प्रवीन शर्मा

Romance

3  

प्रवीन शर्मा

Romance

कच्चा मन पक्का प्यार भाग एक

कच्चा मन पक्का प्यार भाग एक

16 mins
273


जी पी एम स्कूल का एक आम दिन, जिसमें बच्चे, कुछ पानी की टंकियों पर बात कर रहे है, कुछ क्लास में बैठे एक दूसरे को मुंह चिढ़ा रहे है, कुछ क्लास में मेज पर बैठे अपने प्रवचन से दोस्तों में अपने सर्वोपरि होने का भ्रम जगाने की कोशिश में ज्ञान पेल रहे है, कुछ पढ़ भी रहे है ।

वही एक बच्चा स्कूल के दूसरे मंजिल की सीढ़ियों पर एकांत में बैठ कर अपनी ही दुनिया में खोया है। तभी उसका साथी ढूंढते हुए पहुंचता है।

" क्या कर रहा है यहाँ सीढ़ियों पे, जानता है आज रश्मि ने ट्रीट देने को अड्डे पर बुलाया है, चलेगा क्या "सुमित सीढ़ियों पर बैठते हुए बोला, रंजन अब भी फर्श पर गिरे पानी को टकटकी लगाकर देख रहा था।

" अबे एक्सपायर हो गया क्या " सुमित बैग मारते हुए बोला।

रंजन ने चौक कर सुमित को देखा, वो अभी बैग लगने गिरते गिरते बचा था, संभलते हुए उसे चिढ़ाने के अंदाज में बोला "आ गया बृंदा मैम से पिटकर।" 

मुंह बनाते हुए सुमित ने बैग खोलते हुए कहा " ला साले फिजिक्स की कॉपी दे, खुद तो आइंस्टीन पैदा हो गया, कभी कोई सवाल गलत ही नहीं होता, और हम घर पर भी पिटे और स्कूल में भी।"

रंजन ने मुस्कुराते हुए कॉपी थमाई और बोला " ओ या आई ऍम अ कॉम्पलैन बॉय , हा हा हा।"

सुमित ने फिर रंजन को गौर से देखते हुए कहा " क्या, अभी किसके ख्यालों में था। "

रंजन हिचकिचाया " क्या यार कुछ नहीं "

" अबे बोल दे ...' सुमित ने पैन की नोक बन्दूक की तरह रंजन के सिर पर तान दी, पर तभी कुछ सोच कर मुस्कुराने लगा।

" हाँ यार बस रजनी मैम के बारे में सोच रहा था " रजन ने सुमित का पैन हटाते हुए कहा।

" मैं अब भी कह रहा हूँ वो सिर्फ तुझे बाकी मैम की तरह बस पसंद करती है और कुछ नहीं, तू मुफ्त में सेंटी हुआ जा रहा है" सुमित ने कॉपी पर लिखते लिखते बोला

रंजन फिर किसी दुनिया में जा चूका था। 

रंजन को कुछ वक्त पहले क्लास में जब उसकी कॉपी पर अच्छा काम देखकर उसके गाल पर प्यार से रजनी ने जो हाथ फिराया था वो अभी भी चलता महसूस हो रहा था। ये सब उसके शरीर में गुदगुदी दौड़ाने के लिए काफी था। इसलिए ही वो मुस्कुरा रहा था।

" अबे वो रजनी मैम तुझे बच्चा समझ के प्यार करती हैं तू मरा जा रहा है और वो अंजलि फिर तेरे लिए पराठे लाई थी वो कुछ नहीं " सुमित ने गले में हाथ डालते हुए कहा।

रंजन ने चौंक कर खड़े होते हुए कहा " तूने उसे बताया तो नहीं मैं यहाँ हूँ। "

" मैं तेरा सच्चा यार हूँ, बस यार पराठे खा कर इतना बोल दिया की तुझे पराठे अच्छे लगे" सुमित ने शरारती मुस्कुराहट से कहा 

" अबे साले खा खा कर ढोल हो गया है फिर भी ..." पेट पर घूंसा मारते हुए रंजन ने सुमित को गिरा दिया।

" आह उई मां आह आह .." सुमित पेट पकड़ कर लेट गया।

रंजन गंभीर होते हुए सुमित के पेट को सहला कर पूछने लगा " सॉरी सॉरी यार ज्यादा तेज लग गया क्या।"

" अबे इतने टेस्टी पराठों के लिए मैं इससे ज्यादा दर्द झेल सकता हूँ" सुमित ने सीढ़ियों पर लेटे मुस्कुराते हुए कहा

