सोच रहा हूँ.....
सोच रहा हूँ.....
"कुछ कमी रह गई मुझमें शायद कुछ या फिर जितनी कमी थी मेरे में वो काफ़ी हैं",
नहीं समझ पाया मैं तभी तो मुझें अपनी जिंदगी ने समझा दिया। होता या फिर जितना भी समझ पाया मैं वो काफी न था।
"हाँ" मुझें शिकायत हैं, आज भी तुमसे मेरे को तुम मुझें फिर जताते क्यूँ नहीं,प्यार हैं तुम्हें भी मुझसे गैर हैं
तो तुम मुझें बताते क्यूँ नहीं"।
या कभी हमने तुमको बताया क्यूँ नहीं, अरे मुहब्बत की नुमाईश मैं तुमसे कर लेता तुम्हारी आँखों में मैं जितना मेरे को नज़र आया।
क्या वो पल काफ़ी नहीं था तुमको मेरे को समझने का।
सोच रहा हूँ ................
क्या कमी रह गईं मुझमें शायद कुछ तो बया कर या फिर जितनी कमी थी मुझमें वो काफी हैं।
टूट चुका हूँ ,अब तुमसे बिखरना मुझें हैं। बाकी बचा कुछ अहसास जो है। आज जो तुझें मुझें जीतना बाकी हैं। तुम्हारी हमारी यह चंद साँसें जिनका साँसों से साँसों में घुलमिलना बाक़ी हैं, मौत तो आज भी मेरे सिरहाने पर खड़ी मुझसे पूछती हैं,भाई आ जा पास मेरे अब क्या है तेरे पास जो खोने से डरते हो।
मैने बोला उसे जी भर के देख ले उसे शांति से बात करना बाकी है। तुझें देखना बाकी हैं,और तेरे दर्द को अपना बनाना बाकी है। ताकि मेरे जाने के बाद भी तुम हमेशा हसतीं और मुस्काना ना भूलो।
यदि कभी याद आए तो, बस एक बार अकेले में मुस्कराते हुए बोल देना। भाई तुम कहाँ गए अभी तो हम दोनों की बाते अघूरी हैं। तुम आ जाओ लौट कर बस तुम्हारा इंतज़ार बाकी है।
मिल बैठ कर सारे गिले -शिकवे दूर करना बाकी हैं।
माना हम लड़ते बहुत हैं उसमे क्या बुरा है भाई -बहन के बीच तो ऐसे ही मस्ती में खेलना और हार जीत लगी रहती हैं।
तुम जब नही होते तो वो मस्ती याद आती हैं। आज बोला है अपनी बहन को ऐसा की तुम मे कोई कमी बाकी है। पर आज के बाद ना बोलना ये तुम्हारी बहन को भी तो बहुत कुछ सीखना बाकी है।
आ जाओ तुम जहाँ भी हो अभी मिलना बाकी है। हम जितना लडे़ या गुस्सा हो फिर भी बहुत कुछ बाकी हैं।
तुम बिन मेरी हर दिन और हर पल अधुरा सा है।ऐसा न हो की तुम्हारे साथ में भी खुद को शामिल कर लू, क्योंकि एक बहन की जान भाई में शामिल होती हैं। तुम मेरे को विचलित कर देते हो, तो ज़ुबाँ पर कुछ बात कहनी बाकी है !
