प्रवीन शर्मा

Drama Romance Tragedy

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प्रवीन शर्मा

Drama Romance Tragedy

कौन अपना कौन पराया भाग 1

कौन अपना कौन पराया भाग 1

14 mins
510


पात्र 

सिम्मी : नायिका

समीर : नायक

अर्पिता : समीर की प्रेमिका और सिम्मी की दोस्त

अमनजोत: सिम्मी की माँ

बुलेट की आवाज ने पूरी गली दहला दी थी सुन कर सिम्मी ने दुकान के काउंटर से झांकते हुए देखा समीर जा रहा था।नीला कुर्ते से गठा शरीर उभर उभर कर बाहर आ रहा था । सिम्मी ने उसे कई बार अपनी दुकान पर ही देखा था कभी रोजमर्रा के सामान लेते कभी बस सिम्मी की माँ का हालचाल पूछते पर कभी बात करने की हिम्मत नही हुई पर हर बार उसे अगली गली के मुड़ने तक जरूर देखती थी। ऐसा ही उसने आज किया था पर आज उसे मां ने झांकते देख लिया और पूछ बैठी की कौन था पहले तो चौक गई फिर हल्के से बोली समीर आया था। मां के उत्तर से संतुष्टि जाहिर करने के अंदाज पर सिम्मी के जान में जान आई।

सिम्मी सुलझी हुई 18 साल की लड़की थी जो अभी अभी बचपने से निकलना शुरू कर रही थी पर लड़कों से अच्छी खासी दूरी बना कर रखती थी क्योंकि उसके पिता उसकी माँ को ,जब वो पांच साल की थी तभी छोड़ गए थे ये उसके लिए सदमा था , इस बात के लिए वो हर लड़के हर मर्द को दोषी मानती थी पर ना जाने समीर में क्या बात थी वो स्कूल के दिनों से उसकी हर चीज़ का ध्यान रखने लगी पर समीर तक कोई बात नही पहुचने दी । अब वो स्कूल पूरा कर लेने से समीर से भी दूर हो गई थी जिसका उसे अफसोस अक्सर होने लगा था ।उसकी माँ के पास पैसे ना होने से न तो शादी और न पढ़ाई की बात आगे बढ़ पाई क्योंकि आमदनी का एक मात्र स्रोत थी छोटी सी किराने की दुकान ,जो इस पतली सी गली में इकलौती थी।

समीर सीधा साधा पर बड़ा ही हैंडसम जवान था कि हर लड़की उस पर मरे पर वो था कि अर्पिता की आंखों का दीवाना था दोष उसका भी नही था अर्पिता एक तीखे नाक नक्श की पर थोड़ी गहरे रंग की लड़की थी, बोले तो मानो फूल झड़ते हो आखिर अर्पिता को भी समीर से प्यार हो ही गया था और ये बात सिम्मी को अर्पिता ने ही बताई तो घर आकर वो बहुत रोई वो चाहत हार चुकी थी पर फिर भी कुछ भी मां को जाहिर नही होने दिया और स्कूल की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी तो अब घर पर ही कुछ न कुछ करती रहती थी। मां उसके घर रहने से कुछ आराम में आ गई थी क्योंकि वो अब हर घर का काम सिम्मी भरोसे छोड़ सकती थी।सिम्मी भी बस एक बार समीर को देख कर मन समझा लेती थी पर उदासी का रंग चेहरे पर चिपक कर रह गया था । माँ भी कुछ कुछ समझ गई थी पर क्या करती समीर एक अमीर बाप का लड़का था और वो उसके सामने किस हैसियत लायक थी वो जानती थी तो वो अनजान बने रहना ही ठीक समझती थी पर सिम्मी को समीर को देखने का मौका छीनती नही थी और वो प्यार छिनने का दर्द अपने दिल से लगाये थी तो अपनी इकलौती बेटी के आड़े नही आना चाहती थी पर कठोर बन कर दिखाती थी कोई बिन बाप की लड़की का गलत फायदा न उठा पाए ।समीर को वो काफी वक्त से जानती थी इसलिए अपनी बेटी की पसंद को पसंद करती थी पर दुख ये था कि कुछ किया भी नही जा सकता था।

आज सिम्मी कुछ खुश थी कि उसके जन्मदिन पर पहली बार समीर से कुछ बात हुई ,हुआ ये की समीर चाय की पत्ती लेने आया और माँ नहाने के लिए बाथरूम में थी तो उसे मजबूरन जाना पड़ा।

 सिम्मी को देख कर बोला "कैसी हो "