" साले अगर अगली बार तूने मेरा नाम लेकर पराठे खाये तो तुझे लूज मोशन की दस बारह गोली खिला दूंगा " रंजन ने सुमित के पैरों पर लात मारी और चलते चलते बोला " आ जा रोहिणी मैम क्लास में लेट आने वालों के साथ क्या करती है याद है या नहीं।"

इसे सुनकर सुमित भी पीछे पीछे चला गया।


रंजन, एक 14 साल का पढ़ाई में होनहार, पर दिखने में ठीक ठाक लड़का था । 

पर उसके चेहरे पर उसकी हमेशा रहने वाली मुस्कुराहट उसे सभी से अलग करती थी।

अभी उसकी जिंदगी घर से स्कूल और घर से ट्यूशन तक ही सीमित थी। पर रंजन भी था तो एक लड़का ही और वो भी इस खतरनाक उम्र में जिसमें सामान्यतः सभी अपना पहला प्यार पाए न पाएं पर पहले आकर्षण से कोमल मन को उलट पुलट होने से नहीं बचा पाते।

 ऐसा ही रंजन के साथ हो रहा था और इन दिनों रंजन पहले प्यार की उलझनों में जवान हो रहा था और ये प्यार था या आकर्षण ये उसे भी नहीं पता और उस पर एक और मुसीबत पहला प्यार आया भी तो किस पर, उसकी मैथ की टीचर रजनी पर।

रंजन के घर में कोई ज्यादा सदस्य तो थे नहीं, उसकी बड़ी बहन चांदनी उर्फ चैरी, एम बी ए कर के दिल्ली में नौकरी कर रही थी I प्रोफ़ेसर माँ सुमन और बिजनेसमैन पिता अशोक के बीच अब रंजन ही केंद्र बिंदु था Iइसलिए रंजन को अपनी किसी मांग को 24 घंटे से ज्यादा इंतजार कभी नहीं करना पड़ता था पर साथ भी रंजन की हर मांग पूरी होने की और वजहें भी थी जैसे उसका सामान्य से ज्यादा संवेदनशील होना, हर काम को बहुत जल्दी सीख जाना, और फिजूलखर्ची नहीं करना उसके माँ और पिता दोनों को ही उसकी हर मांग को जायज मानने के काफी था ।रंजन को उसका भविष्य बनाने को लेकर चिंता की जरूरत कभी उसके पिता के जैसा बिजनेसमैन बनने की आकांक्षा के कारण महसूस ही नही हुई।

 सुमित मध्यमवर्गीय परिवार का इकलौता बेटा था और रंजन का इकलौता दोस्त भी। सुमित के शौक थे पसंद का खाना और शतरंज खेलना । उसके भविष्य को लेकर बहुत सपने थे पर रोज बदलते रहते थे। वो डीलडौल में मोटा होने के कारण क्लास में मजाक का पात्र जरूर बन जाता था पर रंजन का साथ उसे सब भुला देता था ।

उनके ही क्लास की एक लड़की बड़ी सुंदर मासूम और हंसमुख अंजलि थी जो रंजन से बेइंतहा प्यार करती थी।

उसका हर दिन रंजन का फोटो देखकर शुरू होता था ।फिर सारा दिन रंजन के आगे पीछे घूमने के बाद शाम को उसके साथ बाइक पर ट्यूशन जाने के बाद भी रात को फ़ोन पर भी उसकी बातें होती थी। 

अंजलि के प्यार के बारे में रंजन को छोड़कर सभी जानते थे पर रंजन को लगता था कि रजनी मैम ही उसका पहला और आखिरी प्यार है । रजनी सुमित की पड़ोसी भी थी इसलिए अक्सर सुमित उनके साथ उनकी स्कूटी पर आता दिखाई दे जाता था तो उसकी किस्मत से रंजन को जलन होने लगती थी कि कैसे ये रजनी मैम के साथ बैठा है और मैं तो केवल स्कूल में ही उन्हें देख सकता हूँ और ये तो उनके साथ घर तक जाता है ।

