प्रवीन शर्मा

Others

4  

प्रवीन शर्मा

Others

कच्चा मन पक्का प्यार भाग चार

कच्चा मन पक्का प्यार भाग चार

17 mins
426


पिछले अंको में आपने पढ़ा 

रंजन नई उम्र का लड़का है जो अपनी स्कूल की रजनी मैम के लिए बहुत लगाव महसूस करता है, पर सिर्फ इसे अपने मन मे ही रखे अजीब उठापटक के दौर से गुजर रहा है । रंजन की सहपाठी अंजलि के मन मे सिर्फ और सिर्फ रंजन ही बैठा है वो एक पल उसे न देखे तो चैन की सांस नही ले पाती। रंजन के पिता के अतिरिक्त संबंध से एक लड़की थी एक दिन जिसे वो अपने घर ले आता है, परंतु इस धोखे से रंजन की माँ सुमन का दिल टूट जाता है, इसलिए वो घर छोड़ने का फैसला करती है। सुमन को पता था कि रंजन अपनी माँ के बगैर नही रह सकता तो वो रंजन की सहमति से उसे भी साथ चलने को कहती है, पर जब वो लड़की भी साथ जाने की जिद करती है तो सुमन उसे भी साथ ले लेती है और उसे नया नाम झिलमिल देकर अपना लेती है। सुमन सहकर्मी शारदा के घर पनाह लेती है जहाँ पर दोनों बच्चे शारदा को मौसी के रूप में अपना कर खुश रह रहे है । शारदा के घर मे दिति नाम की लड़की किराये पर रहती है और रंजन के स्कूल में ही पड़ती है। शारदा रजनी की मौसी है और सुमन को भी रजनी मौसी की तरह ही अपना लेती है । अंजलि ने सुबह जब स्कूल के लिए रंजन को ना आया देखा तो वो जल्दी से रंजन के घर गई, जहाँ कुछ ऐसा देखा जो उसके लिए अजीब था, बापस आकर बस से बेमन से स्कूल चली गई पर जब रंजन के दोस्त से पता चला कि रंजन शारदा के घर है तो स्कूल बंक करके वो शारदा के घर पहुंच गई जहाँ उसने सुमन के बजाय रंजन को अपनी बात बताना सही समझा जिसे सुनकर रंजन के आंखों से आंसू झरने लगे। अब आगे

आगे की कहानी रंजन के शब्दों में.....

अंजलि ने कहा" मैं सुबह तुम्हारे घर गई थी तो.."

मुझे लगा जैसे अंजलि कुछ बताने से कतरा रही है। मैं किसी आशंका से अंदर ही अंदर सहम सा गया, और अब मैंने जोर देकर कहा" अंजू बोल न पापा ठीक तो है, जल्दी बता सुबह क्या हुआ"

अंजलि ने मुझे जब इतना उद्विग्न देखा तो बोली" मैं ये सब आंटी को बताना चाहती थी, पर मैं नही जानती कि ये सही होगा या नही क्योंकि कल से अब तक तुम्हारे घर पर कुछ तो हुआ है, जो मुझे नही पता, मगर मेरा मन कह रहा है, अंकल ..

मेरी शंका अब उसके इशारे से डर का रूप ले चुकी थी,मैं चाह कर भी कुछ नही कह पा रहा था, बस मेरे आंखों में पापा का चेहरा घूम रहा था जो मैंने आखरी बार देखा था ।

अंजलि ने मेरी हालत समझते हुए कहा" प्लीज़ तुम चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा"

मैंने चीखते हुए कहा" कुछ बताएगी भी सुबह क्या देख कर आई है, या ऐसे ही नौटंकी दिखाती रहेगी"

मेरा ये व्यवहार उसके लिए नया था,मेरे चीखने से वो डर गई और उसके हाथ कांपने लगे थे पर अंजलि भी जानती थी कि मैं अपने परिवार को लेकर कितना ज्यादा संवेदनशील हूँ। इसलिए उसने हड़बड़ाकर मेरे हाथों को अपने कांपते हाथों से ही पकड़कर पूरी बात बताना शुरू किया ।

