प्रवीन शर्मा

Romance Action Thriller

3.9  

प्रवीन शर्मा

Romance Action Thriller

कच्चा मन पक्का प्यार (भाग छः)

कच्चा मन पक्का प्यार (भाग छः)

14 mins
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अंकल (सुभाष ) की अकड़ पता नहीं क्यों माँ का चेहरा देखने के बाद ऐसे गायब हो गई जैसे बाढ़ में नदी के क्रोध के सामने किनारों की अकड़ घुलकर गायब हो जाती है और वहाँ बस शून्यता ही रह जाती है। अंकल( सुभाष) माँ से नजर बचा कर दिति को देखने लगे, फिर माँ ने भी दिति को चुप कराने को प्यार से हाथ फिराते हुए कहा "दिति, तुम रोना बंद करो, मेरे रहते तुम्हें किसी से डरने की कोई जरूरत नहीं"

दिति अभी भी डर कर माँ से ऐसे चिपकी हुई थी जैसे किसी मजबूत पेड़ को बेल लपेट लेती है, अगर वो पेड़ न हो तो बेल जमीन पर खड़ी भी न रह पाए।

माँ ने दिति की हिम्मत बढ़ाने को अंकल(सुभाष) को उनके पास आने का इशारा किया । तो अंकल(सुभाष) कुछ पल सोचकर आगे बढ़कर माँ के पास जाकर खड़े हो गये।

माँ ने अपने अंदाज में कहा" हां भई सुभाष, तुम्हारा क्या इरादा है, मैंने तुम्हें इसी शर्त पर पिछली बार बख्शा था कि तुम अपने परिवार को कभी दुख नहीं दोगे, और आज तो तुमने मेरे लड़के पर भी हाथ उठा दिया"

सुभाष का चेहरा और आश्चर्य से फटी आंखें बता रही थी माँ के आखरी शब्द उसके लिए क्या थे।

माँ ने अपनी बात को आगे बढ़ाया "तो अब जब तुम अपने वादे से मुकर गए तो अब दिति नहीं तुम इस घर से जाओगे और वो भी जेल में"

जेल की बात सुनते ही अंकल(सुभाष) का चेहरा सफेद पड़ गया, और उसने तुरंत ही माँ के पैर पकड़ लिए और गिड़गिड़ाते हुए बोला" दीदी जी, मुझे माफ़ कर दीजिए मुझसे धोखे में पाप हो गया, मैं नहीं जानता था कि ये आपके बेटे है, मैं अभी उनसे भी माफी मांग लेता हूं"

अंकल(सुभाष) उठकर मेरे पास पहुंच कर झुके ही थे कि माँ की जोरदार आवाज आई "सुभाष मेरे बेटे से माफी मांगने की जरूरत नहीं, उस गलती के लिए तो वो तुम्हें माफ कर चुका होगा, पर जो इस अपनी छोटी सी बेटी पर शक करके पाप किया उसका पश्चताप कौन करेगा"

अंकल(सुभाष) ये बात सुनकर वही जम गये फिर कुछ सेकंड में वापस दिति के पास जाकर बोला" दिति, तू मेरी बेटी है तू तो जानती है पापा कितने परेशान रहते है तेरे लिए, मेरी बच्ची मुझे माफ़ नहीं करेगी।

दिति के अब तक अचम्भे से आँसू बहना रुक गए थे, और अपने उस पिता के परिवर्तित रूप को हैरानी से देख रही थी, उसके मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहे थे।

माँ ने ये सब देखकर खुद ही बोलने का निर्णय लिया और कहा "सुभाष अगर तुम्हें पछतावा है अपने किये पर तो जाकर अपनी पत्नी को दिति के पास कुछ दिन रहने दो वरना मुझे मेरा वादा निभाना पड़ेगा फिर पछतावे के लिए तुम्हारे पास वक़्त ही वक़्त होगा, पर सलाखों के अंदर"

सुभाष ने सकपकाकर कहा "दीदी जी, दिति की माँ को कल ही पहुंचा जाऊंगा, पर मेरी एक शर्त है,"

माँ ने कहा "तुम मेरे सामने शर्त रख रहे हो, बड़े ढीठ हो"