मैम का पड़ोसी है क्या करता मन मसोस कर रह जाता था इधर अंजलि को हर हाल में बस रंजन का साथ चाहिए होता था और रंजन के घर से बस कुछ दूर ही रहती थी इसलिए उसी के साथ बस में आती जाती थी रंजन की तरह ही अमीर घर की शहजादी थी और उसके पिता विदेश में रहते थे वो अपनी माँ उर्मिला और एक छोटे भाई सुमित के साथ रहती थी ।अंजलि के परिवार को यहाँ रहते कुछ साल ही हुए थे पर अंजलि की माँ और रंजन की माँ में अच्छी दोस्ती हो गई थी क्योंकि लगभग रोज ही उनकी मुलाकात रंजन के बस स्टैंड पर हो जाती थी ।

अक्सर रंजन अपनी बाइक पर अंजलि की माँ को मार्किट ले जाना, उसके घर के कामों में हाथ बटाना भी आम बात थी, इसलिए दोनों परिवार काफी घुल मिल चुके थे । अंजलि की माँ से भी अंजलि का रंजन के लिए प्यार कोई छुपा नहीं था ।

इसलिए एक बार अंजलि की माँ ने इस बारे में रंजन की माँ से बात की 

अंजलि की माँ ने कहा" रंजन इतना प्यारा है कि उसे प्यार करे बिना कोई रह ही नहीं सकता।"

रंजन की माँ ने अंजलि की बात के भाव से अनजान होने के कारण कहा" वो तो है, पर आज ये सब तुम्हें कहने की जरूरत क्यों पड़ गई।"

अंजलि की माँ ने मुस्कुराते हुए बात को आगे बढ़ाया "हम्म आज कुछ खास हुआ इसलिए कहना पड़ा।"

रंजन की माँ ने आश्चर्य से पूछा" ऐसा क्या हो गया।"

अंजलि की माँ ने सपाट लहजे में कहा" अंजलि रंजन को बहुत प्यार करती है।"

रंजन की माँ ने सामान्य होते हुए कहा" तो इसमें कौन सी नई बात है, अभी खुद ही तो तुमने कहा कि रंजन इतना प्यारा है कि कोई भी उसे प्यार करने लगेगा।"

अंजलि की माँ ने अपनी बात का मतलब न समझते देख रंजन की माँ के हाथ पर हाथ रखकर बोली" सुमन वो प्यार नहीं वो बाला प्यार। "

रंजन की माँ ने समझने की कोशिश करते हुए कहा "वो वाला, कौन सा वाला। "

अंजलि ने खुलकर कहा" गर्लफ्रैंड बॉयफ्रेंड वाला।"

अब रंजन की माँ ने चौकते हुए कहा "क्या सच में, तुम्हें कैसे पता चला।"

अंजलि की माँ ने गहरी सांस लेते हुए कहा "मैंने देखा कि सुबह सुबह वो फ़ोटो को छू कर सिर से लगा रही थी।"

रंजन की माँ ने असमंजस में कहा "मतलब "

अंजलि की माँ ने समझाया "वो मैं अंजलि के पापा के फ़ोटो को देखकर उठती हूँ और फ़ोटो छूकर सिर से लगाती हूँ, उसने मुझे ऐसा करते देखा होगा, इसलिए आज सुबह मैंने देखा कि वो अपनी किताबों के बीच से रखे फ़ोटो को छूकर सिर से लगा रही थी, पहले मुझे लगा भगवान का फोटो देख रही है पर जब उसके जाने के बाद मैं किसी काम से उसके कमरे में गई तो उत्सुकतावश मैंने किताबों के बीच टटोल कर देखा, तो रंजन का फोटो था, इसलिए ही मैंने आज ये बात तुमसे कही।"

अब रंजन की माँ थोड़ा गंभीर होकर सोचने लगी। अंजलि की माँ ने देखा तो उसे लगा उसने बता कर कुछ गलत कर दिया तो बोली" सॉरी अगर तुम्हें मेरी बात बुरी लगी हो तो माफ कर दो, पर मुझे शक तो उसकी बातों से पहले ही था क्योंकि उसकी दिन भर की बातों में कई बार रंजन के बारे में ही बातें रहती थी, वो अपने भाई तक को पढ़ाई के बारे में रंजन की बड़ाई करते हुए ही बताती थी और तो और अगर कभी मजाक में भी रंजन की किसी बात को बुरा कहा तो ऐसे चिढ़ जाती है जैसे उसे ही बुरा कह दिया हो।"

ये सब सुनकर रंजन की माँ का चेहरा धीरे धीरे सामान्य हो चला था और मुस्कुराते हुए कहा "तो तुम ये क्यों नहीं कहती कि हमारी बेटी बड़ी हो गई है अब उसके हाथ पीले हो जाने चाहिए, हा हा हा।"