अंजलि बोली" मैं जब सुबह घर गई तो घर का दरवाजा खुला था, इसलिए मैं घर मे आवाज देते हुए घुस गई और अंदर जाकर देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गई क्योंकि अंकल आंटी की साड़ियों को अपने आगे फैला कर बैठे थे और हंस रहे थे फिर अचानक ही रोने लगते थे मैं वही दरवाजे पर खड़ी ये सब देख कर इतना डर गई कि मुझे समझ ही नही आया मैं क्या करूँ, फिर भी हिम्मत करके मैंने अंकल को आवाज दी तो अंकल ने मेरी तरफ बड़े अजीब ढ़ंग से देखा और बोले सुमन तू मुझे यहाँ अंधेरे में भटकने के लिए क्यों छोड़ गई और ये कहते कहते मेरे पास आकर मेरे पैर कस के पकड़ लिए और सिर जमीन में रख कर बच्चों की तरह रो रहे थे मैंने कई बार उनसे कहा मैं अंजलि हूँ अंकल, आंटी कहाँ है,पर जब अंकल ने कुछ सुना ही नही तो मैंने वहाँ से दौड़ लगा दी और बस से स्कूल चली गई"

इतना सुनकर मेरी पलके बंद हो गई, और मुझे बस रोना आ रहा था और कुछ सूझ ही नही रहा था। तभी पीछे से किसी ने कहा" रंजन तुम ही इस तरह टूट गए तो अंकल को कौन संभालेगा"

वो और कोई नही दिति ही थी। उसे देखकर मैने अपने आंसू रोकने चाहे पर वो रुक ही नही रहे थे, क्योंकि मैं भी नही जानता था कि मैं पापा से कितना प्यार करता हूँ। दिति ने मेरे आंसू पोछे तो मैंने देखा कि अंजलि ये सब बड़े गौर से देख रही है , अब कोशिश करके मैंने खुद को संभाला तो दिति ने कहा" कुछ सोचा है कि अब क्या करना है"

मैंने कहा" मैं माँ को बताने जा रहा हूँ"

दिति ने मेरा हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा" मैं अंजलि की बातों से इतना तो समझ ही गई कि अंकल की ये हालत आंटी के उन्हें छोड़ कर आने से हुई है, अगर आंटी ने ये सुना तो हो सकता है कि वो इसके लिए खुद को जिम्मेदार मानकर ज्यादा चिंता करें। तो पहले तुम खुद अंकल से मिलकर उन्हें समझाने की कोशिश करो अगर कुछ नही हो पाया तब आंटी से कहना ठीक रहेगा"

मैं उसकी समझदारी की मन ही मन दाद देने लगा, मुझे ये बात जंच गई पर ये समझ नही आ रहा था कि मैं माँ से क्या कहकर जाऊं की उन्हें शक न हो।

इसके लिए अंजलि मेरे मन की बात समझ गई और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा" तुम चिंता मत करो तुम्हारी चिंता का इलाज मेरे पास है"

मैंने गर्दन हिलाकर पूछा" क्या "

तो अंजलि ने कहा" तुम मुझ पर यकीन करो और आंटी के पास चलो वो तुम्हे मेरे साथ जाने से नही रोके पाएंगी और पूछेंगी भी नही की कहाँ जाना है"

अंजलि मेरे मन की बात पता नही अपने आप कैसे जान जाती थी ये मैं आज तक नही समझ पाया था पर उस पर भरोसा कर आज पहली बार माँ से कोई बात छुपाने की हिम्मत कर रहा था। पर फिर एक सवाल और मैंने किया" मगर आज माँ ने मुझे स्कूल ले जाने के लिए ही घर रोका था क्योंकि झिलमिल का एडमिशन कराने जाना था"

