Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

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Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

कचरा

कचरा

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"दीदी, थोड़ी हमारी तनख़्वाह बढ़ा दीजिये। " फर्श पर रगड़-रगड़ कर पोंछा लगा रही सीमा ने डस्टिंग कर रही शोभिता से कहा। 

"1000 रूपये बढ़ा दूँ।"

"1000 रूपये नहीं, ज्यादा से ज्यादा 500 रूपये ही बढ़ायेंगे।", शोभिता की बात बीच में ही काटते हुए, शोभिता की सास आशा जी ने कहा, जो कि अपनी पूजा समाप्त कर अभी-अभी आयी ही थी। 

"ठीक है, मम्मी, जैसा आपको सही लगे।" शोभिता ने बात समाप्त करने के लिए कहा। 

सीमा के चले जाने के बाद आशा जी ने शोभिता को समझाते हुए कहा, "शोभिता, तुम अभी बच्ची हो । दुनियादारी की ज़रा भी समझ नहीं है तुम्हें। ऐसे 1000-1000 रूपये बढ़ाओगी तो कैसे चलेगा? अपनी गृहस्थी कैसे चलाओगी।"

"आप हैं न मम्मी। "

"मैं तो कभी-कभी ही आती हूँ। फिर तुम सीमा को कितना सारा सामान देती हो? नयी से नयी साड़ियाँ, सूट, खाने-पीने की चीज़ें । इतना कौन देता है भला ?"

"मम्मी, नयी नहीं, मैं अपनी वो साड़ियाँ और सूट सीमा को देती हूँ, जिनसे मैं बोर हो जाती हूँ या जो आउट ऑफ़ फैशन हो गए हैं। अगर सीमा को नहीं दूँ तो, उन्हें घर में कहाँ रखूँ ? सभी अलमारी ठसाठस भरी हुई हैं। ऐसे ही खाने-पीने की चीज़ें नहीं दूँगी तो फ्रिज में जगह नहीं बचेगी। चीज़ें खराब होंगी। "

"फिर भी शोभिता, वो सब सीमा के तो काम आता है न । "

"मम्मी, और अगर सीमा लेने से मना कर दे तो । "

"वो क्यों मना करेगी? उसके तो मज़े हैं । "

"मम्मी, कर भी सकती है । सोचिये वह हमारा अनुपयोगी सामान, जिसे हमें कचरे में फेंकना पड़े, उसे लेकर जा रही है ।इस कचरे तो अगर हमें खुद ठिकाने लगाना पड़े तो उसके अलग से पैसे देने होंगे । हमें उसे उल्टा धन्यवाद बोलना चाहिए । "

"तुम और तुम्हारी फालतू बातें । "

"मम्मी, कभी तो आपको समझ आ ही जायेंगी । "



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