प्रवीन शर्मा

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प्रवीन शर्मा

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कच्चा मन पक्का प्यार भाग पांच

कच्चा मन पक्का प्यार भाग पांच

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कहानी रंजन के शब्दों में.....

अंजलि ने पूछा" तुम्हे कोई लड़की पसंद है क्या"

मैं उसके सवाल में उलझ गया और बोला"तुम्हे क्यों लगा मुझे कोई लड़की पसंद है"

वो बोली" तुम बात घुमाओ मत बस हाँ या ना बताओ"

मैंने कहा"हाँ" 

उसका चेहरे का रंग उतर गया और वो उठकर जाने लगी, तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर रोका और मुस्कुराते हुए कहा "पूछोगी नही कौन"

उसने एक बार पलट कर मेरे चेहरे की तरफ देखा, पता नही मेरी मुस्कुराहट में उसे मजाक सा दिखा तो वो मेरा हाथ झटक कर दरवाजे से बाहर जाने लगी, पर जब तक वो दरवाजे तक पहुंचती मैंने कहा " मेरे पसंद की लड़की का फोटो तुम्हारे कमरे में क्या कर रहा है"

मैंने उसकी उदासी को दूर करने की मंशा से उसकी टेबल पर रखा उसका फोटो देखते हुए उसे चौंकाने के मूड से कहा था पर कुछ उल्टा ही हो गया। 

हुआ ये कि मैं उसका फ़ोटो फ्रेम हाथ मे पकड़े हुए ये सब कह रहा था, मेरे मजाक से पता नही क्यों उसे गुस्सा आ गया और उसने मेरे हाथ से फ़ोटो फ्रेम छीनने की कोशिश की मगर मैंने उतनी ही कसकर फ्रेम पकड़ रखा था, इस बीच जब उसने झटके से खीचने की कोशिश की तो फ्रेम जमीन पर गिरकर टूट गया, मुझे पता था ये फ्रेम उसके लिए उसके पापा का गिफ्ट था इसलिए बड़ा ही अनमोल था, मैं इस अचानक हुई इतनी बड़ी गलती के पश्चताप में रहकर अंजलि से नजरें नही मिला पा रहा था इसलिए बैठकर फ्रेम के टुकड़े चुनने लगा तभी अंजलि ने मेरे हाथ से टुकड़े झटके से गिरा दिए मैं डर गया कि अंजलि को इतना बुरा लगा है कि शायद वो मुझे माफ़ करने के मूड में नही है इसलिए ऐसा कर रही है, पर जब मैंने उसकी आंखें देखी तो उनमें गुस्सा नही आंसू थे और वो मेरी हथेली के बीच मे कट के निशान से रिस्ता खून देखकर बह रहे थे मुझे तो अभी तक पता ही नही था कि ये खरोच मुझे कैसे लग गई, पर अब मैंने अंजलि से साफ साफ माफी मांगना ही सही समझा और कहा" अंजू प्लीज़ मुझे गलत मत समझना मैंने जानबूझ कर नही किया, ये बस ऐसे ही हो गया, तू जो सज़ा देगी मुझे मंजूर है बस गुस्सा मत होना"

अंजलि को पता नही क्या सूझा उसने हथेली को चूमा और माथे से लगा लिया ।इससे मेरा खून उसके माथे से बालों तक लग गया पर मुझे कुछ समझ नही आया, तो मैंने अपनी हथेली उसके हाथ से खींच ली, और नाराज होते हुए कहा" कुछ सुन भी रही है, मैं क्या कह रहा हूँ, और ये सब क्या कर रही है"

अंजलि इतनी देर में पहली बार मुस्कुराई और बोली" तुझे सज़ा दे रही हूँ और क्या, तूने मेरे पापा का इतना अनमोल गिफ्ट तोड़ दिया तो बदले में मुझे भी तो कुछ अनमोल ही मिलना चाहिए था, तो मैंने ले लिया"

मेरे लिए उसकी बातें बिल्कुल पहेली जैसी थी, तो मैं कुछ कह नही पाया, पर उसकी लौटी मुस्कुराहट से कुछ हल्का महसूस कर रहा था, इसलिए अब मैंने उससे कहा, " अब तेरी सज़ा पूरी हो गई हो तो मैं जाऊं, माँ को चिंता हो रही होगी, और दिति को भी तो पापा के बारे में बताना है"

इतना कहते ही अंजलि की मुस्कुराहट फिर चली गई, तो मैंने उसे पूछा" क्या हुआ, तू मेरे जाने से इतनी उदास क्यों होती है, अगर आंटी होती तो उनसे पूंछकर तुझे भी ले चलता, वैसे आंटी कहाँ है"

अंजलि ने कहा" माँ आज सुमित के लिए कपड़े दिलाने गई हैं"

मैंने पूछा" क्यों आज मेरे बिना ही मार्केट चली गई"

अंजलि ने कहा" तुम्हारे घर कल रात से कई बार फोन किये पर..."

अंजलि अपनी बात पूरी नही कर पाई उससे पहले ही आंटी ने मेरे सामने आते हुए कहा" हम्म इतने फोन करने का भी क्या फायदा जब रंजन को उसकी आंटी की कोई फिक्र ही नही है"

मैंने शर्मिंदा होते हुए कहा" वो आंटी घर मे कुछ ऐसा हो गया था कि मैं आपका फोन नही उठा सकता था"

आंटी ने चौंकते हुए कहा" ऐसा क्या हो गया, जो तुझे फोन उठाकर मेरी बात सुनने में भी मुश्किल थी"

मैं कुछ कह पाता तब तक अंजलि ने कहा" माँ आंटी ने घर छोड़ दिया और अब ये लोग कही और रह रहे है"

आंटी को इस बात से बड़ा झटका लगा इसलिए वहीं बैड पर धम्म से बैठ गई मैंने कहा" आंटी सब ठीक हो जाएगा आंटी आप चिंता मत करिए मेरी पापा से आज ही बात हुई है, जल्दी ही माँ भी मान जाएंगी"

आंटी ने मेरी बात से खुद को संभालते हुए कहा" पर रंजन, ऐसा क्या हुआ जो सुमन ने इतना बड़ा फैसला लिया"

मैंने कल से अब तक हुई सारी बात सिलसिलेवार आंटी को बता दी जिससे आंटी के आंसू बह निकले और उन्होंने मुझे अपने पास बैठाते हुए कहा" रंजन तू बहुत खुशनसीब है जो तुझे सुमन जैसी माँ मिली, उसके दिल मे तो हर किसी के लिए अपनापन और प्यार है चाहे वो उसकी सौतली बेटी ही क्यों न हो"

मैंने आंटी से कहा" सच कहा आपने, पर मैं सिर्फ इतना खुशनसीब ही नही और भी ज्यादा हूँ, इसलिए मेरे पापा,चैरी दीदी,झिलमिल, आप, अंजलि, और अब तो शारदा मौसी भी सब मुझे कितना प्यार करते है"

इस पर आंटी ने मेरे बालो में अपनी उंगलिया घुमाते हुए कहा" हम सब तुझे प्यार करते है पर तू हमे नही करता, वरना इतना कुछ हो जाने के बाद अब जाकर मुझे बताने का वक़्त मिला तुझे"

मैं उनकी शिकायत का जवाब सफाई के रूप में नही देना चाहता था इसलिए कहा" आंटी मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ, इसलिए तो आपको ये सब बताने ही तो यहाँ आया था।

" मेरा राजा बेटा" कहकर आंटी ने मुझे गले लगा लिया

पीछे खड़ी अंजलि मुझे घूसा दिखा रही थी, जैसे वो मेरे इस झूठ पर गुस्सा हो, पर झूठ से अगर मुझे आंटी का प्यार मिल रहा था तो इसमें मुझे कोई बुराई नही दिखी इसलिए मैंने अंजलि को आंख मार दी, वो पहले तो बुरा सा मुँह बना कर देखने लगी फिर हंसने लगी।

थोड़ी देर बाद मैं वहाँ से निकलने लगा तो आंटी ने कल शारदा मौसी के घर आने को कहा और मैं ऑटो से घर आ गया।

घर आया तो मैंने दरवाजा खटखटाया तो दिति ने दरवाजा खोला। मैंने चौंक कर पूछा " तुमने दरवाजा क्यों खोला"

दिति ने कहा" क्यों मैं दरवाजा नही खोल सकती क्या"

मैंने उसके अंदाज से हड़बड़ाकर कहा" नही मेरा वो मतलब नही था, तुम छत पर रहती हो, इसलिए तुम्हे नीचे देखकर चौंक कर पूछा था"

दिति ने मुस्कुराते हुए कहा "मैं मज़ाक कर रही थी, आप तो डर ही गए"

मैंने कहा" मैं अपने दोस्तों की नाराजगी से बहुत डरता हूँ इसलिए"

दिति ने और बड़ी मुस्कुराहट से कहा" तो आपने मुझे अपना दोस्त मान ही लिया"

मैंने कहा" जो आज तुमने मेरा साथ दिया उसके बाद न मानने की कोई बजह ही नही थी, वैसे माँ और बाक़ी सब कहाँ है"

दिति ने कहा" मुझे ज्यादा नही पता पर आंटी के साथ स्कूल से लौटने के बाद आंटी और झिलमिल फिर से शायद मार्केट चली गई और शारदा आंटी अभी अभी बाहर गई है आती ही होंगी।

तभी घर का दरवाजा खटका तो दिति ने खोला और मैं रसोई में पानी पीने चला गया ।

बाहर गिलास में पानी लेकर आया और बिना बाहर की तरफ देखे दिति के कंधे पर हाथ रखकर पूछा "कौन है दिति" तो मुझे एक जोरदार थप्पड़ पड़ा, मेरे हाथ से गिलास जमीन पर गिर पड़ा और मेरे होंठो के बीच से हल्का सा खून छनक आया जिसे देखकर बाहर खड़े आदमी के लिए दिति ने चीखकर कहा" पापा, ये क्या है"

अगला थप्पड़ दिति के गाल पर पड़ा तो मैंने देखा कि वो किवाड़ से टकरा गई जिससे उसके सिर पर खून निकलने लगा और वो गिरते गिरते बची।उसके आंसू निकलने लगे और वो अवाक सी वही खड़ी थी। मैं संभल कर खड़ा हुआ तो उस आदमी ने मेरा गलेमान पकड़ कर कहा" क्यों बे तू घर मे घुस कैसे आया, साले तेरी हिम्मत हुई कैसे, मेरी बेटी पर हाथ रखेगा, आज तेरी खाल उतार कर भुस भर दूंगा"

मुझे कुछ समझ नही आ रहा था मैं क्या बोलू और वो था कि भड़कता ही जा रहा था उसने जैसे ही अगला हाथ मुझे मारने को उठाया तो दरवाजे से आवाज आई" सुभाष छोड़ मेरे बेटे को वरना"

ये और कोई नही शारदा मौसी की गर्जना थी जिससे

उस आदमी ने हाथ तो नीचे किया पर मेरा गलेमान नही छोड़ा, और मौसी को देखते हुए कहा" शारदा बहन आपके घर कोई लड़का नही है, ये सोचकर ही तो अपनी लड़की को आपके यहाँ पर कमरा दिलाया था , अगर आपका कोई लड़का है तो पहले क्यों नही बताया"

शारदा मौसी ने मेरे पास आकर कहा" सुभाष पहले गलेमान छोड़ उसके बाद तेरी किसी बात का जवाब दूंगी"

मौसी गुस्से से लाल हो रही थी, इसलिए उस आदमी ने गलेमान छोड़ कर कहा" अब बताइये झूठ क्यूँ बोला"

तभी मौसी को मेरे गाल पर छपे उंगलियों के निशान और होठों से निकलता खून दिखा तो वो फट पडी और एक झन्नाटेदार चांटा आदमी के गाल पर रसीद दिया, फिर बोली" सुभाष शक की भी कोई हद होती है,अपनी बीबी को तो घर की जेल में कैद कर दिया है और अब ये सब, तेरी इतनी मासूम बच्ची को तो अपनी शक से बक्श दे"

चांटे की गूंज बड़ी थी तो वो आदमी अभी भी गाल सहला रहा था और फिर बोला" ठीक है,अपने झूठ का जवाब नही देना तो मत दो पर मैं अपनी मासूम बच्ची को यहाँ नही छोडूंगा"

इतना कहकर उसने डर से कांप रही दिति के सिर पर हाथ फेरकर कहा " मैं अभी टैक्सी लेने जा रहा हूँ, तू जाकर अपना सामान पैक कर"

इतना कहकर वो बाहर निकल गया और मैं तुरंत अंदर से दवाई का बॉक्स लाया और मौसी को देते हुए कहा" मौसी दिति के सर पर चोट लगी है,"

मौसी ने कहा" पहले अपनी चोट तो देख ले"

मैंने कहा" मैं ठीक हूँ मौसी, दर्द भी कम हो गया है, आप दिति को बैंडेज लगा दीजिये न"

तब तक झिलमिल ने मेरे चेहरे को देखते हुए माँ को कहा" माँ देखो ना भैया को कितनी चोट लगी है खून बह रहा है"

 माँ और झिलमिल अभी लौटे थे, माँ अभी भी दरवाजे पर खड़ी कांपती दिति को गले लगा कर उसके सर पर हाथ फेर कर उसे सामान्य करने की कोशिश कर रही थी । तभी पीछे से जोरदार आवाज आई " तू अभी तक यही खड़ी है, अपना सामान नही लाई"

माँ ने गुस्से में पलटकर देखा तो उस आदमी के चेहरे के 12 बज गए और वो दरवाजे पर चुपचाप खड़ा रह गया।



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