सुभाष ने कहा" माफ करना ये शर्त नहीं प्रार्थना है"

माँ ने कहा" बोलो, अगर सही लगी तो ही मानी जायेगी"

अंकल(सुभाष) ने कहा "दिति की माँ इन दिनों जब तक यहाँ है, मैं उसके साथ यहाँ रहूंगा"

माँ ने ताना मारने के अंदाज में कहा "तुम्हारे दिन रात के शक के कीड़े से ही तो इन दोनों को कुछ समय के लिए बचाना चाहती हूँ और तुम कह रहे हो तुम्हें इनके साथ रहने दूँ"

अंकल(सुभाष) का मुंह थोड़ा सा रह गया तो वो बोला" ठीक है, मैं कल उसे छोड़ जाऊंगा"

इतना कह कर अंकल(सुभाष) चले गये।

मौसी अभी भी माँ की तरफ देख रही थी और माँ मुझे बड़ी उदासी से देख रही थी और उन्होंने दिति का हाथ थाम कर लाकर कुर्सी पर बैठाया और फर्स्ट एड बॉक्स से डेटोल रुई में लगा कर दिति की चोट पर लगाने लगी। तभी मैं भी चिहुंक उठा क्योंकि अभी अभी झिलमिल ने माँ की नकल कर रुई निकालकर डेटोल लगा कर मेरे होंठ के पास लगाने में रुई को गाल पर थोड़ा ज्यादा ही रगड़ दिया था पर जब मेरी आह निकल गई तो जैसे झिलमिल डर गई कि उससे कोई गलती हो गई हो।

मैं उसका डरा हुआ मासूम चेहरा देखकर मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। वो मुझे चोर आंखों से देख रही थी, जब मैं मुस्कुराया तो वो समझ गई कि मैं नाराज नहीं हूँ। उसके चेहरे पर फिर से मुस्कुराहट आ गई। ये सब माँ नहीं देख पाई इसलिए शारदा मौसी से बोली" दीदी, रंजन की चोट को साफ कर दीजिए।

मौसी मेरी और झिलमिल के बीच के हालात जानती थी, इसलिए मुस्कुराते हुए बोली" ये बड़ी अम्मा है तो रंजन के लिए , ये मर्ज क्या मरीज भी साफ कर देंगी।"

माँ अभी भी कुछ समझ नहीं पाई तो बोली" झिलमिल अभी छोटी है वो डेटोल की बजाए चोट घिस देगी, मैं ही लगा देती हूं, रंजन इधर आ कर खड़ा हो जा"

मैंने माँ को समझाते हुए कहा" माँ अभी जो झिलमिल ने किया वो आप नही देख पाई इसलिए मौसी की बात नही समझ पाई, झिलमिल ने पहले ही डेटोल से मेरी चोट साफ कर दी है"

माँ ने झिलमिल के बालों में उंगलियाँ घुमा दी तो झिलमिल और जोश में आकर बोली" माँ मैं दिति दीदी के डेटोल लगाऊं क्या"

इस बात से मेरे चेहरे पर डर के भाव आ गए, क्योंकि अभी अभी तो मैंने बात संभाल ली थी, पर अब जो झिलमिल दिति के साथ करने जा रही थी उसका क्या होगा, माँ ने मेरे चेहरे के भाव समझते हुए कहा" झिलमिल तेरा भाई तो तेरे प्यार में दर्द भी बर्दाश्त कर गया , पर दिति तो रो देगी, इसलिए मुझे ही मरहम पट्टी करने दे"

दिति बहुत देर बाद मुस्कुराई तो लगा जैसे मेरे मन में रखा कोई भारी बोझ उतर गया, क्योंकि कोई कुछ कहे पर ये पूरे झगड़े की वजह था तो मैं ही, न मैं कंधे पर हाथ रखता न दिति के इतनी चोट लगती।"

इधर झिलमिल का चेहरा उतर गया था क्योंकि माँ की बात का मतलब उसे लगा कि उसने मेरी चोट ठीक करने की वजाय खराब कर दी , तो मैंने उसके आगे बैठते हुए कहा" झिलमिल मेरी अधूरी मरहम पट्टी को पूरा तो कर, थोड़ा डेटोल लगा कर और साफ कर जल्दी"

