प्रवीन शर्मा

Drama Romance Tragedy

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प्रवीन शर्मा

Drama Romance Tragedy

कच्चा मन पक्का प्यार (भाग तीन)

कच्चा मन पक्का प्यार (भाग तीन)

15 mins
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अभी तक आपने पढ़ा कि रंजन अपने आसपास के लोगों के लिए बहुत संवेदनशील बच्चा है, उसे अपनी माँ दुनिया में सबसे प्यारी है तो माँ के उसके साथ अपना घर छोड़ने को कहते ही अपने पिता को भारी मन से छोड़ दिया। सुमन ने अशोक को छोड़ने का फैसला भी दिल पर पत्थर रखकर किया था क्योंकि सुमन को लगा उसने जिसपर खुद से ज्यादा भरोसा किया उसने उसका विश्वास तोड़कर किसी के साथ घर बसा लिया और बिना बताए एक बेटी को भी उसके घर लाकर खड़ा कर दिया पर सुमन का दिल इतना भी पत्थर नहीं हो सका कि सौतेली बेटी के लिए न पिघले इसलिए उसे नया नाम झिलमिल देकर अपना लिया। साथ ही झिलमिल ने भी अपनी माँ को वापस पा लिया हो ऐसा महसूस करना शुरू कर दिया तो वो भी अपने माँ पिता और भाई के साथ पहली बार पूरे परिवार के साथ रहने के अपने सपने को सुमन के लिए वही तोड़ कर सुमन के साथ चली आई। सुमन ने अपनी सहकर्मी शारदा के घर पनाह लेने का फैसला किया क्योंकि वो अपने मायके तक इस कलह को नहीं पहुंचाना चाहती थी।

उसी घर में आज सभी का पहला दिन था पर सुबह जब रंजन बाथरूम से फ्रेश होकर बाहर निकला तो चौंक गया। 


आगे की कहानी रंजन के शब्दों में.....

ये नहीं हो सकता कि रजनी मैम मेरे सपने में आई थी अब सामने कैसे आ गई, मैं जरूर अभी भी सपने में ही हूँ, खुद को नोच कर देखता हूं। आह ये तो सच मे हो रहा है , पर कैसे , मैं सोच ही रहा था कि रजनी मैम ने पलट कर देखा और अपनी प्यारी मुस्कान लिए मेरे पास आकर बोली" तुमको भी मेरी मौसी मिली कब्जाने को"

ये बात सुनकर तो मेरा मुँह अचरज से और खुल गया।

और इतना ही कह पाया "मैम आप तो सुमित के पास वाले घर में रहती थी ना"

"मैं अब भी वही रहती हूं यहां तो मौसी की दवाइयां देने आई थी और स्कूल जाने के रास्ते में इनका घर पड़ता है तो इतनी सुबह सुबह ही आ गई।" रजनी मैम ने राज से पर्दा हटाते हुए कहा 

रजनी मैम ने अभी भी मुझे स्कूल के लिए तैयार न देखा तो पूछा " क्या हुआ, आज स्कूल नहीं जा रहे हो क्या"

मैंने माँ की तरफ देखा, जो अभी चाय लाई थी और रजनी की बातों को समझने का प्रयास कर रही थी।

माँ बोली " ये आज स्कूल नहीं जा रहा है इसे मेरे साथ किसी काम से जाना है"

रजनी मैम ने माँ को देखकर कहा "आप बुरा न माने तो आंटी मैं आपको भी मौसी कहूँ क्या"

माँ ने हंसते हुए कहा "हाँ कह सकती हो पर, पेरेंट्स मीटिंग में मुझसे इसकी टीचर बनकर ही मिलना जिससे मुझे इसकी खबर मिलती रहे"

रजनी मैम को आज पहली बार इतना खिलखिलाते देख रहा था क्योंकि स्कूल में हमेशा गंभीर ही रहती थी बस कभी कभी ही थोड़ा सा मुस्कुरा देती थी। इसलिए मेरी नजर उन पर ठहर गई। उनके एक गाल पर गड्ढा पड़ने से उनकी खूबसूरती आज कई गुना बढ़ गई थी। मुझे पता ही नहीं लगा कि वो मेरे बिल्कुल पास कब आकर खड़ी हो गई। मेरी तंद्रा तब टूटी जब उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "मौसी आपको रंजन की जरा भी चिंता करने की जरूरत नहीं, ये मेरे क्लास का सबसे होशियार स्टूडेंट है, कुछ भी दूसरी बार समझाना ही नहीं पड़ता कभी, इसलिए मुझे सबसे प्यारा है"

