कालखंड धारावाहिक, महामारी भाग-
कालखंड धारावाहिक, महामारी भाग-
मंदिर के फर्श पर बेहोश हुए युवक को तनिक होश आता है। पंडित की लड़की भागी हुई आती है। । उसे पीने हेतु जल देती है। युवक की आँखों में पीड़ा थी कदाचित कितने ही समय से उसने भोजन भी नहीं किया था। । युवती जिसका नाम कर्णिका था। उससे भोजन का आग्रह करती है जिससे वह युवक इंकार नहीं करता।
वर्षा बदस्तूर जारी थी। घटाएं जोर-शोर से बरस रही थी। पंंडित महादेव की अराधना कर रहा था। तत्पश्चात पुत्री द्धारा लाएं भोग से अपने अराध्य को भोग लगा। उस युवक के साथ भोजन करता है।
भोजन के उपरान्त पंडित के युवक से वार्तालाप करता है तो पता चलता है… तीव्र बारिश ने गांव को जोड़ने वाला नदी पर बना एकमात्र का पुल को तोड़ दिया, जिससे वह अपने घर जाने में असमर्थ हो गया तब पेड़ के नीचे उसने आश्रय लिया।
मंदिर का प्रांगण बहुत विस्तृत था। गर्भगृह के पीछे पंडित का परिवार रहता था। पत्नी के देहांत के बाद परिवार के नाम पर उसकी एक ही बेटी है कर्णिका। उसका रूप पूर्णिमा के चंद्र की भांति दीप्तिमान होता है। गांव में आई विपदा से पंडित दुखी था, आधे लोग गांव छोड़कर जा चुके थे बचे हुए लोग जलमग्न हुए घरों से समान बचाकर पहाड़ी की गुफा में शरण लिए हुए थे। पहले ही गरीबी में रह रहा विप्र बाह्रमण सोच में था कि लोगों द्धारा किए मंदिर में देवदर्शन से जो कुछ चढ़ावा मिलता था उससे दो जन का पेट भर जाता था, उस पर विवाह योग्य हुई पुत्री के विवाह की चिंता उसकी डसती रहती हैं, शिव के प्रति भक्ति में वह हमेशा लीन रहता लेकिन स्वर्गवासी पत्नी की एकमात्र निशानी अपनी पुत्री के मासूम सुंदर रूप को देख सोचता गुणों से युक्त उसकी पुत्री को काश उसके योग्य वर मिल जाए। उसकों लगने लगा कि कही इसी चिंता में उसके प्राण न निकल जाए। फिर सोचता मेरे बाद मेरी पुत्री का क्या होगा यह सोच प्रभु से समस्या का हल निकालने की प्रार्थना करता रहता।
सुबह का उजाला फैल चुका था।
कर्णिका मंदिर की साफ-सफाई में जुटी थी। उसके लंबे केश कंधों पर बिखरे हुए थे। जिससें पानी की बूंदे टपक कर उसके गालों पर गिर रही थी। जिसें वह बीच-बीच में अपने आंचल से पोछ रही थी। मीठे स्वर में कुछ गुनगुना रही थी। शरणागत युवक उसकी सुंदरता को अपलक देख रहा था। उसने इससे पहले इतना मासूम मुख नहीं देखा था।
बारिश कुछ कम हुई। कर्णिका ने पिता से कहा कि वह पूजा के लिए बगीचे से फूल चुन कर लाती है। "वर्षा तो रूकने दे बेटी, भीग जाएगी।"
"नहीं पिताजी पूजा का समय हो गया है। फिर भोग और भोजन की तैयारी भी करनी है। "
"अच्छा तो जा। मैं स्नान करता हूं और इस मुसाफिर को भी बोलता हूं स्नान कर पूजा में शामिल हो। "
"ठीक है पिताजी मैं शीघ्र ही आती हूँ। " कर्णिका गीत गुनगुनाती हुई… वर्षा की धीमी पड़ती बूंदों से खेलते हुए बगीचे से फूल चुनने लगती हैं।
कैलाश पर पार्वती महादेव के लिए खीर तैयार कर रही हैं। महादेव पार्वती को देख मुस्कुरातें। देवी का यह अन्नपू्र्णा रूप उन्हें बहुत भाता है वह छोटे बालक की भांति जब उनसे खीर की जिद करते है तो जगत जननी माँ अन्नपूर्णा पति के लिए खीर बनाने में प्रसन्न रहती है।
शहर में मृत्यु का तांडव जारी था… लोग अंजानी बीमारी से ग्रसित हो रहे थे यथासंभव प्रयास करने के बावजूद बड़े-बड़े डॉक्टर, वैज्ञानिकों की समझ में नहीं आ कहा था वह किसी इस विपत्ति ये बाहर निकले। शहरों में सन्नाटा था। संक्रमण रोग की चपेट में हर कोई आ रहा था। सरकारों ने लोगों को घरों में ही रहने के निर्देश दे दिए थे।
बदहवास से लोग बौरां रहे थे उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या हो गया दुनियां में। उनका मन तो बस यही कर रहा था कि वह पहले का जीवन फिर से जी ले। । यही लालसा उन्हें और बीमार बनाती जा रही थी।
महादेव धरती की तरफ देखते और अपने नेत्रों को बंद कर लेते। वह अपना मुंह मोड़ चुके थे।
आगे क्या होता है। जानने के लिए पढ़ते रहे।
क्रमश: