ये मर्दजात कितनी बदजात
ये मर्दजात कितनी बदजात
"ये मर्द जात भी कितनी बदजात है , जो औरतों को चैन से जीने भी नहीं देते " रौशनी ने झल्लाते हुए कहा.
"अरे नहीं दीदी सारा कुसूर मर्दों पर डालना ठीक नहीं " नीलू ने आदतन अपना पक्ष रखा।
" बड़ी आई मर्दों की वकील , तूने अभी देखा ही क्या है ,झेल तो मै....." कहते कहते रौशनी रुक गई , कई लकीरें माथे पर खिच गई।
नीलू ने पूछा,"क्या हुआ दीदी " नीलू के कंधे पर हाथ रखते ही किसी दिवास्वप्न से चौंक गई और जाते हुए बोली " कुछ नहीं बस मुझे मर्द पसंद नहीं "
रौशनी , नीलू और उनकी माँ (मिसेज शर्मा )कुल मिला कर तीन प्राणी का छोटा सा संसार, शर्मा जी का देहांत तो कई साल पहले ही लम्बी बीमारी के बाद हो गया था .पर उनकी कमी को पूरा करने में मिसेज शर्मा ने कोई कमी नहीं छोड़ी शर्मा जी के ऑफिस में नौकरी कर ली जिससे गुजारा ठीक हुआ तो बेटियों की पढाई भी ठीक से होने लगी।
पर आज हालत कुछ और थे , आज रौशनी पहले वाली छोटी सी दस साल की गुडिया नहीं, उन्नीस साल की नव यौवना थी और ग्रेजुएशन कर रही थी ,आज नीलू और मिसेज शर्मा से कहीं ज्यादा शर्मा जी जरूरत महसूस हो रही थी, इसी लिए वह कभी रात को बिस्तर पर कभी कभी नहाते हुए बाथरूम में रो कर दिल हल्का कर लेती थी।
इस उखड़े रवैये से परेशां घर के सभी सदस्य चाह कर भी कुछ जान नहीं पा रहे थे माँ ने तो कई बार पूछा पर जवाब में या तो रौशनी चुप रह जाती या टाल देती
खैर दिन ऐसे ही गुजरते रहे और एक दिन रौशनी घर में धडधडाते हुए कॉलेज से आई साइकिल किनारे टिकाई और कमरे में जाकर बिस्तर पर गिर गई नीलू जल्दी से आई तो देखा की रौशनी लेटे हुए हाफ रही है और कपडे गंदे है जैसे गिर गई हो नीलू जाकर पानी लेने गई तो देखा की साइकिल का अगला टायर कुछ टेड़ा हो गया है .पानी देते वक़्त रौशनी से पूछा "क्या हुआ" रौशनी ने अभी भी चुप्पी साध रख्खी थी।
शाम को मिसेज शर्मा ने साइकिल की हालत देखी तो डर गयी और सीधे रौशनी को पुकारते हुए कमरे में जाकर रौशनी को गले से लगा लिया और खुद धम्म से बिस्तर पर बैठ गई।
नीलू तुरंत पानी लाई देखा तो रौशनी की गोद में मिसेज शर्मा लगभग अचेत सी लेटी हैं रौशनी नें गिलास लेकर पानी के छीटे मिसेज शर्मा के मुहं पर मारे तब कुछ होश में आ गई। अब इस हालत में रौशनी ने कुछ भी माँ को बताना मुनासिब समझा और बहाना बना कर टाल गई।
अगले दिन शनिवार था तो मिसेज शर्मा सब्जी लेकर घर आई देखा तो घर पर कोई मेहमान आये है अन्दर शर्मा जी के छोटे भाई त्रिलोचन शर्मा , किसी लड़के के साथ बैठे थे।
"भाभी जी नमस्ते " कहते हुए त्रिलोचन नें पैर छूए तो मिसेज शर्मा ने नीलू से कहा की चाय बना ला
"और बताइए भाईसाहब घर में सब ठीक है " मिसेज शर्मा पसीना पोछते हुए बोली
"भाभी सब ठीक है ममता (त्रिलोचन की पत्नी )तो आने को कह रही थी पर मैंने ही कहा की आज इस गर्मी में कहा साथ में मारी फिरेगी और घर भी अकेला छोडना ठीक नहीं " त्रिलोचन सोफे पर ठीक से टिकते हुए बोले
"हाँ सही कह रहे हैं कुछ दिन से तो कूलर भी जवाब दे गया है "मिसेज शर्मा चाय देते हुए बोली
अब त्रिलोचन को मुद्दे पर आते ज्यादा टाइम ना लगा।
"वैसे भाभी मैं कह रहा था की पीछे वाला जो कमरा है वो खाली है न," त्रिलोचन चाय का सिप लेते हुए बोले
