प्रवीन शर्मा

Romance

3.0  

प्रवीन शर्मा

Romance

कच्चा मन पक्का प्यार- भाग द्वितीय

कच्चा मन पक्का प्यार- भाग द्वितीय

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अब तक आपने पढ़ा कि रंजन एक 14 साल का बच्चा है जो स्कूल में पढ़ते पढ़ते अपनी रजनी टीचर के प्यार में पड़ चुका है, जबकि अंजलि नाम की एक लड़की उसे दिलोजान से चाहती है, रंजन इस बात से अनजान अपनी ही दुनिया मे रह कर कशमकश में जी रहा है। रंजन का दोस्त सुमित उसे रजनी को लेकर कई बार समझा चुका है कि ये सिर्फ आकर्षण है पर रंजन का भूत उतरता ही नही। इसी दौरान अंजलि रंजन के और नजदीक जाने की कोशिश कर रही है जिसमे वो किस्मत से सफल भी हो रही है। 

पर एक शाम रंजन जब नींद में था तो उसे उसकी माँ की चीख कर बोलने की आवाज सुनाई दी।

मा की चीखने की आवाज आने से रंजन की नींद टूटी थी और अभी भी रंजन ठीक से जाग भी नही पाया था कि तब तक भड़ाक से पास के कमरे का दरवाजा बंद होने की आवाज आई और झगड़े का शोर शांत हो गया।

अब हिम्मत कर रंजन ने अपने कमरे का दरवाजा खोला तो देखा एक 8-9 साल की बच्ची डाइनिंग टेबल के पास ही खड़ी रो रही है और अशोक रंजन के पास वाले कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए कह रहा है " सुमन दरवाजा खोल मैं तुम्हे सब समझा दूंगा, प्लीज मेरी बात एक बार सुन ले..एक बार दरवाजा तो खोल"

अब रंजन हिम्मत करके अशोक के पास पहुंच कर बोला" पापा, माँ को क्या हुआ ये दरवाजा क्यों बंद है"

अशोक को जैसे रंजन में कोई आशा की किरण दिखी तो रंजन का हाथ थाम कर बोला " बेटा, बस तेरी माँ किसी बात से मुझसे नाराज है, मैं उसे मना रहा हूँ और वो दरवाजा ही नही खोल रही"

अब रंजन ने दरवाजा खटखटाया और आवाज लगाई " माँ, मैं रंजन हूँ दरवाजा खोलो पापा अपनी गलती की माफी मांग तो रहे है "

अंदर से कोई आवाज नही आती तो अशोक और रंजन दोनों का दिल धक से रह जाता है। क्योंकि आज तक रंजन की एक आवाज पर सुमन कहीं भी हो कोई काम कर रही हो सब छोड़कर आ जाती थी पर आज कुछ अलग बात थी।

रंजन फिर कोशिश करता है "माँ, पापा से ना सही मुझसे तो बात करो बस एक बार दरवाजा खोल दो मुझे डर लग रहा है "

फिर भी कमरे में कोई हलचल नही सुनाई दी तो अब रंजन की हिम्मत टूट जाती है और आंसू का गुबार फूट जाता है वो आवाज देना चाहता है पर उसके रुंधे गले से आवाज बाहर ही नही आती बस सिसकियां सुनाई देती है। रंजन वही दरवाजे के सहारे फर्श पर बैठता चला जाता है जिस पर अशोक के भी आंसू आंखों में उतर आते है जिससे समझा जा सकता था कि अशोक भी रंजन से कोई कम प्यार नही करता था। अब रंजन की हालत देखकर अशोक अपना आपा खो बैठता है और गुस्से में बोलता है " सुमन ठीक है अगर तुझे लगता है कि मैंने बहुत बड़ा पाप किया है तो मैं अकेला अपना प्रायश्चित करने जा रहा हूँ पर इस रंजन ने तेरा क्या बिगाड़ा है इसे संभाल ले, बस आखरी बार अपना चेहरा दिखा दे फिर अपनी मनहूस सूरत मैं कभी नही दिखाऊंगा।"

