प्रवीन शर्मा

Drama Tragedy Others

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प्रवीन शर्मा

Drama Tragedy Others

छप्पर का भूत

छप्पर का भूत

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290


पात्र

गोदावरी देवी - घर की बुजुर्ग

कजरी- गोदावरी देवी की पुत्री

सजली- गोदावरी देवी की बड़ी पुत्री

अमरी- कजरी की पुत्री

राजीव- कजरी का पति

सुरजीत- सजली का पति

महेंद्र- कजरी का भाई

चूरन लाल - बंदर


भूमिका

गोदावरी देवी घर की सबसे बुजुर्ग है और अब इस उम्र में दिखाई सुनाई कम देता है और चलना फिरना भी बंद है क्योंकि पैर साथ नहीं देते। गाँव के बीचोबीच उनका घर है घर के तीन हिस्से है पहला एक पक्का कमरा फिर बरामदा फिर आंगन और उसी आंगन के कोने में पड़ा है छप्पर, यही गोदावरी देवी की खाट पड़ी रहती है| गोदावरी देवी के पहले तो बच्चे हुए नहीं फिर पीर फकीर झाड़ फूंक बाबा पुजारी मंदिर इस सब से शादी के 10 साल बाद गोदावरी देवी का घर खुशियों से भर गया और दो लड़की हुई और एक साल बाद लड़का हुआ।

ऐसा नहीं है की केवल उम्र ने ही गोदावरी देवी को बिस्तर तक पहुंचाया है इसमें उनके पुत्र महेंद्र का भी पूरा हाथ है जो 15 साल की उम्र में किसी गाँव की 30 साल की लड़की के साथ भाग गया और कभी नहीं लौटा। और गोदावरी जो अपने पति की मौत के बाद उसी का मुंह देख कर जी रही थी तेजी से बूढ़ी होती चली गई।

गोदावरी देवी बड़ी बेटी सजली की शादी काफी पहले पास के गाँव में हो गई थी। छोटी बेटी का प्रेम विवाह हुआ था राजीव के साथ , राजीव को गोदावरी देवी नदी किनारे कुत्तों के झुंड से बचा कर लाई थी कुत्तों ने उसकी दो उंगलियाँ नोच डाली थी जब कोई उस 4 माह के अबोध को नदी किनारे डाल गया था।

इसके अलावा एक बंदर जो की गोदावरी देवी की संतान के साथ ही पला था आंखों के कम दिखने की वजह से गोदावरी देवी के लिए छप्पर के भूत में तबदील हो गया था।


दृश्य 1

"चिलचिलाती धूप ने तो सुबह को दोपहर बना दिया "

राजीव ने हल कंधे से उतार कर आंगन के किनारे रखते हुए कहा और छप्पर की ओर बढ़ा।

राजीव ने अकेले ही गोदावरी देवी की खाट को कोने की ओर खिसकाया, इस पर तेजी से आती हुई कजरी तेजी से बोली " मैं आ तो रही थी खिसकाते क्यों हो उठा के रखवा देती किसी दिन खाट का पाया टूट ही जाएगा

इस पर राजीव गोदावरी देवी के सिर की तकिया ठीक करते हुए मुस्कुराकर बोला " बुढ़िया अब सूख कर ढाई सौ ग्राम की भी नहीं है और धूप पड़ गई तो गायब ही न हो जाए इस लिए कोने में खिसका रहा था " कह कर तेज ठहाका लगाया। मुस्कुराते हुए कजरी तो चली गई पर गोदावरी के कानों में ठहाके की आवाज पहुंची तो पास में पड़ी लाठिया से तेजी से राजीव के एक लगा दिया और बड़बड़ाने लगी " इस बूढ़ी से क्या मजाक करता है मुझसे तो ऊपर वाले ने ही मजाक किया है जिस बेटे के लिए 12 साल 9 महीने मंदिर मंदिर चौखट रगड़ी उसे 12 मिनट में पराया कर दिया।

इस पर स्तब्ध राजीव ने धीमे से बोला " अम्मा जाने वाले का नाम तो हर सांस से याद कर रही है कभी इस अभागे पर भी प्यार से हाथ रख देती तो मुझे भी जिंदा रहने का अधिकार मिल जाता।" इस पर छलक आये आंसू जल्दी से राजीव ने पोंछे और रसोई की तरफ बढ़ गया।

रसोई में कजरी रोटी सेंक रही थी और पल्लू से पसीना पोंछते हुए राजीव से मुस्कुरा कर बोली " खा आये लठिया का प्रसाद तो अब दो रोटी भी खा लो "

राजीव बोला " उसकी लाठी से मार नहीं प्यार बरसता है पर मुझे तो प्यार से एक बार बेटा कह दे इसी का इंतजार है "