"हाँ खाली है पर अब उसे स्टोर बना रखा है , क्योँ " मिसेज शर्मा ने सवाल पूछा
" ये मेरे साले का लड़का है सूरज इसे यहाँ एक कॉलेज में एडमिशन मिल गया है सोचता हूँ अगर इसे यहाँ .."कहते कहते बीच में ही चाय की सिप से मुहं भर लिया
बड़ी शंका में डूब गयी मिसेज शर्मा .अब क्या कहे
सूरज वक़्त की नजाकत को समझते हुए बोला"आंंटी मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता इसलिए मैं आपके यहाँ किरायेदार की तरह ही रहूँगा, वक़्त पर किराया देता रहूँगा, वो तो मेरे अजनबी होने के कारण यहाँ कोई कमरा नहीं दे रहा इसलिए आप के पास आना पड़ा वर्ना मै तो खुद आपको परेशां नहीं करना चाहता था "
सूरज ने एक सांस में अपनी दिल की बात को रख दिया।
मिसेज शर्मा की थोड़ी शंका दूर हुई तो बात बनाते हुए बोली ."ऐसी कोई बात नहीं है बेटा ,बस कमरा थोडा छोटा है इस गर्मी में कैसे रह पाओगे "
" नहीं आंटी कोई बात नहीं मैं एडजस्ट कर लूँगा और रही बात गर्मी की तो मैं कही भी रहू ये तो पीछा नहीं छोड़ेगी " सूरज अपनी बात मनवाने की जद्दोजहद में लगा हुआ था।
अभी इस अनजान लड़के को लड़कियों के घर में पनाह देना ठीक है या नही जैसी कई बातों का सोच कर मिसेज शर्मा उठने को हुई तो
"बुआ,बस सामान कहाँ रखना है ये बता देना " मुस्कुराते हुए सूरज बोला
लगभग निरुत्तर सी मिसेज शर्मा को नीलू की आवाज रसोई से आई वो चली गई।
" माँ कहाँ मुसीबत मोल ले रही हो " नीलू धीमे से फुसफुसाते हुए बोली।
"क्या करू ऐसे मना भी तो नहीं कर सकते,
तुम्हारे पापा के जाने के बाद तुम्हारे चाचा ने हमारी बुरे वक्त में कितनी मदद की है, मना करूँ भी तो किस मुँह से, और फिर अपनी ममता चाची को तो जानती ही हो उसे पता लगा कि उसके भाई के लड़के को मना किया वो भी किराये पर कमरा देने से तो घर सर पर उठा लेगी" मिसेज शर्मा ने समझाने की कोशिश की
"पांच छेह सौ देकर पूरा घर अपना समझेगा " नीलू थोड़ी तेज आवाज में बोल गई।
मिसेज शर्मा कुछ सोचते हुए बाहर आ गई।
त्रिलोचन बोले "ठीक है भाभी तो अब हम चलेंगे, चलो भई सूरज "इतना कह कर त्रिलोचन बाहर निकल गए।
सूरज ने पैर छूए और बोला " आंटी माफ़ करना मैंने आपकी बातें सुन ली थी मैं पैसे की एहमियत समझता हूँ, इसलिए मैं पांच छेह सौ में किसी का घर कब्जाने बाला नहीं और मैं पंद्रह सौ तक देकर कमरा ले सकता हूँ, इससे ज्यादा मैं नहीं दे पाउँगा क्यूंकि पढाई का खर्च भी निकालना है "
ये कह कर सूरज बाहर जाने लगा तो मिसेज शर्मा ने उसे बुलाया और बोली"कब से आओगे "
सूरज मुस्कुराने लगा और बोला "मुझे सोमवार से ही कॉलेज जाना है इस लिए कल का ही दिन है "
मिसेज शर्मा ने मुस्कुराते हुए कहा "ठीक है पर अगर कोई गलती हुई तो भाई साहब से शिकायत कर दूँगी "
इस पर त्रिलोचन कुछ कह पाते तब तक सूरज बोला " अरे नहीं बुआ मेरे कान पकड़ने को आप हो तो फूफा जी को बताने की क्या जरूरत है "
और इस पर दोनों हसने लगे और सूरज चला गया
अगले दिन से सूरज ने अपनी बातों से सबको अपना बनाना शुरू कर दिया। सूरज की बातें होती ही ऐसी थी कि कोई प्रभावित हुए बिना रह नही पाता था पर अभी भी रौशनी से दूरी बनी हुई थी इसी बीच रौशनी की नीलू और माँ से भी सूरज से बात करने के कारण कहा सुनी बढ़ती गयी क्यूंकि रौशनी को एक मर्द का उसके घर में होना खल रहा था जिससे वो सबसे ज्यादा चिड्ती थी।