सिम्मी ने अपने दिल की खलबली को डिब्बे इधर उधर करने में छुपा लिया वार्ना उसका कलेजा मुह को आ रहा था ।

सिम्मी को व्यस्त देख समीर ने थोड़ी ऊंची आवाज में पूछा " कैसी हो "

अब सिम्मी को बोलना पड़ा"ठीक "

समीर कुछ और पूछ पाता सिम्मी ने सवाल दागा"क्या चाहिए"

समीर बोला"मिलने तो आंटी से आया था पर अब चाय पत्ती दे दो"

सिम्मी का मन हुआ कह दे मुझसे बात कर लो पर मन मे रुक गई बात के साथ बोला "कितनी चाहिये"

समीर अपने फ़ोन में कुछ ढूंढता हुआ बोला" 100 ग्राम का पैकेट दे दो"

समीर ने फ़ोन से नज़र उठाई तो सिम्मी चाय का पैकेट हाथ मे पकड़े उसे ही देख रही थी 

समीर बोला "क्या देख रही हो"

सुनते ही सिम्मी दिवास्वप्न से जागी और बिना पैसे लिए अंदर भाग आई

 समीर को लगा कि रसोई में कुछ रखा होगा इसलिए अंदर भाग गई तो तेज आवाज में बोला "अरे पैसे काउंटर पर रखे है उठा लेना"

इधर सिम्मी की सांस अभी भी रुक नही रही थी जैसे दिल हलक में अटक गया हो ,

सिम्मी की माँ अब तक नहा कर बाहर आते है बोली " कौन था सिम्मी"

सिम्मी की आवाज नही निकली तो पास आकर बोली "क्या हुआ हांफ क्यों रही है "

सिम्मी ने बात बदलते हुए कहा "चूहा पैर... पर चढ़..."

और ये कहते रसोई में चली गई।

सिम्मी का आज तक का सबसे अच्छा जन्मदिन जा रहा था। उसने मा की पसंद का खाना बनाया और माँ ने भी बहुत तारीफ की इससे और खुश होकर वो चहकने लगी तो माँ को लगा उसके चेहरे से अब उदासी का बादल हटने लगा है , ये सोच कर वो भी आज सोचने लगी कि आज वो उससे कठोरता की कोई बात नही करेगी और इसी पर वो सिम्मी के सिर पर हाथ फेरते बोली" क्या गिफ्ट चाहिए तुझे"

सिम्मी उनकी ओर देख कर चौकते हुए बोली" तुम्हे याद था"

माँ बोली" जब मैंने पैदा किया है तो भूल कैसे जाती"

सिम्मी और चहक के बोली" तो मेरा गिफ्ट"

मा बोली " खुद ही पसंद कर खरीद लेना मेरी पसंद मेरी तरह खराब होगी" ना चाहते हुए आदतन बात एक ताने की तरह निकल गई।

सिम्मी समझ तो गई पर कुछ बोली नही और चुपचाप खाने लगी।

जब सूरज की तपिश कम हुई तो माँ ने आवाज लगाई "सिम्मी जल्दी आओ रिक्शा आ गया है बाजार चलना है "

सिम्मी हड़बड़ी में रिक्शे में बैठ गई तो माँ ने पुराने ढर्रे में बोला" ताला ठीक से लगाया"

सिम्मी को याद आया उसने ताला लगाया ही नही अगर मा को पता चला तो खैर नही तो रिक्शे से जल्दी से उतरी और बापस आ कर बैठ गई ।

मा बोली" ठीक से लगा था"

सिम्मी बोली" हॉ " और मा से उसकी गलती छुपी रही इसके लिए मुस्कुराने लगी, सोचने लगी वार्ना रास्ते भर के लिये एक टॉपिक मिल जाता।

आखिर उबड़ खाबड़ रोड से होता हुआ रिक्शा स्वर्ण चौक में रुक गया। मा ने बटुए से नोट निकाल कर रिक्शेवाले को दिया और आगे बढ़ गई ।

अब तक सिम्मी ये सोच ही रही थी कि माँ क्या ख़रीदवायेगी मा की आवाज आई" खड़ी क्या है, चल सामने वाली दुकान से झुमकी पसंद कर ले"

सिम्मी ने आव न देखा ताव जल्दी में एक लड़की से टकरा गई , उसने उसका गिरा हुआ बैग उठाते हुए माफी मांगने के लिए चेहरा देखा तो काला चश्मा लगाए अर्पिता सामने थी एक पल में कई विचार मानो कौंध गए कि ये इसे क्या हुआ जो छड़ी के सहारे की नौबत आ गई ।