अंजलि की माँ को मजाक समझ नहीं आया, तो थोड़ा गंभीर हो गई तो रंजन की माँ ने उस बात को समझते हुए अंजलि की माँ का हाथ दबाते हुए कहा " तुम क्या सोचने लगी मैं मजाक कर रही थी।"

अंजलि की माँ को अभी भी लग रहा था कि रंजन की माँ को बात बुरी लगी है पर वो हंसी में छुपा रही है। उसके इस भाव को पढ़कर रंजन की माँ ने आगे समझाते हुए गंभीरता से कहा" तुम्हें क्या लगा मुझे बुरा लगा इस बात का, ऐसा नहीं है अगर मेरा रंजन लाखों में एक है तो अंजलि भी किसी से कम नहीं है, मुझे इस बात के कारण कोई दिक्कत नहीं पर मैं इसलिए सोच में पड़ गई थी कि अभी हमारे दोनों बच्चे छोटे है और मैं उनके भविष्य के बारे में सोचने लगी और साथ ही ये भी की ये केवल उसका आकर्षण हुआ तो सब बिगड़ भी सकता है"

अंजलि की माँ के चेहरे पर कई भाव आते चले गए और बात को सुनकर खुद ही सोच में पड़ गई।

रंजन की माँ ने अंजलि की मां की हालत देखकर माहौल हल्का करने को कहा" चल कुछ भी हो, तू वादा कर घर में या बच्चों से अभी इस बारे में कुछ नहीं कहेगी, वक़्त आने पर मैं खुद ही बात करूंगी, और हाँ ये मेरा वादा रहा अगर दोनों बच्चों को भविष्य में भी ऐसे ही प्यार बना रहा तो मैं खुद तेरी लड़की का हाथ मांगने तेरे घर आऊंगी "

इतना सुनते ही अंजलि की माँ की मुस्कुराहट वापस लौट आई। और उसने रंजन की माँ को गले से लगा लिया।

गले लगाए लगाए अंजलि की माँ ने कहा" मैं तो इसी वजह से डर रही थी, की अगर तुमने अंजलि रंजन के प्यार को स्वीकार नहीं किया तो..."

रंजन की माँ ने कहा" तो क्या, अंजलि तुझसे ज्यादा मुझे प्यारी है, आज सुन ले मैंने रंजन और अंजलि के प्यार में कभी कोई अंतर नहीं किया, और आगे भी कभी होने नहीं दूंगी समझी"

अंजलि की माँ के आंसू छलक आये जिन्हें वो पोंछ कर मुस्कुराने लगी।

इसके बाद ना तो दोनों में से किसी ने इस बारे में बच्चों से कुछ कहा और ना ही बात के बारे में किसी को घर में बताया।

मगर रंजन था कि हमेशा अपनी रजनी मैम के सपनों में खोया रहता था और इसी उधेड़बुन में जिंदगी बीतने लगी ।

एक दिन गर्मियों की सुबह थी और दीवार से टिका रंजन स्कूल की बस का इंतजार कर रहा था, रंजन की माँ को आज घर में ही काम निकल आया तो वो साथ नहीं थी तो रंजन बात करने के लिये अंजलि का बेसब्री से इंतजार करने लगा तभी अंजलि बड़ी उदास होकर आई। रंजन ने देखा और छेड़ने के अंदाज में बोला "क्या हुआ अंजू आज इतना सन्नाटा क्यों है"

अंजलि ने चुप्पी तोड़ने नाम ही नहीं लिया और रंजन के पास से हटकर खड़ी हो गई ।

रंजन को लगा आज ये इतनी नाराज किस बात पर है जो मुझसे बात नहीं कर रही पर उसने कुछ पूछने को कदम बढ़ाए तब तक बस आ गई और दोनों उसमें बैठ गए । अंजलि वैसे ही चुप्पी साधे रही स्कूल पहुँच कर भी ऐसे ही दिन जा रहा था फिर सुमित ने भी उससे पूछने की कोशिश की पर उसने कुछ बताया नहीं और इसी तरह स्कूल से घर जाने के बाद जब अंजलि उससे बिना बोले घर चली गई तो उसे अचरज हुआ कि पहले तो कभी इतना चुप इसको नहीं देखा आज बात क्या है? 

रंजन घर पहुंचा फ्रिज से निकाल कर खाना गर्म कर खाया और लेट गया तब तक रंजन की माँ भी आ गई..  