इतना सुनते ही झिलमिल ने एक नजर माँ को देखा, और डेटोल लगाने लगी तभी उसके हाथ से जल्दबाजी में शीशी छूट गई, कुछ डेटोल जमीन पर गिर गया। इससे वो सहम गईं और मैंने जल्दी से शीशी को उठाने की कोशिश की पर तब तक शीशी लगभग आधी से कम हो चुकी थी मैंने एकबार माँ की तरफ देखा तो माँ गुस्से में थी पर मैंने अपना एक कान एक हाथ से पकड़ा तो माँ के चेहरे पर मुस्कुराहट लौट आई, मैंने भी चैन की सांस ली और थोड़ा एंटीसेप्टिक ट्यूब झिलमिल के उंगली पर लगा कर कहा "ले जल्दी से लगा दे, डेटोल गिर जाने दे थोड़ा ही गिर पाया था।"

झिलमिल ने मुझे माँ से मिन्नत करते देखा था, इसलिए ट्यूब लगाने के बाद वो मेरे गले लग गई, और मैंने भी उसके सिर पर हाथ फिरा दिया।

उसके बाद मां ने दिति के कंधे पर हाथ रखा और कहा" जाओ, और आराम करो, अगर दर्द बना रहे तो मुझे बता देना मैं दवा दे दूंगी"

दिति जाते जाते सीढ़ियों के पास रुकी और एक बार फिर पलट कर माँ के पास आई और गले से लिपट गई।

माँ ने उसके माथे पर चूम लिया और दिति मुस्कुराते हुए छत पर चली गई।

मौसी ने मुझसे पूछा" रंजन, तुम जाओ और मुँह हाथ धो लो और पैंट बदल लेना गंदी हो गई है"

मैं चला आया, साथ ही झिलमिल भी पीछे पीछे चली आई और मेरे साथ वो कमरे में घुसी तो मैंने पूछा" क्या हुआ कुछ कहना था"

झिलमिल ने मेरा हाथ पकड़कर कहा" भैया सच सच बताओ आपके चोट में दर्द तो नही है"

मैंने उसके आंखों में नमी देखी तो बोला" अरे पगली कुछ नहीं हुआ मुझे, मैं ठीक हूँ, तू क्यों फिक्र कर रही है"

झिलमिल मुझसे लिपट गई मैंने उसकी पीठ पर प्यार की थपकी दी तो मुझसे झुकने का इशारा किया मैं झुक गया , झिलमिल ने मेरे गाल पर चूम लिया और बापस चली गई।

मैं जब कपड़े बदल कर बाहर पहुंचा तो माँ ने मुझे अपने पास बैठने को कहा और मेरे गाल को ध्यान से देखते हुए बोली" रंजन, पहले से दर्द कुछ कम हुआ है क्या"

मैंने माँ की चिंता कम करने को सीधे सीधे कहा" माँ, आपके लड़के को ये छोटी मोटी चोटों से कुछ नही होता"

माँ ने थोड़ी मुस्कान के साथ मेरे सर पर हाथ फेर कर कहा" ले ये दूध पी ले, और कुछ देर आराम कर ले"

मैंने दूध पिया और कमरे में आकर लेट गया थोड़ी ही देर में सो गया ।

शाम को जब मैं उठा तो कमरे के बाहर मौसी सब्जी छील रही थी। मैंने एक निगाह से पूरे घर मे सभी ओर देखा पर माँ नही दिखी । मैं मौसी के पास वही बैठ गया और उनसे कहा" मौसी मैं कुछ मदद करूँ "

मौसी ने मुस्कुराते हुए कहा" नहीं बेटा, जाओ तुम मुँह हाथ धो लो"

मैंने कहा" मौसी माँ और झिलमिल नहीं दिख रही"

मौसी ने कहा" झिलमिल और सुमन दोनों छत पर दिति से मिलने गए"

मैं मुँह हाथ धोकर छत पर आ गया, वहाँ दिति माँ की गोद मे सर रखे लेटी थी, और झिलमिल अभी वहां नही थी, 