इस बात का अंजलि सोच में पड़ गई तो दिति बोली " तुम चिंता मत करो मैं हूं न मैं चली जाऊंगी, तुम माँ से कह देना"

मैंने दिति से कहा" थैंक्स दिति, ये मुझ पर एहसान रहा"

दिति ने कहा" चिंता मत करो इस एहसान को चुकाने का जल्दी ही तुम्हे मौका दूंगी,अब जल्दी जाओ और मुझे बापस आकर अंकल की हालत बताना बरना मुझे चिंता लगी रहेगी"

ये एहसान चुकाने वाली बात पर अंजलि के चेहरे के भाव बदल गए पर उसने कुछ कहा नही और हम दोनों ही वहाँ से नीचे आये तो झिलमिल माँ के साथ बैठी हमारा ही आने का इंतजार कर रही थी तो झिलमिल ने तुरंत ही ताना मारने के अंदाज में कहा" माँ देखा मैंने कहा था ना इन लोगो की बातें जल्दी खत्म नही होंगी"

मैंने उसकी तरफ देखकर कुछ कहना चाहा तो अंजलि ने पहले ही माँ से कहा " सॉरी आंटी मैंने रंजन को बातों में लगा लिया"

माँ ने चाय को कप में डालते हुए कहा" कोई बात नही अंजू अब आजा जल्दी से चाय पी ले फिर हम स्कूल चलेंगे"

अंजलि ने माँ के पास बैठते हुए कहा" आंटी आपसे एक बात की इजाजत लेनी थी पर मेरी हिम्मत नही हो रही"

माँ ने कहा" क्या हुआ आज तुझे, तुझे कब से इजाजत लेने की जरूरत पड़ गई, ऐसी क्या बात है बोल"

अंजलि ने कहा" आंटी पहले आप वादा करो कि मुझसे मना नही करोगी"

माँ ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा" आज तक तुझे कुछ मना किया है जो आज करूँगी, चल ठीक है वादा रहा अब तो बोल"

अंजलि ने कहा" मुझे रंजन के साथ कुछ प्रोजेक्ट बनाने का सामान लेने जाना था, क्या मैं उसे आज पूरे दिन के लिए ले जा सकती हूं"

माँ के चेहरे के भाव बदल गए तो अंजलि ने माँ के हाथ पर हाथ रखकर कहा" आंटी मुझे पता है आप रंजन को स्कूल झिलमिल के एडमिशन के लिए साथ ले जाने वाली थी, इसलिए मैंने दिति से पूछा तो वो कह रही थी वो आपके साथ चली जायेगी"

माँ ने मुस्कुराते हुए कहा" जब तूने मेरे लिए पूरा प्लान बना ही लिया तो फिर ले जा रंजन को तुझे कौन रोक सकता है"

हम सभी ने चाय पी । झिलमिल का मूड मेरे साथ न जाने की बात से उखड़ सा गया था। मैं जब कपड़े बदलने अंदर आया तो माँ ने मुझे कुछ रुपये दिए और कहा जरा ध्यान से जाना और जल्दी लौटने की कोशिश करना "

मैंने उन्हें हाँ कहकर बाहर जल्दी निकल आया क्योंकि मैं नही चाहता था कि माँ इस समय की मेरी मन की हालत समझ पाए या किसी तरह का शक मन मे ले आये।

अंजलि ने कुछ दूर चलकर रिक्शे वाले को इशारे से रोककर मुझे बैठने का इशारा किया ।हम दोनों चुप ही थे तभी मैंने देखा कि अंजलि बड़ी गौर से मेरी तरफ देख रही है पर मैं समझ नही पाया वो इस क्यों कर रही है तो मैंने उससे पूछ ही लिया" अंजू क्या हुआ"

मेरे कहते ही उसने ना के इशारे में गर्दन हिलाई और बाहर की तरफ देखने लगी तो मैंने उससे कुछ पूछने की हिम्मत नही कर पाया क्योंकि जब तक वो खुद न चाहे तब तक कोई भी उससे कोई बात नही उगलवा सकता था ।

