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Hardik Mahajan Hardik

Abstract

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Hardik Mahajan Hardik

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रिश्तों की हकीकत

रिश्तों की हकीकत

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जुबां को रोक सकता है पर कलम को नहीं नहीं सुनेगा तो यही कलम तुझे उंगलियों पर नचायेगी, दो कमरे में रहने को मजबूर करोड़ो की जमीन होते सोते जी रहें है

 हम डर- डर कर कैसे रह रहे है, हम हमारी ही जमीन कब्जे में करोड़ो का आशियाना बनाया है, जरा भी दया नहीं तुझ जैसे बत्तमीज इंसान को एक दिन घर तेरा बुलडोजर ढहाएगा,

तू देख तमाशा अब मेरी कलम का कुछ पल में ही तुझे सबक सिखायेगा हमें ऐसे घर में रहने को मजबूर किया है ना, अब तू ऐसे घर में एक दिन रहने को मजबूर होगा, अरे रुक ना सुन यह तो सिर्फ ट्रेलर है, पिचक्कर अभी बाकी है, यह कहानी अभी आधी हैं.......

कहना आसान है पर जब सच्चाई दुनिया के सामने हो तो मुंह छिपा पाना नामुकिन है, करोड़ो का खर्च करना तुम्हारा जायज़ है, तो सुन यह भी किसी कलमकार से कम नहींं हैं...

आधी हकीकत आधा फसाना अभी तो बस यह छोटी कलम से समझाना, सड़क किनारे खुले आसमां ज़मीन के बीच दुकान लगाना उठा कर पीठ पर सामान लाना लेके जाना शर्म कर चुल्लू भर पानी में जा कर डूब मर कही तू 

अपना होकर ही अपनो के साथ दगा करता है, लालत है ऐसे रिश्तों पर जो जमीन हड़प करके बैठा है, धिक्कार है ऐसे लोगो पर जो खुद दो दो करोड़ के बंगले में रह रहा है,

इसे तो डिलीट करा देगा पर सुन चल कोई फर्क नहींं पड़ेगा पर तू उस पुस्तक से कैसे डिलीट करेगा जो आज लाखो लोग पढ़ रहे है, हमारी तकलीफ समझ रहे हैं।

तेरे मारने की धमकी भी अब कोई काम की नहींं यह तो एक सच्चाई है, झूठा किस्सा तेरा तेरे बोले अपशब्द सबकुछ एक पुस्तक में उकेरे है, जो आज दुनिया को पता हैं, तेरी हर बातो का हिसाब है

रिश्तों की सच्चाई रिश्ता ही रिश्तेदारों को खाता है, डरा दबा धमका कर रखता है, अपना ही अपनो को तकलीफ देता है, पैसों से लोगो को रिश्वत देकर चुप कराता है।

कहानी अभी खत्म नहींं हुई यह अभी सिर्फ छोटा सा ट्रेलर है, पूरी पिक्चर अभी बाकी है,इतने में समझ जाये और जाग जाए तो ठीक आगे की बातें फिर मेरी एक और कलम से 

शुरुआत होती है तो खत्म नहींं, पैसे नहीं तो कोर्ट कचहरी नहीं, कलम जब चलती है तो यह रुकती नहींं,पर वो जो अपना है ना समझता नहीं कैसे रहता है एक उसका परिवार उसे दिखता नहीं अंधा है वो गूंगा बहरा है वो जो सुनकर भी कर देता है हमेशा अनसुना मेरे अपने परिवार का एक रहीस इंसान जिसे बार-बार कहने के बाद भी बस वो रहीस सुनता नहींं।

हां पता है तू पीठ पीछे गालियां देगा हिम्मत है तो बाहर उस दुनिया में आके टूटे फूटे घर में रहकर देख कैसे कोई रहता है, कैसे कोई जीता है,कैसे वो मेहनत करके दो वक्त का गुजारा करता हैं 

नहीं समझ सकता नहीं सुन सकता कोई कुछ भी कहें बस तू उसे ही चुप कराता, जब जब जरूरत पड़े पैसे की तो तेरे पास आकर ले जाते हैं।

पर तू निकम्मा गाली देकर धमका कर हमें डराता है, हां सुन थू.... है तुझ पर तेरी गद्दारी पर आज पूरी दुनिया तुझे जान जायेगी पहचान जायेगी सोशल साइट तो देखता ही होगा ना चल अब देख ले सोशल साइट में तेरा नाम पता सबकुछ है।

एक कहानी की शुरुआत जो खत्म नहींं होगा एक पन्ना पलटा तो दूसरा पन्ना शुरू होगा धीरे-धीरे सारा हिसाब होगा कोर्ट कचहरी तो नहीं क्यूंकि पैसे नहीं, पर इस कलम से ही तुझे और सारी दुनिया को सच्चाई का अंदाज़ा होगा।


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