कालखंड-2, (महामारी-धारावाहिक)
कालखंड-2, (महामारी-धारावाहिक)
कैलाश पर सती महादेव का हाथ थामें चुपचाप चल रही थी। वह महादेव की क्रोध की आंच को महसूस कर रही थी।
क्रोध से लरजती नदियां बांधों को तोड़कर...निर्माणाधीन बस्तियों को रौंदती हुई अपने तीव्र वेग से दौड़ती जा रही थी मानो उन्हें सब बहा ले जाने के निर्देश मिले हो।
ऊँची पहाड़ी पर बने मंदिर में पंडित का परिवार डर से चुपचाप बैठा हुआ था...पंडित सर्वनाश को होता हुआ देख रहा था। जाकर शिवलिंग के निकट लेट गया।
वर्षा का जल निरंतर गांव की ओर बढ़ रहा था... नदी अपने पूर्ण प्रवाह में किनारे बसे गांवों, खेतों को उजाड़ती जा रही थी।
पंडित की लड़की तेज हवाओं से बचने के लिए खिड़की बंद करने को उठती है सहसा उसकी नजर एक युवक पर पड़ती हैं जो घनघोर बारिश में पेड़ के नीचे खड़ा भीगने से बचने की असफल कोशिश कर रहा है। पिता से विनती करती है इस विपदा में उसको आश्रय दें…!
पिता चुपचाप लेटे रहते है और हाथ से इशारा कर उसको अनुमति दे देते है।
पंडित की बेटी चादर ओढ़ उसको बुलाने जाती है। वह पहले आने से इनकार कर देता है… फिर सहसा अपने हाथ की तरफ देखता है जिसमें समान था...चल पड़ता है कृतज्ञता से युवती के आश्रयस्थल में।
वहां पहुंचकर निढाल हो मंदिर के फर्श पर ही गिर पड़ता है।
शिव-पार्वती के संग शिला पर बैठे है...कैलाश का दृश्य बहुत मनोरम है...पुष्प पल्लवित है...।तितलियां मकरन्द की लालसा में फूलों के चक्कर लगा रही हैं। पशु-पक्षी अराध्य की उपस्थिति में फूले नहीं समा रहे है। नन्दी आंखें बंद कर प्रभु की भक्ति में लीन एक कोने में खड़ा था।
शिव पार्वती की मनोदशा से परिचित थे...वह उनकी पीड़ा को महसूस कर रहे थे लेकिन नियति को बदलना नहीं चाहतें थे...। माँ का हृदय कितना कोमल है यह देख उन्हें हर्ष हो रहा था लेकिन फिर भी उद्दंड बच्चों के लिए सजा का प्रावधान भी था। वह स्वार्थी लालच से भरे मनुष्यों के कर्मों से उकता चुके थे... सोच रहे थे धरती पर सृष्टि क्या उन्होंने इसलिए बनाई थी...। इनका अंत तो निकट है ही तभी प्रारम्भ होगा एक नई दुनिया का जिसमें वहीं भागीदारी होंगे जो इस कठिन परीक्षा में खरे उतरेंगे...पुन: त्रुटि सुधारने का कोई प्रश्न अवशेष न था।
...। महादेव सोच रहे थे क्या इन मनुष्यों का जीवित रहना उचित है जो धरती पर फैली महामारी में भी धन कमाने का लालच कर दुखी मनुष्यों के दुख को और बढ़ा रहे शिव ने घृणा से आंखें बंद कर रही...। उन्हें अब इन मानवों में कोई दिलचस्पी न थी न इनकी पीड़ा में न इनके रूदन में...।विनाश ही इनकी नियति है।
आगे क्या होता है...। जानने के लिए पढ़ते रहे...
क्रमश:
खंडन (Disclaimer):- यह कहानी पूर्णतया कल्पनाओं पर आधारित हैं किसी भी जीवित पात्र, व्यक्ति, घटना व स्थान की प्रासंगिकता से इस धारावाहिक कहानी से सरोकार नहीं हैं।