थोड़ी ही देर में हम घर के बाहर थे, आज पहली बार मुझे मेरे घर आने में ही अजीब सी खुशी हो रही थी जैसे दूर आकाश में उड़कर पंछी अपने घोंसले की डाल पर आया हो। मुझे तभी पापा का रुआंसा चेहरा मेरी आंखों में उतर आया तो मैं जल्दी जल्दी घर के अंदर बढ़ा तो दरवाजा अभी भी खुला था । मैं अंदर गया तो सिसकने की आवाज आ रही थी, मैं मेरे कमरे की तरफ बढ़ गया, देखा तो पापा मेरे बैड के गद्दे पर एक तकिया को गोद मे लेकर रोते जा रहे है । अब मुझसे भी ये हालत देखी न गई तो मैं भी रोने लगा अंजलि ने मेरे कंधे पर हाथ रखा तो मैंने पलट कर उसे कस कर गले लगा लिया और फूट कर रोने लगा तो अंजलि भी मेरी पीठ को सहलाते हुए कहा रही थी "रंजन प्लीज मत रो देख अंकल को संभालने के वक़्त में तू इस तरह रोयेगा तो कैसे सब ठीक हो पायेगा"

मैं अपने आप को रोकने की कोशिश करने लगा और कुछ मिनट में खुद को रोकने में सफल हो गया तो मैंने पापा को वहीं से आवाज दी।

पापा ने एक नजर मेरी तरफ देखा और अपने होठों पर उंगली रखकर मुझे चुप रहने का इशारा किया। जैसे कि वो तकिया न हो किसी सोते हुए बच्चे को लेकर बैठे हो।

मैंने आगे उनके बिल्कुल करीब जाकर अपना हाथ पापा के कंधे पर रखा उन्होंने मुझे गौर से देखा और वो फिर रोने लगे मैंने बैड के किनारे बैठ कर पापा की गोद मे सर रखकर रोना शुरू कर दिया अब पापा ने मेरे आंसू पोछे और मेरे चेहरे को हाथों में लेकर चूमना शुरू कर दिया ।

मुझे लग रहा था जैसे मैं बरसो बाद उनसे मिला हूँ। वो मुझे प्यार करते जा रहे थे और मैं उनकी गोद मे बच्चे की तरह बैठे बैठे बस प्यार को महसूस कर रहा था । थोड़ी देर बाद पापा ने मुझसे कहा" तू मुझे छोड़कर क्यों चला गया था मुझे रात भर कितना डर लग रहा था कि तुम लोग कहाँ किस हाल में होंगे, मुझे समझ नही आ रहा था मैं क्या करूँ"

मैंने पापा के गले लग कर कहा"पापा,मैं माँ को अकेले नही छोड़ सकता था इसलिए उनके साथ चला गया"

पापा ने कहा" सुम्मी मुझे पता नही कभी माफ करेगी भी या नही, या फिर मैं आखरी सांस तक तुम लोगों के लिए तड़पता रहूंगा।"

मैंने उनके आंसू पोछते हुए कहा" पापा, आप कहो तो मैं आपके पास ही रुक जाता हूँ"

पापा ने कहा" नही, मैं समझता हूं,पर मेरे न होने पर तुझे ही तो अपनी माँ का खयाल रखना है"

मैंने कहा" पापा आपके न होने से क्या मतलब है "

पापा ने एक बार मेज की तरफ देखा और फिर नजर बचा कर मेरी तरफ देखने लगे तो मैंने उनकी नजर का पीछा कर मेज की तरफ देखा तो वहाँ एक शीशी रखी थी । मैं बैड से उठ कर शीशी देखने के लिए बढ़ा तो पापा ने हाथ पकड़ कर कहा" नही रंजन मुझसे दूर मत जाओ"

मैं बापस वहीं बैठ गया तो पापा ने पूछा" सुमन कैसी है"

मैंने कहा" आपसे नाराज है, पर हमेशा की तरह बाहर से खुद को ठीक दिखा रही है, पर मुझे पता है वो कितनी दुखी है"

पापा ने कहा" तू भी मुझसे नाराज है क्या"

मैंने कुछ नही कहा, क्योंकि मैं अभी भी माँ की जगह खुद को रखकर नही सोच पा रहा था । मुझे खुद भी नही पता था कि मुझे इस बात पर नाराज होने का हक़ है भी या नही क्योंकि पापा ने आज तक घर मे माँ या मेरे लिए किसी तरह की कोई कमी नही रखी थी न ही प्यार में न ही जरूरत में।

पापा ने मुझे न बोलते हुए देख कहा" बेटा, जिंदगी में बहुत कुछ हमारी मर्जी से नही होता काफी कुछ ऐसा होता है जिसका होना हम न चाहते हुए भी स्वीकारते है, कभी कभी जिंदगी हम को रास्ते चुनने का मौका ही नही देती"

उसके बाद पापा ने अपनी पिछली जिंदगी के बारे में जो बताया तो उसके बाद मेरे और पापा दोनों की ही आंखों में आंसू थे, पापा के आंखों में जहाँ पश्चाताप के थे वही मेरे आंसू में पापा के लिए सम्मान के थे, मेरे मन मे पापा के लिए अब कोई संदेह नही था, था तो सिर्फ वो प्यार जो आज तक मुझे बिना किसी कोताही के हर पल हर दिन वो मुझे देते रहे थे।

पापा अब चुप थे और मुझे देख रहे थे। मैंने पापा के गाल पर चूमते हुए कहा " पापा आप कल भी मेरे आदर्श थे, आज भी हो, मुझे आपसे कोई शिकायत नही"

पापा की बुझी हुई सी मुस्कान देखकर मैंने कहा" किसी न किसी दिन माँ भी आपकी परिस्थिति समझ ही जाएंगी, बस आपको कुछ इतंजार करना होगा, पर पापा उसके लिए हम दोनों को ही कुछ खाना होगा, वरना आपको पता है मैं भूखा रहकर किसी का इंतजार नही कर सकता"

पापा मेरे मजाक को समझ गए और बोले" अरे माफ करना बेटा मुझे अपने दुख में याद ही नही रहा,अभी मैं कुछ बाहर से खाने को ले आता हूँ तू बैठ"

तभी अंजलि जो दरवाजे पर खड़ी थी, अंदर आई और बोली" अंकल आपको कही जाने की जरूरत नही मैं कुछ बना देती हूं"

पापा ने उसे गौर से देखते हुए कहा" अंजलि मुझे ये याद है कि तुम सुबह आई थी पर याद नही आ रहा कि सुबह मैंने तुमसे क्या कहा, अगर कुछ गलत कहा हो तो मुझे माफ़ कर देना"

अंजलि में हंस कर कहा" अंकल वैसे तो मुझे आपसे कई शिकायत थी पर फिर कभी अभी तो बस आप नहा लीजिये मैं खाने को कुछ बना देती हूँ"

पापा और अंजलि दोनों ही चले गए तब मैंने उठकर जब उस शीशी पर नजर डाली तो मेरा दिल धक से कर गया, वो पॉइज़न की शीशी थी , शायद पापा आखरी बार तकिये को मेरे रूप में सुलाकर खुद हमेशा के लिए सोने का सोचकर बैठे थे।

मैं वही कुर्सी पर बैठ गया थोड़ी देर में अंजलि वहाँ आई तो उसने मेरे हाथ से वो शीशी लेकर देखी और उसकी आंखें भी फैल गई, उसने मेरा हाथ पकड़ा और वाशबेसिन पर आकर पूरी शीशी मेरे सामने खाली कर दी। फिर मेरे हाथों को हाथो मे लेकर मुझसे बोली" तुमने देखा अंकल बिल्कुल टूट गए है, तुमको उनमे बापस हिम्मत जगानी होगी"

मैंने कहा" मैं क्या कर सकता हूँ, मुझे कुछ समझ नही आ रहा"

अंजलि ने कहा" परिवार का दूसरा नाम भरोसा है, की अगर एक गिरा तो दूसरा थाम लेगा, बस वही भरोसा तुमको अंकल को देना है"

मैंने उसे देखकर कहा" थैंक्स अंजू, अगर आज तू नही होती तो पापा.."