मैं कुछ देर वही कुछ दूरी पर रुक गया, दिति ने माँ से कहा" मेरी तो किस्मत में ही खोट है आंटी, पहली बार किसी से दोस्ती हुई और उसकी चोट का कारण भी बन गई"

माँ ने दिति को समझाया" दिति, सुभाष की करनी को अपने सर मत लो, तुम अकेली नही तुम्हारी माँ भी इतने खराब हालात में रहकर जिंदगी गुजार रही है, उस बेचारी ने भी शादी के बाद एक दिन चैन से नहीं गुजारा, रोज नए नए झगड़े, कभी इससे शक कभी उससे लांछन"

दिति चुप थी, तभी झिलमिल कमरे से बाहर निकल कर आई और मुझे देखकर बोली" भैया आप उठ गए, अब कैसा है दर्द"

दिति गोद में से तुरंत उठ बैठी, मैंने झिलमिल से कहा" ठीक है"

माँ ने अपने पास रखी कुर्सी पर बैठने को इशारा किया तो मैं वहाँ जाकर बैठ गया।

अब मां ने दिति से कहा" रात का खाना तुम हम लोगों के साथ नीचे ही खाओगी, अब मैं चलती हूँ तुम लोग बात करो"

मेरे दिमाग में अभी भी यही चल रहा था कि माँ दिति के परिवार को कैसे जानती है, पर माँ से इस बारे में पूछना भी नहीं चाहता था ।

झिलमिल मेरे पास आकर कुर्सी से टिक कर खड़ी थी, दिति सिर झुकाए अभी भी वही बैठी थी, फिर नीचे सिर किये ही बोली" सॉरी"

मैं समझ नहीं पाया तो पूछा" किस लिए"

दिति ने सर उठा कर मेरी ओर देखा फिर दूसरी ओर देखने लगी और बोली" मैंने जब से होश संभाला पापा के कारण घूमना फिरना, खेलना कूदना सब बंद कर दिया, यहाँ तक कि आज तक मेरा कोई दोस्त भी नही है, और आज जो हुआ उसके बाद तो.."

मैंने बीच मे बात काटते हुए कहा" तुम अब भी उसी बात पर अटकी हो, मैं तो कब का भूल चुका, तुम भी भूल जाओ"

दिति ने मेरे चेहरे से मेरी बात का सच मापने की कोशिश की और फिर बोली" मुझे पता है तुम ये सिर्फ दिल रखने को कह रहे हो"

मैंने अपनी बात के लिए तर्क देते हुए कहा" अगर बच्चे कोई गलती करें तो बड़ों को उसे सही करने का हक़ है, मैंने गलती की थी, इसलिए तुम्हें नहीं मुझे सॉरी बोलना चाहिए, क्योंकि मेरे कारण मेरे दोस्त की आंखों में आंसू आये, इसलिए सॉरी, हो सके तो मुझे माफ़ कर देना"

दिति ने कहा" ये तुम क्या कह रहे हो, पापा तो तुम क्या मुझसे छोटे लड़कों को भी इसी तरह शक की नजर से देखते है, मैं आज तक सोचती थी कि कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा पर ये मेरी गलतफहमी साबित हुई"

मैंने कहा" तुम्हारे पापा तुम्हें प्यार करते है, तुम्हारी चिंता करते है, वो अच्छे है बस प्यार जताने के अंदाज अलग है"

दिति मेरी बातों से रुआंसी होती हुई बोली" रंजन ऐसे पापा से तो बिना पापा का होना अच्छा, मुझे अपना इतना दुख नहीं होता जब माँ के पीठ, गले, कलाइयों पर काले काले निशान देखती हूं तो पापा के लिए नफरत से सीना भर जाता है"

मुझे लगा वो कही इन बातों में रो न दे तो मैंने बात बदलने का फैसला किया।

मैंने कहा" मुझे तुम्हारे पिता का पता नहीं, पर मेरे पापा को आज भी मेरे आंसू देखने की हिम्मत नहीं है, पापा कितना.."

मैं बात पूरी कर पाता उससे पहले ही झिलमिल ने चहकते हुए पूछा" भैया पापा कैसे है, आप उनसे मिलने गए थे क्या, उन्होंने मेरे बारे में पूछा,.."

मैंने उसे टोकते हुए कहा" अरे सांस तो ले ले, इतने सवाल"

झिलमिल ने गहरी सांस ली और मेरे जवाब का इन्तजार करने लगी। उधर दिति का पूरा ध्यान भी मेरे जवाब पर आ गया था, जैसा मैंने चाहा था।

मैं बोला" पापा ठीक है, वो तेरे लिए पूछ रहे थे, मैंने कहा अभी झिलमिल को स्कूल जाना शुरू करने दो तब झिलमिल से भी मिल लेना"

झिलमिल को मेरी बात जंच गई, तो मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर गले लग गई। फिर कुछ सोचकर नीचे जाने लगी तो मैंने उसे याद दिलाया" झिलमिल अभी मां को कुछ मत कहना, उनका गुस्सा अभी कम नहीं हुआ है"

मुझसे झिलमिल तुनककर बोली" क्या भैया मैं भी यही आपसे कहने वाली थी"

मैंने मुस्कुराकर बात खत्म करना ही ठीक समझा, वरना झिलमिल कभी अपनी गलती मानती नही कि वो खुशी खुशी माँ से ही पापा की बाते कहने ही जा रही थी। झिलमिल नीचे चली गई तो मैंने दिति से कहा" तुमने ठीक ही कहा था, बिना माँ को बताए पापा के पास जाने से सब कुछ आसानी से ठीक हो गया, वरना जाने माँ क्या करती"

दिति ने कुछ सोचते हुए कहा" काश सबको इतने ही प्यार करने वाले माँ बाप मिलते तो.."

मैं समझ गया कि अभी भी वो अपने माँ बाप के बारे में बात कर रही है। मैंने कहा" अच्छा अब मौके का बताओ, जो कह रही थी कि जल्दी ही एहसान चुकाने का मौका दोगी"

दिति को अपनी कही बात याद आते ही वो बड़ी देर बाद मुस्कुरा गई, और बोली" तुमको कितनी जल्दी है एहसान चुकाने की, थोड़ा तो सबर करो बता दूंगी"

मैं उसके चेहरे को देखकर समझने की असफल कोशिश कर रहा था।

मैंने दिति से कहा" चलो ठीक है जब चाहो तब बता देना, मैं अब चलता हूं"

दिति ने कहा" क्या हुआ अब उठ कर क्यों चल दिये, कुछ देर और बैठो ना"

मैंने बैठना ठीक समझा, क्योंकि दिति को नाराज करना मुझे ठीक नही लगा। मैंने कहा" मगर मेरी दो रिक्वेस्ट माननी पड़ेगी तुम्हें"

दिति ने चहकते हुए कहा" तुम बोलो तो सही, मैं जरूर पूरी करूँगी"

मैंने कहा" पहली तो ये कि तुम उदासी वाली बातें नहीं करोगी, मुझे तुम्हारे चेहरे पर उदासी बिल्कुल अच्छी नहीं लगती"

दिति मुस्कुराकर बोली" और दूसरी"

मैंने मुस्कुराते हुए कहा" दूसरी मुझे आज तुम्हारा गाना सुनने का मन है"

दिति ने खुल कर हँसते हुए कहा" हाहाहा, तुमको मेरी आवाज इतनी अच्छी लगी"

मैंने कहा" हाँ एक दम श्रेया घोषाल"

दिति ने कहा" ठीक है पर तुमको भी कुछ सुनाना होगा"

मैंने कहा" मेरी आवाज तुम जानती ही हो कितनी खराब है, फिर भी"

दिति ने कहा" वो तो सुनने वाले के ऊपर होता है, कि किसकी आवाज अच्छी लगेगी, किसकी बुरी, मुझे तुम्हारी आवाज पसंद है"

मैंने हंसते हुए कहा" जब तुम्हें अपने कानों पर रहम नहीं तो तुम जानो, अब जल्दी से कोई गाना सुनाओ"

दिति ने गाना सुनाया।


अगर तुम मिल जाओ

ज़माना छोड़ देंगे हम

अगर तुम मिल जाओ

ज़माना छोड़ देंगे हम

तुम्हें पा कर ज़माने भर से रिश्ता तोड़ देंगे हम

अगर तुम मिल जाओ

ज़माना छोड़ देंगे हम

अगर तुम मिल जाओ

ज़माना छोड़ देंगे हम

बिना तेरे कोई दिलकश नज़ारा हम ना देखेंगे

बिना तेरे कोई दिलकश नज़ारा हम ना देखेंगे

तुम्हें ना हो पसंद उसको दोबारा हम ना देखेंगे

तेरी सूरत ना हो जिस में

हम्म्म हम्म्म हम्म्म

तेरी सूरत ना हो जिस में

वो शीशा तोड़ देंगे हम

अगर तुम मिल जाओ

ज़माना छोड़ देंगे हम

तेरे दिल में रहेंगे तुझको अपना घर बना लेंगे

तेरे दिल में रहेंगे तुझको अपना घर बना लेंगे

तेरे ख़्वाबों को गहनों की तरह खुद पर सजा लेंगे

कसम तेरी कसम आ आ आ

कसम तेरी कसम

तकदीर का रूख मोड़ देंगे हम

अगर तुम मिल जाओ

ज़माना छोड़ देंगे हम


इस गाने के बोल सुनकर मुझे लगा जैसे श्रेया घोषाल ही गा रही हो, मैं गाने में डूब सा गया था।

मुझे दिति ने मुझे हिलाया तो मैं चौंक गया और बोला " दिति सच में पता ही नहीं चला कब गाना खत्म हो गया, लग रहा था तुम गाती रहो मैं सुनता रहूँ"

दिति ने हंसते हुए कहा "बस बस बस अब और तारीफ नहीं, चलो अब तुम्हारी बारी"

मैंने कहा" मुझे कोई गाना पूरा याद नहीं, माफ करना जितना याद है उतना ही सुनाता हूँ"

मैंने गाना सुनाया।

ओ ओ ओ ओ ओ

ओ ओ ओ ओ ओ

ना वो अँखियाँ रूहानी कहीं

ना वो चेहरा नूरानी कहीं

कहीं दिल वाले बातें भी ना

ना वो सजरी जवानी कहीं

जग घूमेया थारे जैसा ना कोई

जग घूमेया थारे जैसा ना कोई

ना तो हँसना रूमानी कहीं

ना तो खुश्बू सुहानी कहीं

ना वो रंगली अदाएँ देखी

ना वो प्यारी सी नादानी कहीं

जैसी तू है वैसी रहना

जग घूमेया थारे जैसा ना कोई

जग घूमेया थारे जैसा ना कोई


इतना गाकर मेरी याददाश्त ने साथ छोड़ दिया तो मैंने थोड़ा शर्माते हुए कहा" दिति सॉरी आगे मुझे याद नहीं, पर मेरा मन कर रहा है एक गाना और सुनूँ, क्या सुनाओगी मुझे प्लीज्"

दिति ने कुछ देर सोचने के बाद गाना शुरू किया


मनवा लागे, ओ मनवा लागे 

लागे रे सांवरे, लागे रे सांवरे 

ले तेरा हुआ जिया का, 

जिया का जिया का ये गाँव रे 

मनवा लागे, ओ मनवा लागे 

लागे रे सांवरे, लागे रे सांवरे ले 

तेरा हुआ जिया का, 

जिया का जिया का ये गाँव रे 


 गाना यही तक पहुंचा था कि अचानक झिलमिल हांफती हुई छत पर आई और बोली" हम्फ हम्फ भैया हम्फ नीचे.. सुमित भैया"

मैं झिलमिल की कहने के तरीके से समझ गया वो डरी हुई है तो तुरंत वहाँ से उठकर नीचे आया। सुमित की हालत देखकर मैं भी सहम गया, वो दरवाजे के पास दीवार से टिक कर खड़ा था और उसकी पैंट कई जगह से फटी हुई थी। मैंने उसे सहारा देकर अंदर लाना चाहा तो वो रोने लगा और मैंने उससे पूछा " क्या ज्यादा दर्द हो रहा है"

सुमित ने रोते हुए कुछ ऐसा बताया कि मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई।


क्रमशः


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