सिम्मी कुछ पूछ पाती इससे पहले ही मा ने सिम्मी को डांटते हुए कहा "देखकर क्यों नही चलती ये नही देख सकती पर तू तो देख सकती है"

तो सिम्मी ने छड़ी अर्पिता को थमाते हुए कहा" अर्पिता ये कैसे और कब, ये क्या हो गया"

अर्पिता आवाज पहचानती हुए खुशी से बोली " सिममो तू तो स्कूल के बाद गायब ही हो गई तो मैने बाकी सब देखना भी बंद कर दिया " कह कर उससे लिपट गई और रोड पर भीड़ में खड़े होने के बाद भी वो दोनों सब कुछ भूल गए तो माँ ने याद दिलाया "अरे पगलियों ये भरत मिलाप रोड पर ही करोगी चलो सामने किनारे चलो वहाँ बात करना "कह कर वो भी मुस्कुराने लगी पर तभी पीछे से समीर की आवाज ने सभी को चौका दिया " अप्पू तू यहाँ क्या कर रही है तुझे तो अंदर रेस्तरां में बैठा कर .." अरे आंटी आप यहाँ "

माँ ने इस पर सिम्मी से फिर वही बात दोहराते हुए कहा " तुम और तुम्हारी अप्पू दोनो अजीब हो सब बातें सड़क पर ही कर डालोगे क्या"

"सॉरी आंटी चलिए अंदर" कह कर समीर आंटी और अर्पिता का हाथ पकड़ कर अंदर रेस्तरां में ले जाने लगा इधर सिम्मी ने आते हुए आंसू थाम कर चलते चलते कनखियों को पोंछ कर पीछे पीछे चलने लगी साथ ही बहुत सारी बातें एक साथ दिमाग मे कौंधने लगी , मेरी इकलौती दोस्त का नसीब भी मेरी तरह खराब है, ये क्या हुआ, समीर कैसे इसे संभाल पायेगा ,इन लोगों ने अभी तक शादी की या नही, ...

ये सोचते सोचते रेस्टोरेंट में दाखिल हुए तो कोने एक सीट समीर की बुक थी तो वही दो सीट मंगवा ली अब 

समीर ने आंटी आप लोग आ रहे हो तो बताया नही वरना किसी और कम भीड़ वाले रेस्तरां में सीट बुक कर लेता ।

माँ ने बात को बदलते हुए कहा "अर्पिता तुम्हे अपने पति की बात माननी चाहिए अगर आज कुछ गलत .. कितनी भीड़ शहर में "

अर्पिता ने कुछ कहने को मुंह खोलने का सोच पर तभी समीर ने उसके हाथ को दबा दिया और खुद कहने लगा "आंटी अभी हमने शादी नही की क्योंकि अर्पिता खुद को इस हालत के साथ जीना सीखने के लिए वक़्त .."

समीर अपनी बात पूरी कर पाता उससे पहले ही अर्पिता बोली" क्यों री सिममो तेरा पहला बर्थ डे है जो मुह में दही जमाये बैठी है " 

समीर और माँ दोनो का ही ध्यान सिममी की ओर गया जो एक टक अर्पिता की चश्मे की तरफ बड़े उदास मन से देख रही थी ।

सिम्मी के चेहरे की उदासी को बिना देखे भी अर्पिता बड़ी आसानी से देख पा रही थी । आखिर बचपन की सहेली इतने दिन बाद मिली थी ।

सिम्मी कुछ कहती तब तक अर्पिता बोली" मुझे पता है तू मुझसे नाराज है पर मैं क्या करूँ पर इस काले चश्मे ने तेरे पास आने नही दिया कि तू इसी तरह आंसू बहायेगी और मैं अंधी उन्हें पोंछ भी नही पाउंगी"

सिम्मी ने इस बात पर खुद आंसू पी लेना ही उचित समझा और रुंधे गले से बोली "ये सब कैसे "

"तू मुझे छोड़ कर घर बैठ गई इसलिए मैंने सोचा जब तू नही दिखी और दुनिया देखकर क्या करूंगी" अर्पिता ने अपने चिरपरिचित मीठे अंदाज में कहा क्योंकि आज उसकी सहेली का जन्मदिन था जिस पर वो सिम्मी को और नही रुलाना चाहती थी।

सिम्मी ने कुछ और नही पूछा तो शांति तोड़ने का काम समीर ने किया और बोला "आंटी आपने सिम्मी को गिफ्ट दे दिया क्या "