आखिर एक दिन कपडे धोते वक़्त नीलू से पूछ ही लिया " क्या तुम्हारी दीदी हमेशा से ही ऐसी थी या मेरे आने के बाद हुई है "
नीलू ने हँसते हुए कहा "अरे नहीं वो तो सबसे ज्यादा तेज ठहाका लगाती थी की दादी को डंडा लेकर मारने आना पड़ता था चुप करा ने के लिए "
" तो अब क्या हुआ " सूरज ने कपडे रोक कर नीलू की बात पर ध्यान दिया।
" पता नहीं जब से कॉलेज में एडमिशन हुआ तब से ऐसी ही मर्दों से चिडने लगी है " नीलू ने बाल्टी में हाथ छप छपाते हुए उदास मन से कहा।
अब सूरज को लगा की कुछ बात तो है जो रौशनी को परेशान कर रही है।
सूरज अगले दिन से ही जाँच पड़ताल में लग गया।
दोस्तों से कॉलेज में पता लगाया कुछ पता नहीं लगा फिर एक दिन शाम को उसका पीछा करने लगा तो देखा, रामदास चौराहे के पास कुछ लड़के खड़े हैं और रौशनी को घूर रहे है अब रौशनी भी तेजी से पेडल मार कर तेजी से साइकिल दौड़ा रही है और लड़के हंस हंस कर सीटी बजा रहे हैं उनमे से एक बोला "क्या झांसी की रानी है घोडा दौड़ा रही है " तो दूसरा बोला "अरे हमें भी तो बैठा लो आगे नहीं तो पीछे ही टिक जायेंगे "
इसी बीच सूरज ने देखा की अब रौशनी आगे निकल चुकी तो लड़कों के पास पहुँच गया और बोला "क्या बदतमीजी है "
तो एक बोला " क्योँ तेरी बहन है क्या "
सूरज ने उसके एक जोरदार चाटा जड़ा और बोला " चल तुझे थाने में ही बताऊंगा की बहन के साथ तुझे कैसे बोलना चाहिए "
इतने में एक ट्राफिक हवालदार आया और सलाम कर के सूरज से बोला "आप यहाँ कैसे, साहब "
सूरज बोला "थाने में शिकायत की उस लड़की ने ,कि कुछ लड़के उसे परेशान कर रहे हैं वही देखने आया था ये साले यहाँ डेरा जमाये हैं, अब थाने में रामलीला कराऊंगा इनसे "
लड़कों में से पीछे से निकल कर एक हाथ जोड़ कर आया "साब माफ़ कर दो अब नहीं करेंगे "एक एक कर सभी ने सॉरी बोलना शुरु कर दिया।
तो सूरज बोला " अरे नहीं आज की रात तो थाने में तुम्हारे पिछवाड़े पर लाल रंग की पुताई करूँगा वो भी अपने प्यारे डंडे से "
अब तो सब के सब डर गए और दो ने तो पैर भी पकड लिए।
हवलदार बोला "छोड़ दो साब अगर अब ये यहाँ दिखाई दिए तो मैं खुद आपको फ़ोन कर दूंगा "
सूरज बोला " फिर भी गलती कि सजा तो मिलेगी तुम सब को मुर्गा बनना पड़ेगा "
सभी सड़क को इधर उधर देखते मुर्गा बन गए .।
सूरज ने कैमरे में एक फोटो ली और सबको भाग जाने के लिए कहा।
सबके जाने के बाद ट्रेफिक हवलदार को पचास रुपये बडाये तो हवलदार बोला " अरे नहीं बेटा मै बिकाऊ हूँ पर मेरे भी बेटियां हैं आज का ये ड्रामा करके एक बेटी को ही तो बचाया है "
"ठीक है हवलदार जी, मेरी बात पर भरोसा कर आपने मेरा इतना साथ दिया उसका बहुत धन्यवाद पर कल से मैं खुद इस जगह दिखाई दूंगा सिर्फ कुछ दिन के लिए" कहते हुए सूरज घर की ओर चल दिया। हवलदार उसकी इस आखिरी बात को शायद समझ नही पाया पर कुुुछ पूूछा भी नही।
फिर अगले दिन से लड़कों की जगह वो खुद वहां बैठने लगा और जब रौशनी आई तो सीटी मार कर बोला " कहाँ चली जानेमन " इतना सुनते ही रौशनी ने बिना उस ओर देखे पहले की तरह साइकिल दौड़ाने लगी और पीछे से वो भी घर की पिछली गली तक आया और मुड कर बापस चला गया और थोड़ी देर बाद जब घर में घुसा तो देखा रौशनी मुहं धो रही है।