"वो तो उस महेंद्र की हरकत ने तुम्हें दुश्मन बना दिया वरना तो तुम ही उनके अच्छे बेटे थे " कजरी की बातों में संजीदगी उभर आयी ।

" तू तो जानती है मैंने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा तो जायदाद के लिए मैं महेंद्र को कैसे बरगला सकता था वो बस एक बार लौट आये तब खुद बूढ़ी को पता चल जाएगा की मैंने नहीं उस रजनी ने उसे बरगलाया था की मैं उसकी जायदाद के लिए उसकी जान ले लूंगा इसलिए वो उसी के साथ भाग गया| बूढ़ी बोले तो आज मैं सब कुछ छोड़ कर चला जाऊंगा " राजीव ने भरे गले से इतना दर्द उड़ेल दिया इस पर कजरी चूल्हा छोड़ कर राजीव के कंधे पर सर रखकर बैठ गई अभी आंखों में नमी सैलाब बनने को तैयार थी की अमरी ने दौड़ कर दोनों को चिपका लिया और बोली " मुझे सोता छोड़ कर अकेले अकेले प्यार कर रहे है"

इस पर जल्दी से कजरी आंखों की नमी पोंछ कर चूल्हे के पास बैठ कर थाली लगाने लगी।

" जल्दी से मुंह धो कर आ जा अमरी" अमरी को हाथ से उठाते हुए राजीव बोला

तभी बाहर लगातार गोदावरी की लाठिया का जमीन पर पटकना शुरू हो गया और तीनों हंस पड़े

" ये लो बापू , आ गए चूरन लाल " अमरी खुशी से उछलती हुई बाहर आई

बाहर बूढ़ी चीख चीख कर बोल रही थी "भूत भूत छप्पर पर भूत है , है भगवान या तो आंखें ठीक रखते या पूरी फोड़ देते अरे कोई तो इसे भगाओ "

इतना कहना था की बंदर ने एक छलांग में छप्पर से लटकना छोड़ अमरूद की डाल पर बैठ कर डाल हिलाना शुरू कर दिया।

तब तक कजरी दो रोटी ले आई और दीवार पर रख कर बोली " ये लो रोटी तोड़ो डाल मत तोड़ो "

" बापू चूरन लाल कितना बूढ़ा हो गया है खाल तक लटक गई है " अमरी ने गहरी नजर डाल कर कहा

" हाँ और हो भी क्यों न कितने साल हो गए जब से बूढ़ी खाट पर पड़ी है रोज ही तो आता है पर आंगन में कभी पैर नहीं रखा" राजीव ने अमरी को गोद में बिठा कर बात आगे बड़ाई।

अंदर से थाली लाती कजरी बोली " साहब इतने सालों से अम्मा से गुस्सा जो हैं अम्मा की एक लठिया पड़ी तो कसम खा ली की आंगन में न उतरेंगे वरना तो एक रोटी के लिए अम्मा के पल्लू को खींचते घूमते थे "

" अब लगता है इस जन्म में तो ऐसे ही छप्पर के भूत ही बने रह जाएंगे, क्योंकि बूढ़ी तो खुद दुनिया से नाराज है इन्हें कौन मनाएगा" और कहते कहते ठहाके से राजीव ने घर भर दिया।

यूँ ही काम धाम में सुबह से शाम हो गई, बूढ़ी भी लेटे लेटे गुनगुनाने लगी।

जी को जी से, जी बिन जी के, कैसे मैं समझाऊं री

तुझ बिन सूना घर समशानि कैसे भीतर जाऊं री

तार न पत्री खत न खबरिया, जी बिन जी क्या पाऊं री

रूठे रूठे छोड़ के पीछे कैसे प्रीत निभाऊं री

इसे सुन कर अमरी कजरी से बोली "अम्मा कितना अच्छा गाती है, पर ये रो क्यों रही है"

कजरी शाम की रोटी सेंकते बोली" अमरी दुनिया में कुछ दुख बांटने से भी नहीं बटते, अकेले ही सहने होते

है।


दृश्य 2

चूरन लाल लंगड़ा रहा है और छप्पर से लटकने की कोशिश कर रहा है अम्मा सो रही है और ज्यादा देर न लटक पाने की वजह से नीचे गिर गया और फिर छप्पर के बांस के सहारे चढ़ कर लटकने लगा तो अम्मा को उठाने के लिए कजरी ने सिरहाने से खटिया हिला दी फिर जा कर जब नींद टूटी तो बूढ़ी ने लाठिया पटकना शुरू किया

और फिर बंदर पेड़ पर टिक कर बैठ गया । अब बंदर को भी अपनी रोटी से ज्यादा जिंदगी की शाम का इंतजार था तभी तो अमरी की रखी रोटी भी रास नहीं आई।


दृश्य 3

सुबह 4 बजे ही बूढ़ी उठ कर कजरी को बुलाती है ,2 रुपए देकर ग्लूकोस के बिस्कुट का पैकेट मंगाने को कहती है ।

"आज क्या हुआ बड़ी जल्दी उठ गई बूढ़ी

,अब 4 बजे कहाँ दुकान खुली होगी, अमरी वाले बिस्कुट ही देदे "राजीव ने कजरी से कहा

बूढ़ी ने बिस्कुट का पैकेट खोलकर हवा में हाथ बड़ा कर खिलाते हुए कहा " ले मुन्ना खा ले तेरे पसंद के बिस्कुट मंगवाए है राजू को पूरी जायदाद खा लेने दे तू ये बिस्कुट खा मेरे पैसों के है ," बिस्कुट नीचे गिरते जा रहे थे

राजीव ये सुन कर बिलख बिलख कर रोने लगा और उसे संभालते हुए कजरी भी खुद को रोक न सकी और फूट पड़ी।

ये रोना सुन कर अमरी भी उठ गई और राजीव से चिपक गई । बूढ़ी कुछ देर में हवा को सहलाते हुए सो गई मानो आखरी बार अपने बेटे को सुला रही हो ।

करीब सुबह के 6 बजे राजीब बूढ़ी को कुल्ला कराने पानी का गिलास लाया तो देखा अब बस बूढ़ी का शरीर अकड़ा पड़ा है और प्राण तो उड़ चुके है , राजीब धम्म से वही गिर गया और सिसकने लगा, फिर अमरी आयी तो वो भी राजीब को देख रोने लगी, तो कजरी को पता चल गया कि बूढ़ी गुजर गई ।

धीरे धीरे गांव के लोग जुटे रोना धोना बढ़ता गया फिर धीरे धीरे थमा और किसी बुजुर्ग ने कहा "जिसको जाना था वो चला गया अब बाली बच्चों की ओर देखो कजरी सुबह से दो बार बेहोश हो चुकी है।"

इतनी ही देर में कहीं से बंदर भी आ गया।

चूरन लाल ( बंदर) लाश के पास बैठा है ,अशरफ के लड़कों ने गुलेल से पत्थर ऐसा निशाना दे कर मारा जो बंदर के कनपटी पर पड़ा और बूढ़ी के पैरों के पास ढेर हो गया । इतना देख अमरी लड़कों की ओर बूढ़ी का डंडा लेकर दौड़ी तो वो दोनों भाग खड़े हुए, लोगो ने कहा लो खिलाने वाला जा रहा है तो खाने वाला कैसे जी पाता बंदर भी ढेर हो गया।

टिकटी (अर्थी) बांधते राजीव गा रहा है जो बूढ़ी बाबा की याद में गाती थी " जी को जी से जी बिन जी के कैसे में ......"

राजीव से लोग बोले लाश को इस खटिया पर बांध कर ही जला देते है, इस टूटी गली खाट का क्या करोगे ।

राजीव ने कहा इस पर अब से मैं सोऊंगा इस पर, जीते जी अम्मा की गोद नहीं मिली अब तो ये खटिया ही मेरी अम्मा की गोद है।

गोदावरी का अंतिम संस्कार विधि विधान के साथ कर दिया गया।

दृश्य 4

करीब 6 महीने बाद एक दोपहर:

एक बड़े दाढ़ी वाला भिखारी दरवाजे पर आवाज लगाता है "अलख निरंजन"

बाहर खेलती अमरी से कहता है जा अम्मा से कह , बड़ी दूर से बाबा आये हैं

कजरी सिर पर पल्ला डाल कर कटोरी में आटा और दूसरे हाथ में गुड़ लाती है

बाबा गुड़ आटा लेकर झोले में रखते हुए बोलता है " बिटिया तेरे घर में कोई बड़ी बूढ़ी नहीं है "

पीछे से आता राजीव लगभग चीखते हुए बोलता है " बड़ी बूढ़ी थी पर उसे तूने कई साल पहले मार दिया था महेंद्र, फिर तूने अपने प्यार की छुरी से हर रोज कई साल उसका गला रेता और अब पूछता है, बूढ़ी कहा है अब उससे माफी मांगने को तुझे कोई और जन्म लेना होगा।"

अमरी और कजरी अभी भी भौचक्के से खड़े रहे , और बाबा (महेंद्र) धम्म से घर की चौखट पर सर रख कर दहाड़े मार कर रोने लगा।


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