दरवाजा खुलता है और सुमन रंजन को वही फर्श पर बैठते हुए कस कर सीने से चिपका कर खुद भी रोने लगती है।

रंजन ने माँ का ये रूप कभी भी नही देखा था और अशोक के उसे देखने से लग रहा था कि उसे भी सुमन को इस हालत में पहली बार पाया था।

सुमन ने रंजन की गहरी सिसकियों के साथ रोना देखकर खुद को थोड़ा शांत किया और रंजन का चेहरा उठा कर उसके आंसू पोछे और उसे लेकर खड़ी हुई और बोली " रंजन तुझे अपने पापा या मम्मी में से किसी एक को चुनना हो तो तू किसे चुनेगा"

रंजन अपनी माँ के सवाल से उसके चेहरे की पत्थर सी सख्ती देखता ही रह गया। वो कभी सुमन कभी अशोक के चेहरे को देख कर तय नही कर पा रहा था कि इस सवाल का क्या मतलब है।

तभी उसकी जिज्ञासा को कम करने के लिए सुमन ने दोहराया" रंजन मुझे बस अपना जवाब दे दे हम में से कोई तुझ पर नाराज नही होगा।"

रंजन ने दिल पर संयम बांधते हुए अपने रुंधे गले से कहा " माँ आपको" और सुमन के गले लग गया।

अभी लगता है सुमन के दिल का गुबार शांत नही हुआ था तो सुमन बोली " सोच ले रंजन तेरा आखरी फैसला है"

रंजन ने इस बार सुमन का हाथ पकड़ कर कहा " हाँ माँ यही है"

अब सुमन ने उसे दिल से लगा लिया और आंखों से आंसू पोछते हुए कहा" तो ठीक है चल रंजन अपना समान पैक कर हमें चलना है "

रंजन और अशोक दोनों ही बोल पड़े " कहाँ"

सुमन ने एक बार अशोक का चेहरा गुस्से से देखा और फिर रंजन का हाथ पकड़े पकड़े रंजन को उसके कमरे में ले आई और बोली" जब तूने एक बार मुझे चुन लिया तो कुछ पूछने की जरूरत नही है"

रंजन की अब कोई सवाल पूछने की हिम्मत न हुई और वो अपना सामान एक सूटकेस में भरने लगा और इस तरह अपना सारा जरूरी सामान पैक कर सुमन के सामने आ गया जो रंजन के बैड पर सिर झुकाए बैठी थी।

सुमन ने गहरी सांस ली और रंजन का सूटकेस हाथ मे ले लिया साथ ही रंजन ने अपना स्कूल बैग कंधे पर ले लिया और दोनों बाहर निकले तो अशोक सिर नीचे किये डाइनिंग टेबल के पास कुर्सी पर बैठा था और वो लड़की रोते हुए सुमन का चेहरा देख रही थी।

पर बिना किसी भाव आये सुमन ने दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाए तभी पीछे से किसी ने सुमन की साड़ी का पल्लू खींच कर रोकना चाहा।

सुमन का गुस्सा जैसे फट पड़ा और पलट कर चीखते हुए कहा " अशोक क्या हु..."

कहते कहते जब सुमन पलटी तो आधी बात मुह में रह गई क्योंकि पीछे अशोक नहीं वो लड़की थी जो इस सुमन की दहाड़ से सहम गई थी और उसकी सांसे ऊपर नीचे होते हुए दिखाई दे रही थी। उसकी इस हालत पर न जाने क्यों पर सुमन का गुस्सा कम हुआ और वही घुटनों के बल बैठ कर लड़की के कंधो पर हाथ रखते हुए बोली" देखो बेटा तुम अपने पापा के पास रहो वो तुम्हें बहुत प्यार करते हैं।"