मैं अपनी बात पूरी नही कर पाया अंजलि ने गले लगकर कहा" थैंक्स कहकर तू मुझे पराया करना चाहता है, और मैं तुझे अपना बनाने.."

अंजलि अपनी बात पूरी नही कर पाई तब तक पापा की आवाज आई " रंजन, बेटा मुझे तौलिया दे जा जरा"

मैं अंजलि को वही छोड़कर तौलिया देने चला गया और जब लौटा तो अंजलि मेज पर पराठे और चाय रख रही थी। मैंने उससे कहा" तुमने पराठे बनाये है"

अंजलि ने मुस्कुराते हुए कहा" क्यों, तुम्हे तो बहुत पसंद है ना"

अब मैं मुस्कुरा कर रह गया, मैं उसका ये कहकर दिल नही तोड़ सकता था कि मैंने आज तक उसके हाथ के कोई पराठे खाये ही नही, वो तो सुमित मोटू ने चट कर दिए थे।

मैंने कहा" मैं तो इसलिए कह रहा था कि पापा चाय के साथ पराठे नही खाते, वो दही के साथ खाते है"

अंजलि बोली" चाय तो मैंने इसलिए बनाई थी क्योंकि लगता है अंकल रात भर रोने की बजह से सो नही पाये है तो सर दर्द कर रहा होगा, उसमे आराम हो जाएगा"

वो उदास होकर चाय बापस ले जाने लगी तो मैं ने उसके हाथ से चाय ले कर मेज पर रख दी और कहा" मुझे नही पता था अंजू डॉक्टर भी है"

ये कह कर मैंने अंजलि की ठोड़ी को छू दिया।

अंजलि की मुसकुराहट बापस आई देखकर मैं भी खुश हो गया।

फिर पापा, मैं और अंजलि ने साथ बैठ कर पराठे खाये, पापा ने कहा" अंजलि ये लो रखो"

ये कहकर पापा ने 500 रुपये अंजलि को दिए तो अंजलि ने प्रश्नवाचक आंखों से मुझे और फिर पापा को देखा। पापा ने हंसते हुए कहा"बेटा पहली बार तुम्हारे हाथ का कुछ खा रहा हूँ, इसलिए ये नेग है, मना मत करना, वैसे भी अपनी माँ के बाद आज इतने अच्छे पराठे खाये है"

मैंने भी लगे हाथों मजाक में कहा" पापा अब माँ से कहूंगा, की पापा कह रहे थे कि आपके हाथ के पराठे पापा को अच्छे नही लगते"

पापा पहले तो सकपका गए फिर थोड़ा गंभीर होते हुए बोले" वो तो मुझे जहर भी दे तो मेरे लिए दवाई बन जायेगा, पर उसने मुझसे दूर रह कर मुझे सजा देने का रास्ता चुना"

मैं खुद नही समझ पाया मैं क्या कहूं। तो अंजलि ने कहा" अंकल, आप का नेग मैं तभी लूंगी, जब आप मेरी कसम खा कर कहेंगे कि आज के बाद मरने वाली मायूसी की बात सोचेंगे भी नही"

