किताबों में तो यही लिखा है किकीचड़ में कमल खिलता है।” “पढ़ा होगा तू ! जिस किताब की बात तू कर रहा हैनवो भाषा मुझे नहीं सुहाती ! भूखे पेट कीचड़ में कमल नहीं मुझे, धान की बालियाँ ही लुभाती है।


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