उसने कुछ कहने के लिए उसके पास जाने को कदम बडाये तो वो पीछे मुड कर कमरे में चली गई।
सूरज ने भी रोज की आदत डाल ली और रोज पीछा करने लगा।
और एक दिन रौशनी की तरफ बड़ा तो मुड़कर रौशनी कमरे में नहीं गई और सूरज पास में जाकर खड़ा हो गया और पीछे से हलके से कान में बोला "ऐसे ही अगर उन लड़कों के सामने भी डट जाओ तो वो मैदान छोड़ कर ही भाग जायेंगे "
इतना सुनते ही रौशनी का गुस्सा काफूर हो गया और अचम्भे से कुछ देर सूरज को जाते देखती रही।
सूरज की बात रात भर सीने में कौंधती रही और आखिर रौशनी नें एक फैसला लिया और मुस्कुराते हुए करवट लेकर सो गयी।
अगले दिन वह तेजी से साइकिल लेकर बढ़ती जा रही थी तो फिर वही सीटी और आवाज आई " जानेमन हमे भी तो लेती जाओ "
इतना सुनते ही साइकिल आवाज की तरफ मोड़ कर बिना देखे एक झन्नाटेदार चाटा गाल पर रसीद दिया कुुुछ बोलने ही जा रही थी, फिर देखा तो ऑंखें फटी रह गई सूरज का लाल गाल देखकर तो जैसे हलक की आवाज हलक में ही अटक गई और फिर सूरज बिना कुछ बोले घर चला आया।
शाम के धुंध के बीच सूरज डूबते सूरज को देख रहा था और नीलू बैठे बैठे लाल गाल देखकर मुस्कुरा रही थी
इतने में रौशनी आई और बोली "सूरज ये सब क्या है "
तो सूरज उठा और मिसेज शर्मा के रसोई के स्लैब पर बैठ गया जहाँ मिसेज शर्मा खाना बना रही थी
मिसेज शर्मा गाल के लाल रंग को देखकर इतनी अचंभित नहीं हुई जितना रौशनी को देखकर और वो भी सूरज से पूछ रही थी " सूरज बताओ ये सब क्या है "
सूरज मुस्कुराया और बोला " देखिये आंटी जी ये जब मुझसे बात नहीं करती तो मै क्योँ करू "
इतने में नीलू ने आकर कहा " माँ दीदी ने सूरज भैया का गाल लाल किया है " और खिल खिला कर हंस पड़ी।
अब तो मिसेज शर्मा को भी जानना था की क्या बात है तो सूरज के चेहरे की ओर अचरज से देखने लगी।
सूरज उठा और आँगन के कोने में पड़ी बेंच पर पालती मारकर बैठ कर बोला "एक कहानी सुनो मज़ा आयेगा" नीलू बोली ठीक है कहो साथ में बाकि सब भी बैठ गए।
सूरज ने शुरू किया " एक राजकुमारी थी वो रोज पढने जाती थी तो रास्ते में शैतानों का गाँव पड़ता था वो उसे परेशान करते थे तो वो अपना घोडा और तेजी से दौडाते हुए निकल जाती थी शैतान अपनी शैतानी पर और खुश होते और रोज उसे परेशान करते , इस तरह कई महीने बीतते गए पर कोई हल न निकला और एक दिन एक बाबा वहां से गुजर रहे थे तो उन्होंने देखा की राजकुमारी शैतानों से नहीं अपने डर से ज्यादा डरती है तो राजकुमारी को एक मंत्र दिया और अगले दिन राजकुमारी ने सब शैतानों को मार भगाया कहानी कैसी लगी "
"पर तुम शैतानों की जगह .."कहते कहते रौशनी शर्मा गई और इस पर नीलू अपनी हसी रोक नहीं सकी।
तब सूरज बोला " मेरा काम तो केवल मंत्र का असर देखना था तो वहां खड़ा हो गया "
" और वो शैतान कहाँ गए बाबा जी" नीलू ने पूछा
"आओ बच्चा दिखाता हूँ" और ये कह कर अपने कमरे में सभी को ले गया और तस्वीर जिसमे लड़के मुर्गा बने हुए थे देते हुए बोला "देखो "
उस तस्वीर को देखते ही रौशनी खिलखिलाकर हसने लगी ये देख मिसेज शर्मा के आँखों से आंसू निकलने लगे आखिर कर उन्हें उनकी पुरानी रौशनी जो मिल गयी थी।