इतना बोलते बोलते सिर से मेरे गालों तक सहला दिया। रजनी मैम ने मुझे कई बार इस तरह छुआ था पर हमेशा मुझे ऐसा लगता है कि ये मेरे साथ पहली बार हो रहा है, इसलिए आज भी मैं अंदर तक झूम गया। पता नहीं क्यों हर बार ही उनकी बातों से मुझे लगता है वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती है, पर जाहिर नहीं करती।

खैर मैं उन्हें ऐसे हो बैठा बैठा उन्हें चाय पीते देखता रहा और थोड़ी ही देर में वो बाहर जाने लगी। मैं उन्हें दरवाजे तक छोड़ने गया तो देखा सुमित स्कूटी पर बैठा उनका बाहर आने का इंतजार कर रहा है।

सुमित ने मुझे वहां देखा तो जैसे उसे सांप सूंघ गया वो मुझे देखकर जो रजनी मैम से कहने जा रहा था भूल गया फिर रजनी मैम ने उसके सिर पर हल्की सी थपकी दी और बोली" ऐसे आंखें फाड़ कर क्या देख रहे हो, ये रंजन ही है इसने मेरी मौसी छीन ली है"

सुमित होश में आया और मेरे पास आकर धीरे से बोला "क्यों बे मुझे बता नहीं सकता था, और ये क्या है इनकी मौसी को कैसे जानता है, कही तू रजनी मैम के पीछे पीछे तो यहां नही चला आया, अबे बोलता क्यों नहीं"

मैं उसकी बात पर हंसते हुए बोला "अबे सांस तो ले ले, देख मैं मेरी माँ के कहने पर यहाँ आया हूँ, और मैम की मौसी मेरी माँ के साथ कॉलेज में पढ़ाती है, और बाकी की बातें तुझे कल स्कूल में बता दूंगा, जरा लंबी कहानी है"

सुमित ने फिर बेसबर होकर सवाल किया" क्यों आज महाशय का मौसी की गोदी में बैठे रहने का विचार है"

मैंने उसे सीधा उत्तर दिया "नहीं आज मुझे माँ के साथ कही जाना है"

तब तक रजनी मैम ने पीछे से आवाज दी " तुम लोगों का भरत मिलाप हो गया हो तो स्कूल चले क्या सुमित"

सुमित ने जाते जाते कहा" मुझे तेरी पूरी बात सुने बिना आज नींद नहीं आएगी इसलिए आज शाम को तेरे घर आऊंगा"

मैं उसे कुछ कह पाता तब तक वो स्कूटी पर बैठ कर मैम के साथ वहाँ से चला गया।

अभी मैं बापस लौट ही रहा था कि पीछे से झिलमिल ने मुझे जकड़ लिया। मैंने कहा "ये क्या है झिलमिल"

झिलमिल ने पीछे से ही कहा "भैया एक शर्त पर तुमको छोडूंगी"

मैंने वैसे भी खड़े रहकर कहा "शर्त तो बता"

झिलमिल बोली "रोज मुझे मम्मी नहीं आप सुबह आकर उठाओगे"

मैंने उसके एक हाथ को पकड़ कर अपने सामने लाया और कहा " बस इतनी सी बात, शर्त कबूल है, पर मेरी भी एक शर्त है"

झिलमिल के मासूम चेहरे पर शंका की रेखाएं खिंच गई

तो मैंने अपनी बात आगे बढ़ाई" शर्त ये है कि तुम मेरी एक आवाज पर उठ जाओगी, वरना मुझे तुम्हें उठाने में मेरे स्कूल के लिए देर हो जाएगी"

झिलमिल के चेहरे पर वापस खुशी आ गई और बोली" भैया आपको नहीं पता, माँ आज आपके स्कूल में मेरा भी दाखिला कराने जा रही है"

मैंने अपने आसपास माँ को देखा कि माँ से मैं पूछ सकूँ की उन्होंने मुझे अभी तक बताया क्यों नहीं पर माँ मुझे नहीं दिखी।