और रंजन से पूछा " खाना खा लिया "

रंजन ने कहा "हाँ"

रंजन की माँ ने कॉफ़ी बनाई और एक कप रंजन को देती हुई बोली क्या हुआ "आज मेरा बेटा किस सोच में डूबा है। "

रंजन बोला "कुछ नहीं माँ आज अंजलि सुबह से उदास थी कुछ बताया नहीं ऐसा तो वो तब भी नहीं करती जब वो खुद बीमार हो, कुछ बात तो जरूर है। "

रंजन की माँ मुस्कुराते हुए "अरे बेटू को दोस्त की इतनी फिक्र , चल तू कॉफ़ी पी मैं फोन करके अंजलि के घर पता करती हूं। "

रंजन की माँ फ़ोन पर कुछ देर बात करती है फिर वो खुद भी परेशान हो जाती है ।फिर कुछ सोचते हुए रंजन से कहती है " तू परेशान मत हो अभी मैंने अंजलि को बुलाया है उससे कुछ बात पता कर बताती हूँ। "

थोड़ी देर में अंजलि आ जाती है और माँ के साथ किचन में चुपचाप खड़ी होकर कुछ काम में हाथ बटाने लगती तभी रंजन की माँ उसके सिर पर हाथ फेर कर बड़े प्यार से पूछती है।" आज मेरी अंजू इतनी चुप है कि उसके होने का तो पता ही नहीं चल रहा। "

इतना कहने की देर थी कि जैसे अंजू का दिल का गुबार आंसुओं के साथ बहने लगा और उसे रंजन की माँ ने गले से लगा लिया और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगी।

अंजू तो आज जैसे भरी पड़ी थी सिसकियों के साथ रोते रोते उसने रंजन की माँ को और कस के पकड़ लिया और उनका पूरा कंधा आंसुओं से भीगा दिया। कुछ देर बाद जब आंसू कम हुए तब रंजन की माँ उसे रसोई से बाहर लेकर डाइनिंग टेबल के पास कुर्सी पर बिठा कर उसे पानी दिया और फिर उसके आंसू पोंछ कर उससे फिर से बड़े प्यार से पूछा "अंजू कुछ बताओ भी तो अब कितना रोओगी देखो अब तुम नहीं चुप्पी तो मैं भी रोने लगूंगी। "

इतना सुनते ही एक नजर रंजन की माँ पर डाल अपने आंसू पोंछकर बोली " कल हमारे घर दादी आई थी जब मैं स्कूल से घर पहुंची तो मम्मी से बोली अब बहुत हुआ इसकी पढ़ाई बंद कराकर इसके हाथ पीले करो इसे क्या कलेट्टर बनाओगी इस पर मम्मी ने कहा अभी ये छोटी है, इंटर तो पढ़ लेने देते है फिर सोचेंगे तो दादी बोली जैसी मां वैसी बेटी इसके छोटे छोटे कपड़े नहीं दिख रहे पूरी घोड़ी हो गई है तुझे शहर में क्या भेजा बेशर्म हो गए है राम राम राम इस पर मम्मी बोली ये तो स्कूल ड्रेस है सभी लड़कियां पहनती है इस पर दादी ने कहा देख मैं तो जा रही हूँ पर आने दे मेरे बेटे को फिर सबसे पहले इस लड़की की शादी ही कराऊंगी तभी चैन से बैठूंगी इतना कहकर दादी चाचा के साथ चली गई पर मुझे डर लग रहा है कि मेरी पढ़ाई का क्या होगा। "

रंजन की माँ ने अंजलि के हाथ को हाथ में लेकर बोली "अरे बेटा इतनी सी बात मैं और तेरी मम्मी तेरे लिए इस पूरी दुनिया से लड़ जाएंगे तेरी दादी क्या चीज है तू बस पढ़ाई पर ध्यान दे।"

इतना कहने भर से अंजलि के चेहरे पर मुस्कान पूरे दिन में पहली बार लौटी ये देखकर रंजन के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई जो उन दोनों की बातों को अपने कमरे के दरवाजे की ओट से सुन रहा था और अपने कमरे से डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ते हुए बोला "मम्मी किसी के शादी में गए कई साल गुजर गए तो मम्मी लड्डू खाने कब चलना है। "

इतना कहना था कि अंजलि उठी और रंजन आगे आगे अपने कमरे की तरफ वापस भागने लगा अंजलि पीछे पीछे बोल रही थी "रुक आज तेरा मुंह ही लड्डू जैसा लाल कर देती हूं।"