ये कहकर पापा को बापस रुपये देने लगी तो पापा ने उसके हाथ मे रखे पैसो पर अंजलि की मुठ्ठी बंद करते हुए कहा" बेटा, रात मैंने कई बार सोचा कि जब मेरे अपने ही मुझसे दूर हो गए तो किसके लिए जियूँ, इसलिए वो शीशी लाया था, पर जब मेरा बेटा मुझे आदर्श मानता है, तो मैं अब ये सब करके उसके आदर्श को नही तोडूंगा, इसलिए अब तुम चिंता मत करो मैं धीरे धीरे खुद को संभाल लूंगा, पर मुझे अभी तक समझ नही आया कि रंजन यहाँ इस वक़्त आया कैसे"

अंजलि ने सीना चौड़ा करके सुबह से अब तक की सभी बातें बता दी। पापा ने मुझे देखा और कहा" ठीक है रंजन तो अब तुम जाओ, सुमन चिंता कर रही होगी, पर मुझसे मिलने आते रहना"

मैंने कहा" पापा आप अपना ख्याल रखना, और मेरे लिए खाना समय पर खाते रहना, वरना मैं भी नही खाऊंगा"

पापा ने मुझे गले लगाते हुए कहा" बेटा, तू मेरा साथ देता रहा तो ये बुरा वक्त भी कट जाएगा, तू किसी बात की चिंता मत कर, अपना, सुमन, और रश्मि का ध्यान रखना"

मैंने रश्मि नाम सुना तो चौंक कर पूछा" कौन रश्मि"

पापा ने बात समझते हुए कहा" तेरी झिलमिल और कौन"

मैंने मुस्कुराते हुए कहा " हाँ ठीक है, अभी मैं चलता हूं"

मैं और अंजलि दोनों बाहर निकल आये, पापा दरवाजे पर ही रहे जब तक हम उनकी नजर से ओझल नही हो गए।

अब मैंने अंजलि की गली की तरफ इशारा कर कहा" अब तुम जाओ, आंटी को तुम्हारी चिंता हो रही होगी"

अंजलि मेरा हाथ पकड़ कर बिना कुछ कहे अपने घर की तरफ खींच कर लाने लगी।मैं ने कई बार कहा की माँ चिंता कर रही होगी पर उसने गुस्से से मेरी तरफ देखा मैं घर तक चुप ही रहा, मुझे समझ ही नही आया कि अब मैंने क्या गलत कह दिया और घर आया तो देखा कि घर पर ताला लगा है अंजलि ने अपने बैग से चाबी निकाली और दरवाजा खोलकर मुझे अंदर खींच कर अपने कमरे तक ले गई और अपना बैग जमीन पर पटक कर मेरे पास आई और बिना कुछ बोले मुझे बैड पर बैठाया और खुद फर्श पर बैठ गई और अपना सर मेरी गोद मे रख लिया । मैं कुछ देर ऐसे ही बैठा रहा कि अब वो कुछ बोले , पर ना तो वो कुछ बोल रही थी न ही हट रही थी, तभी मुझे लगा कि वो रो रही है, तो मैं चौंक गया, आखिर बात क्या है, मैंने उसका चेहरा उठाना चाहा पर उसने मेरे लटके पैरों को कस कर जकड़ रखा था। अब मैं बेबस से उसे रोते हुए देख न सका तो उसके सर पर हाथ फिराने लगा जिससे कुछ देर में वो चुप गई और मेरे हाथ को अपने सर पर ले जा कर बोली"रंजन तुम मुझे आज मेरी कसम खा कर सच सच एक बात बताओगे"

मैंने पूछा" क्या"

वो बोली" पहले कसम खाओ"

मैंने जान छुड़ाने को कहा" ठीक है तेरी कसम, अब पूछ"

वो बोली" तुम्हे कोई लड़की पसंद है क्या"

मैं उसके सवाल में उलझ गया और बोला"तुम्हे क्यों लगा मुझे कोई लड़की पसंद है"

वो बोली" तुम बात घुमाओ मत बस हाँ या ना बताओ"

मैंने कहा"हाँ" 

उसका चेहरे का रंग उतर गया और वो उठकर जाने लगी, तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर रोका और कहा "पूछोगी नही कौन"?



Rate this content
Log in