मैंने झिलमिल से कहा " अब तो शर्त मान ली, अब जा नहा धो ले, और माँ कहाँ है"

झिलमिल ने बाथरूम में घुसते हुए कहा" वो छत पर गई है"

मैं भी अब धीरे धीरे सीढ़ियां चढ़ने लगा, मुझे बहुत ही मीठी आवाज सुनाई दी, जो छत से आ रही थी। मैं भी आगे बढ़ गया और माँ के पीछे खड़ा होकर बातें सुनने लगा।

माँ ने उस लड़की से कहा "दिति तुम अपने को कभी अकेले मत समझना मैं और दीदी तुम्हारे साथ है, तुम लिखो पढ़ो और अपने सब सपने साकार करो"

मैं आगे बढ़ कर उस लड़की को देखने जा ही रहा था कि वो लड़की मा के गले लिपट गई और अब मुझे उसका चेहरा दिख रहा था। एकदम दूध से सफेद रंग, बड़ी बड़ी आंखें, और सबसे सुंदर उसकी नाक मेरी माँ की तरह ही थी। उसके आंखों में आंसू थे, जब आंसू छलक गए तब उसने मुझे चौंकते हुए देखा और माँ के गले से अपने हाथ खींच लिए, इस हरकत पर माँ ने पीछे मुड़कर देखा तो मुझे पाया। उन्होंने मेरा परिचय कराते हुए कहा" दिति ये रंजन है मेरा बेटा, तुम्हारी ही तरह जी पी एम में पढ़ता है।"

फिर मुझसे कहा" रंजन ये दिति है, यहाँ दीदी के घर पर किराये पर रहती है"

दिति अब तक अपने आंसू पोंछकर सामान्य हो चुकी थी। तो मैंने पूछा" दिति तुम किस क्लास में पड़ती हो"

दिति ने छोटा सा उत्तर दिया " नाइंथ में"

तभी नीचे से शारदा मौसी की आवाज आई "सुमन जरा सब्जी देख लेना मैं दूध लेने दुकान तक जा रही हूँ"

माँ आवाज सुनकर तुरंत नीचे चली गई। मैं माँ के पीछे जाने को हुआ तो दिति की आवाज आई "आप मुझे नहीं पहचानते पर मैंने पिछले साल आपको सिंगिंग कॉम्पटीशन में परफॉर्म करते देखा था।"

"वो तो मैंने टीचर के जोर देने पर गाने की कोशिश की थी, पर मुझे लगता है अगर तुम उस कॉम्पटीशन में होती तो मुझे सांत्वना पुरस्कार भी नहीं मिलता" ये बोलकर मैं हँसने लगा।

इतनी देर में पहली बार मैंने उसे मुस्कुराते हुए देखा।

वो कुछ बोलने जा ही रही थी कि तभी माँ की बुलाने की आवाज नीचे से आई, तो मैं नीचे आ गया।

माँ ने कहा" रंजन, मौसी के साथ जाकर दुकान देख ले और जिस दिन घर पर रुके तो मौसी की जगह सामान तू ले आया करना"

मैंने शारदा मौसी की तरफ देखा जो मुस्कुरा रही थी।

मैं उनके साथ हो लिया।

दुकान वहाँ से ज्यादा दूर नहीं थी, इसलिए हम पैदल पैदल बातें करते हुए ही करीब 15 मिनट में पहुंच गए।

दुकान में शारदा मौसी ने घुसते हुए कहा" रिम्मी आज राजू कहाँ है, ये पर्चे का सामान निकाल देता"

दुकान पर एक मोटी सी महिला बैठी थी जिसने खुद को सजावट की दुकान बना रखा था, सुर्ख लाल लिपिस्टिक, और गाल दोनों ही बिल्कुल मैच कर रहे थे साथ ही महंगा से हार बड़े से झुमके उस औरत को बहुत अमीर बताने के लिए काफी थे। 

औरत बोली" आइये आइये बहनजी, अभी आता ही होगा, आप पर्चा मुझे दे दीजिए,तब तक कोई और काम भी हो तो निपटा आइये"

मौसी ने कहा" नहीं मुझे और कोई काम नहीं, कोई और लड़का नही है आज, उसी से निकलवा लीजिये"

औरत ने कहा" ठीक है, अभी रिंकू को देकर पहले आपका पर्चा निकलवा देती हूं।"

फिर उसने एक लड़के बुलाकर वो पर्चा देकर सामान निकाल लाने को कहा। लड़के के जाने के बाद मौसी बैठ कर बातें करने लगी पर मेरा मन बातों में नहीं लगने के कारण मैं बहाँ से खिसक कर बाहर की तरफ आ गया। अभी मैं दुकान के शटर के पास ही खड़ा बाहर आते जाते लोग देख ही रहा था कि मुझे खांसने की आवाज पीछे से आई , मैंने पलटकर देखा तो कोई 80-90 साल के बुजुर्ग पुरानी सी बेंच पर बैठे थे, और खांस रहे थे, मैंने सोचा कि इनको पानी दिया जाए तो शायद इनकी खांसी में कुछ आराम मिले ये सोचकर अंदर जाकर मौसी से कहा" मौसी क्या यहाँ पानी मिल सकता है"

मौसी के बोलने से पहले ही औरत बड़े मीठे अंदाज में कहा" क्यों नहीं बेटा ये तुम्हारी ही दुकान है वहाँ फ़्रिज में से खुद ले लो"

मैन बोतल निकाल कर हाथ में ली और बाहर की तरफ आकर बुजुर्ग को देखा तो उनका चेहरा लाल था पर खांसी कम हो चुकी थी। मैंने उनकी तरफ बोतल बड़ाई तो वो चौंक गए पर तभी वो आस पास देखने लगे जैसे वो किसी से डर रहे हो।

मैंने कहा "बाबा आप ये पानी पी लीजिये, खांसी में और आराम आ जायेगा, आपके होंठ एकदम सूख गए है"

बुजुर्ग ने सूखे गले से बोलने की कोशिश की पर इतना ही बोल पाए " बेटा तुम पानी ले जाओ, मैं ठीक हूँ"

मैंने बोतल उनके हाथ में पकड़ाते हुए कहा" बाबा प्यास मुझे भी लगी है पर मैं भी तभी पीऊंगा जब आप पी लोगे"

बुजुर्ग की आंखों में नमी सी आ गई और बोले" बेटा तू बहुत प्यारा है, पर अगर मुझे पानी पीते रिम्मी ने देख लिया तो मुझे रात का खाना भी नहीं मिलेगा। "

मैं समझ नहीं पाया कि वो कहना क्या चाहते है पर इतना जान गया कि वो रिम्मी आंटी से डर कर पानी नहीं पी रहे है। तो मैंने उनसे कहा" मैं दुकान की तरफ जाकर खड़ा हो जाता हूं, अगर कोई आएगा तो मैं खांस कर इशारा दे दूंगा, पर आप पानी पी लीजिये"

इतना कह कर मैं दुकान के अंदर की तरफ आ गया।

अब तक ज्यादातर सामान निकल चुका था तो मैं भी वही खड़े होकर सामान देखने लगा, थोड़ी देर रुकने के बाद मैं वापस बाहर की तरफ आया और बुजुर्ग को देखने के बढ़ गया और अब तक वो पानी पी चुके थे तो मैंने बोतल अपने हाथ मे ले ली और बुजुर्ग के चेहरे पर देखा तो होंठों पर मुस्कुराहट थी और मेरे पास खड़े होते ही उन्होंने दोनों हाथों से मेरे हाथों को पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया और साथ ही कहते जा रहे थे "जुग जुग जीओ बेटा, तुम्हें दुनिया का हर सुख मिले, इस बदनसीब को तुम्हारे सारे दुख मिल जाये"

मैंने उनसे उत्सुकता वश पूछा" बाबा आप रिम्मी आंटी से डर क्यों रहे थे"

इतना सुनते ही उनकी मुस्कुराहट चली गई और बोले" बेटा मेरा नसीब फूटा न होता तो मुझे इस बुढ़ापे में ऐसे दिन क्यों देखने पड़ते, रिम्मी को मेरा ग्राहकों से बोलना पसंद नहीं इसलिए मुझे यहाँ कोने में बैठा कर रखती है, और उसका कहना है कि बुड्डा प्यासा रहेगा तो ये सूखे मुँह से कम बोलेगा इसलिए सख्त हिदायत की मुझे पानी ना दिया जाए "

ये सुनकर जैसे मुझे पहली बार दुनिया में ऐसे लोग भी है, ये पता लगने पर बड़ा आश्चर्य और दुख भी हुआ। मैंने अब तक सिर्फ मौसी या मम्मी जैसे लोगों को ही जाना था। इसलिए इन बातों पर मेरा भरोसा करना कठिन हो रहा था। एक तरफ मौसी थी जो मुझे अनजान होते हुए भी अपने बच्चे की तरह मुझ पर ममता लुटा रही थी और दूसरी तरफ ये रिम्मी आंटी जो अपने पिता समान ससुर जी को सिर्फ इसलिए पानी नहीं पीने दे रही थी की वो ज्यादा न बोल पाये। अभी मैं सोच ही रहा था कि मौसी सामान का थैला लेकर बाहर आ गई। मैंने देखते ही बाबा की तरफ सिर झुका कर नमस्ते का इशारा किया और वहाँ से मौसी के पास आकर उनसे कहा" मौसी आज माँ ने ये काम मुझे दिया है तो आप ये थैला मुझे ही दे दे"

मौसी ने कहा" बच्चे तेरे लिए ये काफी भारी है, मेरी तो आदत है, तू ये मेरा पर्स और दूध की थैली ले ले"

मैंने मौसी से कहा" मैं आज आपका कहना नहीं मानूँगा, इसके लिए सॉरी "

ये कहकर मैंने वो थैला अपने हाथ में ले लिया और चलने लगा। मौसी ने भी कुछ सोचकर मेरे साथ चलने का फैसला किया। कुछ दूर चलते चलते मैंने मौसी से कहा" मौसी आप रिम्मी आंटी को कब से जानती है"

मौसी ने कहा" जब से उसकी शादी इस घर में हुई है तभी से"

मैंने कहा" क्या वो शुरू से ही इतनी बुरी है "

इस बात ने मौसी को चौंका दिया, उन्होंने मुझे देखा तो मैंने अपनी बात को साबित करने के लिए कहा" मौसी बाहर जो बाबा बैठे थे वो कह रहे थे कि उन्हें आंटी ने सिर्फ इसलिए पानी देने से मना किया है, कि वो किसी से ज्यादा न बोल पाये"

मौसी ने मेरी बात समझते हुए कहा" हाँ मैं जानती हूं, पर कुछ कर नहीं सकती उनके लिए, क्योंकि उनका इकलौता लड़का व्यापार में उलझ कर उन्हें समय नहीं दे सकता और रिम्मी को लगता है अब वो ही उस घर की सब कुछ है जो करे वही सबको मानना होगा"

मैंने कहा" मौसी मुझे भरोसा नहीं होता कि बच्चे ऐसे भी हो सकते है, अपने माँ बाप को ही भूल जाएं"

मौसी ने मेरे बालों में उंगलियाँ फिराते कहा" रंजन ये दुनिया तुम्हारी तरह अच्छी नहीं है, इसलिए ज्यादा दुखी मत हो"

मौसी ये कह कर कुछ उदास हो गई।  

मैंने उनका ध्यान हटाने के लिए कहा" मौसी सब आपकी तरह प्यारे होते तो दुनिया कितनी अच्छी होती"

मौसी ने मुस्कुराते हुए कहा" अच्छा तो मैं तुझे कितनी प्यारी लगती हूं, बता तो जरा"

मैंने कहा" मौसी आप मेरी माँ जैसी ही है, और आप जानती ही है कि माँ के लिए मैं कितना ज्यादा प्यार करता हूँ, तो आप से कम कैसे कर सकता हूँ।

मौसी ने मेरे माथे पर चूम लिया। और मुस्कुराते हुए कहा " ठीक है अब ज्यादा बातें नहीं देख तेरी सांसे भी फूल रही है थैला कुछ देर के लिए मुझे दे दे"

मैंने आगे चलते हुए कहा" मौसी मुझे पता है आप मुझे कितना प्यार करती है पर मैं अपनी माँ का कहना नहीं टाल सकता इसलिए आज चाहे कुछ हो मैं ही थैला लेकर घर जाऊंगा"

मौसी मेरी जिद समझ गई और फिर इधर उधर की बातें करते हुए हम घर आ गए।

करीब आधा घंटे बाद हम लोग वापस आ गए। आज इतना सामान लेकर इतनी दूर पैदल पहली बार चला था , बरना माँ कभी भी बिना बाइक के या रिक्शा के घर से निकलने नहीं देती थी।

मैंने फूलती सांस के साथ रसोई के दरवाजे पर झुककर सामान रखा तो उठने से पहले ही माँ ने मुझे गले से लगा लिया।

मैं जब अलग हुआ तो देखा, माँ आंसू पोंछ रही थी। मैंने कहा" क्या हुआ अब तो आपके कहने से इतनी दूर से सामान भी ले आया फिर क्यों रो रही हो आप "

माँ के बोलने से पहले ही मौसी ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा" सुमन, तू सच कहती थी रंजन तेरे लिए कुछ भी कर सकता है, आज एक पल के लिए भी इतना भारी थैला मुझे छूने नही दिया, और मैंने कहा तो कहता है कि माँ ने कहा है तो इस काम को मैं खुद ही करूँगा"

ये सुनकर माँ के आंसू और बढ़ गए और मुझे बड़े गौर से देखने लगी। मैंने उनके आंसू पोंछते हुए कहा "माँ रोइये मत चाहे मौसी की बात ना मानने के लिए मुझे मार लीजिये"

इतना सुनकर माँ के आंसू रुक गए और मुझे गले से कसके चिपका लिया।

पर तभी दरवाजे पर जानी पहचानी आवाज आई "आंटी"

वो आवाज अंजलि की थी, जो मेरे हटते ही दौड़ कर माँ के गले लग गई। वो रोये जा रही थी। माँ के लाख मना करने के बाद भी चुप हो नहीं रही थी।

माँ ने उसके कान में कुछ कहा तो अंजलि तुरंत चुप हो गई। और आंसू पोंछते हुए कहा "आपने मुझे एक दिन में पराया कर दिया कल खुद कह रही थी मेरे लिए दुनिया से लड़ जाएंगी अब मुझसे दूर जाते हुए एक बार नहीं सोचा"

माँ ने उसके माथे पर प्यार करते हुए कहा "मैंने कब तुझे पराया किया, अभी तुझसे मिलने तेरे स्कूल ही तो आ रही थी"

अंजलि ने चौंकते हुए कहा "क्या सच में"

माँ के बोलने से पहले ही झिलमिल ने बाथरूम के दरवाजे से निकलते हुए कहा" हाँ सच में"

अंजलि ने पहली बार झिलमिल को देख कर प्रश्नवाचक नजरों से माँ को देखा तो माँ ने कहा" ये झिलमिल है मेरी बेटी, बाकी बातें रंजन से कर तब तक मैं कुछ खाने को लाती हूँ"

अब अंजलि ने मुझे बड़े गुस्से में देखा और मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए छत पर ले जा रही थी, मैं ये बता पाता कि छत पर दिति होगी, इससे पहले ही उसने छत पर लाकर मुझे गले से लगाकर रोने लगी। अब मेरी समझ से बाहर था कि वो रो क्यों रही थी, मैं उसके सर पर हाथ फिरा कर उसे बार बार चुप रहने को कह रहा था पर उसके ऊपर तो जैसे कोई भूत सवार था, तभी दिति के कमरे से कुछ गुनगुनाने की आवाज आई तो अंजलि चौंक कर चुप हो गई और तुरंत अलग होते हुए कहा" यहाँ छत पर भी कोई रहता है बता नहीं सकते थे"

मैंने उसका ध्यान रोने से अलग करने को दिति को मन ही मन धन्यवाद दिया और बोला" तू मुझे बोलने ही कहा दे रही थी"

अंजलि ने फिर गुस्से से मेरी तरफ देखा, मैं कुछ बोल पाता वो बोली" माँ ने कुछ नहीं बताया तो तुम तो स्कूल आकर मुझे अपना पता बता ही सकते थे, मुझे उस सुमित से पता चला कि तुम यहाँ रहने आये हो तो स्कूल से पहली बार बंक मारकर यहाँ आना पड़ा।"

ये कहकर अपना पूरा गुस्सा मेरे ऊपर उड़ेल दिया।

पर तभी उसने कुछ ऐसा बताया कि मेरे आंसू झरने लगे।



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