इतना कहते कहते रंजन बेड तक पहुंचकर पलटा तब तक अंजलि डोर मैट में उलझकर रंजन के साथ बेड पर गिर गई। अंजलि अभी भी किसी ख्वाब की तरह एक टक रंजन की आंखों में देख रही थी और रंजन भी आज पहली बार उसे इतने नजदीक से देख रहा था अंजलि के शरीर की खुशबू रंजन की सांसो में घुल कर उसे मदहोश कर रही थी पहली बार उसे उस छुअन का एहसास अजीब अजीब अहसास करा रहा था रंजन ने अंजलि के गुलाबी चेहरे को कई बार देखा था पर आज कुछ अलग था लग रहा था मानो गुलाबी गुलाब पर आंखें नाक और होंठ लगा दिए गए हो अंजलि का मासूम चेहरा रंजन को किसी और दुनिया में ले गया ,रंजन और अंजलि के दिलों का एहसास एक हो चुका था पर तभी उसे माँ की आवाज बाहर से आई "क्या हुआ रंजन अंजलि गिर गई क्या। " 

रंजन ने अंजलि को कंधे से पकड़ कर उठाया तो अंजलि की तंद्रा टूटी और वो दोनों हाथ से अपने चेहरे को शर्म से ढक कर वही बेड पर बैठ गई। रंजन ने माँ को जवाब दिया " नहीं माँ बस गिरते गिरते बच गई।"

माँ ने कहा " ठीक है तुम लोग बात करो मैं नहाकर आती हूँ। "

रंजन ने अंजलि के हाथों को पकड़ कर हटाया तो अंजलि के शर्म से सेब जैसे लाल गाल दिखे तो रंजन की मुस्कुराहट और बढ़ गई अब एक नजर अंजलि ने रंजन को देखकर अपनी आंखें झुका दी।

रंजन बोला "आज तुझे क्या हुआ ये दुल्हन की तरह शर्मा क्यों रही है बाहर तो अपनी शादी की धड़ल्ले से बातें कर रही थी।"

इतना कहना था कि शर्म का गुलाबी रंग एक झटके में उतर गया और अंजलि के आंसू एक बार फिर बहने लगे रंजन को पछतावा होने लगा कि अभी तो जैसे तैसे चुप हुई इसे फिर रुला दिया तो बोला "सॉरी सॉरी मुझे माफ़ कर दे मेरे कहने का वो मतलब नहीं था प्लीज् अब रो मत। "

अंजलि फिर रोये जा रही थी तो रंजन ने उसके पैरों के पास बैठ कर उसके हाथों को हाथों में ले लिया और बोला "देख बड़ी मुश्किल से तेरे चेहरे की हंसी लौटी थी मुझे माफ़ कर दे अब दोबारा ऐसा नहीं करूंगा। "

अंजलि रोते रोते बोली "तो ऐसी बात करता क्यों है। "

रंजन ने दोनों कान पकड़े हुए कहा "अब बस ले कान पकड़ कर माफी मांग रहा हूँ अब तो माफ कर दे। "

अंजलि ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा" ठीक है इस बार माफ कर दिया पर दोबारा बोला तो समझ लेना। "

रंजन मुस्कुराते हुए बोला " ये हुई न बात पर अब मुझे बस एक दुख है एक शादी की दावत का नुकसान हो गया" और खिलखिलाने लगा ।

इतना सुनकर रंजन के सीने पर मारते हुए रंजन के गले लग गई रंजन भी उसके सिर पर हाथ फेरने लगा ।

रंजन और अंजलि दोनों ही बस ऐसे ही गले लगे थे दोनों की आंखें बंद हो चुकी थी सांसे दोनों जैसे एक साथ ले रहे थे जैसे एक जिस्म हो चुके हो और उनका अलग होने को दिल ही नहीं कर रहा था तभी बाहर से माँ की आवाज आई "रंजन अंजलि चली गई क्या। "

रंजन के बोलने से पहले अंजलि ने रंजन से अलग होते हुए कहा "नहीं आंटी अभी यही हूँ। "

ये कहते कहते एक बार फिर रंजन को देखकर अंजलि मुस्कुराई और रसोई की तरफ चली गई और रंजन उसके जाने के बाद अपने बेड में लेट कर अंजलि के मासूम चेहरे और उसकी प्यारी मुस्कुराहट के बारे में सोचने लगा ।

ऐसे ही लेटे लेटे उसकी नींद लग गई और फिर हड़बड़ाकर तब नींद टूटी जब उसे माँ के चीखने की आवाज आई ...


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance