Hardik Mahajan Hardik

Abstract

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Hardik Mahajan Hardik

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ख़्यालों में

ख़्यालों में

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ख़्यालों में तेरे रात दिन सोचता हूँ, कैसे इस पल में मैं..जीयूँ कैसे इस पल में मैं...जीवन अपना बजाऊँ।

सुबह सवेरे सूरज की किरणें, शाम को ढ़लता सूरज, रात को चाँद सितारें से मैं...अपना हाल पूछता, हर वक़्त यहीं सवाल करता हूँ। कैसे अपनी दिनचर्या मे निखार लाऊँ। कैसे अपनी गतिविधियों को शत प्रतिशत अपने ढँक से निहारूं।

वक़्त के आगोश में खोया रहता हूँ, ख़्वाब,ख़्वाहिश,बस अपनी लेकर काफी देर तक सोचता हूँ, किस तरह से मैं अपने ख़्वाबों ख़्वाहिशों को पूरा करूँ।

आधा नहीं तो पूरा भी नहीं, बस अपनी गतिविधियों को गतिशील करूँ। प्रेम के आभाव में, हृदयाघात इस जीवन में मैं... "हार्दिक" अपना हर एक पल मे निरन्तर प्रयास करूँ।

हर समय हर वक़्त, बस अपने अभाव में जीयूँ, ज़िन्दगी के हर इक पल मे निहितार्थ अपनी गतिविधियों को गतिशील करूँ।


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