ये सुन कर रंजन को आश्चर्य हुआ कि वो लड़की उसकी बहन है पर हालात ऐसे थे कि खुश भी नही हो सकता था

उधर लड़की ने जब सुमन की बात सुनी तो बोली" मुझे माँ ने मरते हुए कहा था कि मेरी एक और माँ भी है जो मुझे उनसे भी ज्यादा प्यार करती है इसलिए पापा के साथ मैं आ गई पर नानी ठीक कहती थी मैं इतनी मनहूस हू जहाँ जाउंगी बस खुशियों में आग लगा दूंगी "

इतना वो लड़की एक सांस में बोल गई पर आगे बोलने से पहले ही उसकी सिसकियां इतनी बढ़ गई की कुछ बोल न सकी। 

ये हालत देखकर सुमन की ममता फूट पड़ी और लड़की को सीने से चिपका लिया। करीब पांच मिनट तक दोनों ऐसे ही चिपके रहे अब कुछ हद तक सुमन और लड़की दोनों ने ही अपने आप को संभाल लिया था तो सुमन ने कहा" तुम्हारी नानी गलत कहती थी तुम कोई मनहूस नही हो, तुम तो मेरी प्यारी सी छुटकी हो,इस सब मे तुम्हारी कोई गलती नही है, चलो अब रोना बंद करो"

लड़की सुमन को अब भी शंकित आंखों से देख रही थी 

तो सुमन ने उसमे भरोसा जगाने को कहा" देखो मुझे तुम्हारा नाम न तो पता है ना ही जानना है इसलिए मैंने जो अपनी बेटी के लिए नाम सोचा था उसी नाम को तुम्हें देना चाहती हूँ, तुम्हें बुरा तो नही लगेगा अगर नई माँ तुम्हें नया नाम दे तो।"

लड़की इतना सुनकर जैसे सुमन के चेहरे में अपनी माँ का चेहरा देखने की कोशिश कर रही थी और गर्दन हिलाकर ना कह रही थी।

इतनी मासूमियत ने सुमन का दिल जीत लिया और सुमन ने कहा "आज से तुम मेरी झिलमिल हो बोलो हो ना"

झिलमिल नाम मिलने से ज्यादा उसे माँ मिलने की ज्यादा खुशी थी तो उसने उछलकर सुमन के गले मे दोनों बाहें डाल दी और सुमन के गाल पर पुचकार लिया जिसे देखकर एक बार सुमन ने झिलमिल को चौंकती निगाहों से देखा फिर मुस्कुरा कर उसका माथा चूम लिया।

सुमन की मुस्कुराहट देखकर अशोक में फिर माफी मांगने की हिम्मत बढ़ गई और सुमन अभी बैसे ही झिलमिल के गालों पर हाथ फेर रही थी की तभी अशोक बोला" सुमन मैं बहुत पहले ही ये बात तुम्हे बताना चाहता था पर.."

इतना सुनते ही सुमन की आई मुस्कुराहट चली गई साथ ही फिर वही पत्थर जैसा सख्त चेहरा लिए झिलमिल से बोली " झिलमिल तुम भी रंजन की तरह बताओ कि तुम्हे मम्मी चाहिए या पापा"

रंजन और झिलमिल जो पहली बार मुस्कुरा कर एक दूसरे को देख रहे थे चौंक गए और झिलमिल से कोई जवाब देते नही बन रहा था क्योंकि अभी अभी झिलमिल का परिवार पूरा हुआ था वो कैसे इस सपने को तोड़ दे

झिलमिल सिर नीचे करे खड़ी हुई थी तो सुमन उठते हुए बोली "ठीक है झिलमिल फिर तुम पापा के साथ रहो मैं तुमसे बाद में मिलूंगी"

ये कहकर सुमन ने दरवाजा खोला और घर के बाहर आकर रास्ते पर बढ़ गई तभी झिलमिल पीछे से दौड़ती हुई आई और सुमन को पीछे से पकड़ लिया और बोली" मैं डर गई थी माँ, मुझे लगा था कि मैं अपने पूरे परिवार के साथ रह पाउंगी पर क्या अब आप पापा को माफ नही कर सकती"

सुमन ने झुककर झिलमिल के आंसू पोछे और बोली" देखो झिलमिल विश्वास तोड़ने की कोई माफी नही होती, पर उसकी सजा विश्वास करने वाले और तोड़ने वाले दोनों को भुगतनी ही होती है और तुम क्यों चिंता करती हो मैं तुमसे मिलने आती रहूंगी "

झिलमिल ने सुमन का हाथ थामते हुए कहा "माँ मुझे आपके इस फैसले पर कुछ नही कहना पर मुझे अभी अभी तो मेरी माँ बापस मिली है मैं आपके साथ ही रहूंगी चलो चलते है"

अशोक पीछे खड़ा ये सब देखकर अपने आंसू रोक नही पाया पर सुमन ने अपना जी कड़ा कर झिलमिल का एक हाथ खुद और एक रंजन को पकड़ने का इशारा किया और बिना अशोक की तरफ पलटे आगे बढ़ने लगी।

और एक टैक्सी को रुकने का इशारा किया और तीनों उसमे बैठ गए तभी रंजन ने पीछे अशोक को पलटकर देखा तो अभी भी अशोक बदहवास सा रोते हुए गाड़ी की तरफ देख रहा था। अब रंजन को पहली बार उसके पापा के बिछड़ने का दुख सता रहा था पर वो बेबस था क्योंकि जो उसने अब तक समझा उसमे माँ की गलती कही भी दिख ही नही रही थी।इतने में गाड़ी चल दी और एक दो मंजिला घर के आगे रुकी सुमन ने दोनों बच्चों और सामान को उतारा और टैक्सी वाले को पैसे दिए।

टैक्सी चली गई। अब सुमन ने रंजन को वही छोड़कर 

घर का दरवाजा खटखटाया।

रात के दस बज रहे थे इसलिए गली में सन्नाटा था तभी दरवाजा खुला जिसमे से एक 40- 45 साल की महिला बाहर आई और बोली " अरे सुमन इतनी रात गए " इतना पूछते हुए रंजन और झिलमिल पर निगाह गई तो महिला बोली " आओ बच्चों मैं तुम्हारी शारदा मौसी हूँ आओ घर मे आओ"

तीनो उनके पीछे पीछे घर मे आ गए।

घर कोई बहुत बड़ा नही था पर वहां दो कमरे सामने की तरफ किचिन और दरवाजे के साथ बाथरूम था।

मौसी की आवाज आई" सुमन तू बैठ मैं पानी लाती हूँ"

सुमन ने कहा" अरे क्यों परेशान हो रही हो दीदी बैठो ना"

शारदा मौसी ने जाते जाते कहा" सुमन अगर मैं तेरे घर आती तो लगता है प्यासे ही रहना पड़ता"

हंसते हंसते उन्होंने हम तीनों को पानी का गिलास थमाया और वही सोफे पर रंजन पास बैठ कर उसके सिर पर हाथ फिराने लगी।

और रंजन से पूछने लगी" क्यों रंजन मुझे पहचानते हो"

रंजन ना ही कहने जा रहा था कि शारदा खुद ही बोली" रंजन मैं तुम्हारी माँ के साथ उसके कॉलेज में पढ़ाती हूं "

फिर वो रंजन के पास बैठी झिलमिल के सिर पर हाथ फेरती हुई बोली " और छुटकी तुम्हारा क्या नाम है "

झिलमिल अभी पानी पी रही थी वो कुछ बोल नही पाई तो रंजन बोला " ये मेरी बहन है झिलमिल"