सिम्मी की माँ ने कहा " वही दिलवाने तो जा रही थी तब तक तुम लोग मिल गए "

अर्पिता बोली " समीर मेरी तरफ से सिम्मी को कोई गिफ्ट दिला दो न प्लीज "

समीर बोला" ठीक है चलो उठो"

अर्पिता बोली" जैसे तैसे तो आंटी के पास बैठने का मौका मिला वो भी तुम छीनना चाहते हो तुम और सिम्मी चले जाओ"

सिम्मी ने मां की तरफ देखा तो माँ असमंजस में थी क्या कहती तभी अर्पिता ने फिर बोला" आंटी आप क्या गिफ्ट दिला रही थी सिममो को "

मां ने असमंजस की स्थिति से बाहर निकलते कहा "बेटा बस छोटे से झुमके दिलाने का सोचा था"

समीर का हाथ पकड़ कर अर्पिता ने झुकने का इशारा किया तो समीर भी कान अर्पिता के मुँह के पास ले आया।

और अर्पिता ने कुछ कहा तो समीर ने हाँ कह दिया।

और सिम्मी के तरफ देख कर समीर ने कहा" सिम्मी चले क्या "

सिम्मी ने फिर माँ का चेहरा देखा तो माँ ने कहा "ले ये पर्स ले जा "

सिम्मी समीर के साथ चली गई और ज्वेलर्स की दुकान में घुस गई और झुमके देखने लगी ।

इधर अर्पिता ने कहा "आंटी आप बड़ी मुश्किल से तो मिले हो यहाँ मेरे पास आकर बैठिये न "

सिम्मी की माँ ने अपने हाथ अर्पिता के पास रखे तो अर्पिता ने अपना सिर सिम्मी की माँ के कंधे पर रख लिया ।

सिम्मी की माँ भी अर्पिता के हाथ को हाथ मे लेकर सहलाने लगी ।

तभी अर्पिता ने कहा " आंटी मैं आपको माँ कह सकती हूं"

ये सुनकर सिम्मी की माँ की आंखों में आंसू भर आये और फिर बोली "क्यों नही बेटा जैसी सिम्मी वैसे ही तू है मेरे लिए "

अर्पिता बोली " सिममो ने मुझे कितनी बार आपके बारे में बताया पर कभी आपसे मिल न सकी आज आपसे मिलके लगा मुझे मेरी माँ मिल गई"

इतना कहते ही बिलख पड़ी और सिम्मी की माँ को कस कर चिपका लिया । इस पर सिम्मी की माँ भी रोते हुए उसके काले चश्मे को उतार कर आंसू पोछने लगती है ।

फिर सिम्मी की माँ प्यार से अर्पिता के गाल पर थपकी देते हुए कहती है"तू मुझसे मिलने नही आई और अपनी गलती पर मुझे रुला रही है"

इस पर अर्पिता ने खुद को संभाला और बोली " माँ आज तुमसे मिलकर मेरे दिल का बोझ हल्का हो गया "

सिम्मी की माँ बोली " ऐसा क्यों कह रही है "

अर्पिता ने बात बदलते हुए कहा" अच्छा बहुत हुआ रोना रुलाना एक बात बताइये सिम्मी के लिए कोई लड़का देखा "

सिम्मी की माँ इस सवाल से चौंक गई फिर अचरज से अर्पिता को देखकर बोली "तू क्यों पूछ रही है"

अर्पिता बोली" प्लीज बताइये ना, आपने मुझे अपनी बेटी कहा अब एक बेटी से दूसरी की बात छुपाना क्या सही है"

सिम्मी की माँ ने सामान्य होते हुए कहा" अरे कहा कोई लड़का ढूंढ पाई हूँ एक तो आज कल अच्छे लड़के मिलते कहा है और फिर हमारी गरीबी के कारण कुछ बात आगे नही बढ़ पाती"

अर्पिता मुस्कुराते हुए बोली" मेरी नज़र में एक लड़का है कहो तो बात चलाऊं"

सिम्मी की माँ की आंखे झपकना भूल गई फिर आश्चर्य से बोली " हा क्यों नही पर दान दहेज हम ज्यादा नही दे पाएंगे"

अर्पिता खिलखिलाते हुए बोली "आप लड़के को जानते हो और मैं उसके घरवालों को उसके घरवालों को बस लड़की चाहिए सुंदर घरेलू और संस्कारी "

सिम्मी की माँ ने कहा" अच्छा कौन है वो "

अर्पिता तपाक से बोली"समीर"

अब ये सुन कर तो सिम्मी की मां की बोलती बंद हो गई

अर्पिता ने फिर कहा " मैं जानती हूं कि सिममो समीर दोनों एक दूसरे से प्यार करते है पर मेरी वजह से चुप है"

सिम्मी की माँ उसकी बातों को बड़े ध्यान से सुन रही थी

अर्पिता आगे कहती है " मैं शुरू में यही समझी थी कि सिम्मी सिर्फ समीर को दोस्त के दोस्त की तरह ही समझती है पर कुछ दिन पहले जब मैं उसकी एक और दोस्त रंजना से मिली तो उसने बताया सिर्फ इस शक की वजह से की मैं समीर से प्यार करती हूं वो बीच मे से हट गई और मुझे कुछ बताने का मौका भी नही दिया "

बात तो अब सिम्मी की माँ को भी समझ मे आने लगी क्योंकि वो भी जानती थी सिम्मी समीर से प्यार करती है 

और सिम्मी ने खुद बताया था कि अर्पिता और समीर प्यार करते है और शादी करने वाले है।

सिम्मी की माँ ने आगे पूछा "तुम्हे समीर का कैसे पता चला कि वो तुमसे नही सिम्मी से प्यार करता है "

अर्पिता ने गहरी सांस लेकर बताया "जब मुझे सिम्मी के प्यार वाली बात समीर को बताई तो पहले तो वो मुकर गया पर जब मैंने कसम देकर उससे पूंछा तो बोला की हा उसे भी लगा था कि सिम्मी मुझे प्यार करती पर मैं तब तक तुम्हरे प्यार के लिए हां कह चुका था और अब तो मैं सिर्फ तुम्हारा हूं "

अर्पिता ने आगे कहा " मा मैं नही चाहती कि समीर मुझ अंधी के साथ भटके प्लीज मेरी इस काम मे मदद करो तो मैं..... " इतना कहते उसका गला भर गया और फिर सिम्मी मा का हाथ पकड़ कर रोने लगी।

सिम्मी की माँ को कुछ भी समझ नही आ रहा था कि वो क्या कहे और पर फिर भी वो अर्पिता के सिर पर हाथ फेर रही थी ।

तभी समीर और सिम्मी अंदर दाखिल हुए तब तक अर्पिता का रोना भी बंद हो गया था पर सिम्मी देखकर पहचान गई और बोली "अप्पू तुझे शर्म नही आती मेरे जन्मदिन पर तु रोये जा रही है इसलिए कुछ पूछ नही रही थी तेरी बात मान कर तेरा गिफ्ट खुद ले आई और तू है कि टसुए बहाए जा रही है "

अर्पिता खुद को संभालते हुए बोली " अरे बड़ी जल्दी खरीददारी हो गई क्या क्या लाई"

"वही जो तूने समीर को समझाकर भेजा था ..झुमकी" सिम्मी झुमकी अर्पिता के हाथ मे रखते हुए बोली 

अर्पिता बोली" चल अच्छा पहन कर तो दिखा मेरी न सही तो माँ की आंखों से देख लुंगी"

इस पर सिम्मी चौकते हुए बोली "कौन माँ"

अर्पिता सिम्मी के कंधे पर सिर रखकर बोली "ये माँ"

सिम्मी चिढ़ाने के लहजे में बोली "अरे वाह वाह मैंने थोड़ी देर माँ को क्या छोड़ा तूने डाका डाल दिया"

सिम्मी की माँ ने कहा " सिम्मी तो क्या हुआ अब मेरी दो बेटियां है "

सिम्मी ने हंसते हुए कहा" हमें तो पहले भी ताने ही मिले अब तो गाली खा खा कर जीना होगा" इस पर सभी हँसने लगे ।

माँ ने कहा" अप्पू, तो कब आओगी अपनी माँ से मिलने"

अर्पिता ने कहा" माँ से मिलने का कोई वक़्त थोड़े ही होता है, जब चाहूंगी आ जाऊंगी"

समीर के साथ नाश्ता कर चारो लोग बाहर रोड पर आ गये तो अर्पिता ने हाथ मे सिम्मी की माँ का हाथ हाथ मे लेकर कहा "मेरी बात पर गौर करना और इस सिम्मी को भी समझाना प्लीज माँ अब आपका ही सहारा है।

सिम्मी और माँ काफी देर तक अपने अपने खयालो में समीर और अप्पू को बाइक पर जाते देखते रहे।


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