पँखों से नहीं
पँखों से नहीं
पँखों से नहीं, हौसलों से उड़ान होती है. अगर आपमें कुछ करने की क्षमता हो, तो संसाधनों के अभाव में भी आप अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं. ऐसा ही कर दिखाया है, एक हमारे भाई यश यादव ने. जिसकी कहानी सबको प्रेरित करने वाली है...
कहते हैं कि कुछ कर गुजरने का जुनून और जज्बा हो तो संसाधन सुविधा कोई मायने नहीं रखतीं. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है के एक होनहार भाई यश यादव ने. यह कहानी एक ऐसी कहानी जिसके लेखक "यश यादव" भैया है, जिसने अपने अभावों में रहकर, अपनी भावनाओं को संघर्ष करके , संघर्ष से सफलता तक की सच्ची कामयाबी पाई है. महज छोटी सी उम्र में उनकी "माँ" को कड़ी धूप में कड़ी मेहनत और साफ-सफाई का काम करना पड़ा.
महज कुछ समय भाई को सहयोग उनकी "माँ" ने किया, क्योंकि उनकी "माँ" उनकी पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकती थी. इसलिए छोटी सी उम्र में "माँ" के साथ मेहनत मजदूरी कर "यश यादव" भैया को छोटी सी उम्र में बहुत कठोर कदम उठाना पड़ा. "माँ" ने बेटे को अच्छी शिक्षा ही नहीं दिलवाई बल्कि एक अच्छा इंसान बनना भी सिखाया.
"माँ" ने उसे अभावों से लड़कर अपनी मंजिल हासिल करने की सीख दी और आखिरकार वह दिन आ ही गया जब उनका बेटा आज अपने पैरो पर अपनी मेहनत से खरा उतर आया।