इतना सुनते ही शारदा ने सुमन को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो सुमन ने उसका हाथ पकड़ा और थोड़ी दूर ले गई पर अब भी आवाज रंजन के पास तक आ रही थी अब रंजन और झिलमिल दोनों ही शारदा और सुमन की तरफ देख कर समझने की कोशिश कर रहे थे।

सुमन ने कहना शुरू किया" दीदी अशोक ने मेरा भरोसा तोड़ दिया ये लड़की अशोक की ही है जिसे वो आज घर ले आया क्योंकि इसकी माँ कैंसर से कुछ हफ्ते पहले मर गई और इसे इसकी नानी ने भी साथ ले जाने से मना कर दिया। मैं रंजन को लेकर घर छोड़ रही थी तभी ये लड़की मुझसे बोली इसकी माँ ने इसे मेरे बारे में बताया था मुझे भी इस पर तरस आ गया और इसको भी अपने साथ ले आई"

शारदा ने कहा" ये अशोक ने क्या किया मुझे उससे ऐसी उम्मीद कतई नही थी पर सच कहती हूं तेरा दिल बहुत बड़ा है सुमन जो सौतन की बेटी को अपना लिया तूने इतना तो मैं भी नही कर पाती तुझे मेरी उम्र लग जाये "

इतना कहकर शारदा ने सुमन को गले से लगा लिया।

फिर सुमन ने अपनी बात आगे बढ़ाई" दीदी अब जब तक कोई रहने का इंतजाम नही हो जाता क्या हम आपके साथ रह सकते है "

शारदा ने एक हल्की चपत सुमन को लगा कर हंसते हुए कहा" मुझे गैर करना चाहती है जो घर मे रहने को पूछ रही है और कोई घर ढूंढने की जरूरत नही मेरे बच्चे मेरे पास आ गए इतना मेरे लिए बहुत है वैसे भी मुझ अकेले को ये घर काटने को दौड़ता था चल अच्छा तू बैठ बच्चे सोचते होंगे कैसी मौसी है जो हमे भूखा मार रही है "

सुमन ने शारदा का हाथ पकड़ कर कहा"नही दीदी मैं खाना बनाती हूँ आप बच्चों के पास बैठिये "

सुमन के कहने के तरीके ने शारदा को उसकी बात मानने को मजबूर कर दिया।

शारदा ने साथ चलते हुए कहा "ठीक है चल तुझको किचिन दिखा देती हूं"

सुमन ने खाना बनाया और मेज पर लगा दिया फिर शारदा ने कहा " आज में अपने हाथ से रंजन को खिलाऊंगी रंजन खायेगा न मेरे हाथ से"

रंजन बोला "जी मौसी"

तभी झिलमिल से रुका न गया तो बोली" और मुझे"

इतना कहकर मासूमियत से झिलमिल ने एक बार शारदा और सुमन को देखा फिर जैसे ही अपनी गलती का एहसास हुआ अपना सिर झुका लिया।

हालात देखते हुए सुमन ने कहा " झिलमिल तुम्हे आज मैं अपने हाथ से खिलाऊंगी आओ मेरे पास आओ"

झिलमिल का चेहरा खिल गया और फुदकते हुए सुमन की गोद मे बैठ गई।

रंजन ने खाते हुए शारदा से पूछा " मौसी घर मे और कोई नही दिख रहा"

शारदा ने कहा" जबसे तुम्हारे मौसा जी गुजरे है तब से मैं ही अकेली रहती हूं इस घर मे, पर पिछले महीने से एक किरायदार छत के कमरे में रहती है कल उससे भी मिलवा दूंगी"

इस तरह बातों बातों में ही खाना खत्म हुआ और झिलमिल और रंजन एक कमरे में और शारदा और सुमन दूसरे कमरे में सो गए।

सुबह 6 बजे सुमन ने रंजन को उठाया और रंजन फ्रेश होकर बाहर निकला तो कोई ऐसा दिखा की उसके पैर वही जम गए।

क्रमशः


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