काली कुर्सी
काली कुर्सी
भईया इस कुर्सी की क्या कीमत है बताना जरा। किस कुर्सी की, इसकी? पास पड़ी कुर्सी के तरफ़ इशारा करते हुए, नंद ने कहा। नंद इस दुकान में काम करने वाला एक मुलाज़िम है। तभी सरिता ने कहा नही भईया ये वाली नहीं, ये वाली तो मेरे बाबू को पसंद ही नहीं आएगी। उसकी पसंदीदा रंग काला है, मुझे वो वाली कुर्सी चाहिए। दूर पड़े शीशे के उस पार पड़ी आलीशान काली कुर्सी, किसी राजा की सिंहासन सी जान पड़ रही थी...
तभी अचानक दुकान में रखी एक कुर्सी पर हाथ रखते ही टूट जाती है, जो पहले से टूटी हुई थी, जिस कुर्सी की कीमत दो हज़ार थी, उसकी कीमत पांच हज़ार दुकान में काम करने वाला एक मुलाज़िम आकर गुस्से में आकर कहता है और बताता है, अरे भईया ये क्या कर दिया, मेरी बेचने वाली कुर्सी तोड़ दी, तुम्हें पता भी है, ये कुर्सी कितने की है, तभी सरिता जाती है दुकानदार के बड़े व्यापारी को बुलाकर लाती है, और कहती है भईया ये हमारी गलती नही और ना ही हमने ये कुर्सी तोड़ी है, ये पहले से टूटी हुई पड़ी थी आप चाहो तो सी सी टी वी कैमरे में फुटेज देख लो, आपका ये मुलाज़िम हमसे इस कुर्सी के पांच हज़ार मांग रहा है, अगर हमने तोड़ी होती कुर्सी तो हम इस कुर्सी की भरपाई कर देते हम तो यहां अपने बाबू के लिये काली कुर्सी खरीदने आये थे, अब नही खरीदेंगे हम आप सी सी टी वी अपनी दुकान का देखें और हमने कुर्सी तोड़ी है, तो बताए हम इस कुर्सी की भरपाई कर देंगे और ये कुर्सी की कीमत पांच हज़ार है, आप हमें बताए कितने की है ? हम इस कुर्सी की भरपाई कर देंगे, तभी सरिता का भाई बोलता है, व्यापारी से आपके दुकान में काम करने वाला ये मुलाज़िम ऐसे कैसे हम पर आरोप लगा रहा है,
तभी दुकानदार कहता है, अरे रुको थोड़ा शांत रहो, अभी मैं सी सी टी वी चेक करता हूँ, जिसकी गलती होगी उसे इस कुर्सी के पैसे देने पड़ेंगे दो हज़ार रुपये बोलो मंज़ूर है, तभी सरिता कहती है सिर्फ दो हज़ार दुकानदार कहता है हां हां दो हज़ार रुपये मात्र तभी सरिता कहती है आपके मुलाज़िम तो हमसे पांच हज़ार रुपये मांग रहे थे फिर इस कुर्सी के दो हज़ार रुपये कैसे.? दुकानदार कहता है सरिता से जाओ मुलाज़िम को बुलाकर लाओ अभी उसकी खबर लेता हूँ, और फिर सरिता मुलाज़िम को बुलाकर लाती है, मुलाज़िम दुकान मालिक से कहता है, आपने मुझे बुलाया मालिक, दुकानदार जी आइए, नमस्कार मालिक जी कहिये ? क्या काम है ? आपने इनसे दो हज़ार रुपये वाली कुर्सी के पाँच हज़ार रुपये कैसे मांगे है, तुमने मैं आज ही तुम्हें नौकरी से निकाल रहा हूँ, जाओ अब तुम दुकान छोड़कर मेरी मुझे नही रखना ऐसा मुलाज़िम जो लालची हो, अब मेरी दुकान पर कभी दिख नही जाना, दो हज़ार रुपये की कुर्सी के पाँच हज़ार मांग रहे थे, ये कुर्सी पहले से टूटी हुई थी, मैं तो सिर्फ जानना चाहता था कि मेरी दुकान में काम करने वाला मुलाज़िम कैसा होना चाहिए और उस मुलाज़िम में ईमानदारी कितनी होनी चाहिए । मुझे पता चल गया तुम ईमानदार नही बेईमान हो । तुम मेरी दुकान में अब काम नही कर सकते, अब तुम्हारी यहाँ कोई ज़रूरत नही तभी मुलाज़िम कहता है,
माफ कीजियेगा मालिक अब ये गलती दोबारा नही होगी। अब मैं अपनी पूरी ईमानदारी से काम करूँगा, बेईमानी से नही, दुकानदार जाओ अब रहने दो अब तुम माफी मांगने के लायक नहीं हो। तभी सरिता कहती है, दुकानदार से अरे रुको रहने दो अब इसे अपनी गलती का अहसास है, अब ये मुलाज़िम दुबारा किसी के साथ ऐसा नही करेगा।
तभी दुकानदार खुशी खुशी मान जाता है और अपने मुलाज़िम को दुकान में एक और मौका दे देता है, अपनी गलती सुधारने का तभी मुलाज़िम कहता है, दुकानदार से अब मुझे सीख मिल गई मालिक बेईमानी का पैसा किसी काम का नही ईमानदारी का पैसा ही काम मे आता है। मैं आपका बहोत आभारी हूँ । आपने मुझे फिर से नई जिंदगी दी, बहुत बहुत शुक्रिया मेरे मालिक आपने मुझे मेरी गलती का अहसास कराया।
