Sunita Sharma Khatri

Tragedy

4.5  

Sunita Sharma Khatri

Tragedy

कालखंड-1********** (महामारी)

कालखंड-1********** (महामारी)

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417


“महादेव आप ध्यान में हो !”जाग जाइये प्रभु...चारों और हाहाकार मचा है!कुछ कीजिए..अकारण ही मृत्यु को प्राप्त हो रहे धरती वासी. सर्वत्र त्राहि-त्राहि मची हुई...मुझसे बालक-बालिकाओं का करूण रूदन नहीं सुना जाता...दोषियों को सजा देने में निर्दोष भी मर रहे है...शवों के अंबार लग चुके हैं!”

सहसा शिव के नेत्र खुले देखा सती रो रही थी...

“शान्त हो जाओं पार्वती !”

“मनुष्यों को उनकी करनी भुगतने दो...अपने स्वार्थ में अंधा हो उसने तुम्हारें करोड़ों पुत्रों को काट डाला यह तो अभी शुरूवात बस है..!”

 क्रोध से शिव की भकुटियां तनी हुई थी...नेत्र लाल हो उठे. “मानव को यह समझना होगा, जब वह हरे-भरे वृक्षों को काट रहा था तब उसकों यह जानने के बावजूद कि यह उसके प्राणों की रक्षा करते है इनके अभाव में उसकों सांसें नहीं मिलेगी, काट डाला उसने परिणाम की परवाह किए बगैर अब उसका दंड तो मिलना ही हैं….जो विनाश के बीज उसने बोयें वही.. अब उसकों नरभक्षी पेड़ बन अपनी शाखाओं में जकड़ कर प्राण ले रहे है.”

“इसमें तुम क्यों रूदन करती हो, आओं तुम मेरे पास, मेरे सानिध्य का आनंद लो..!”पार्वती असमंजस में आ गई ! 

“क्या सोच रही हो देवी, मुझे समाधि से क्यों उठाया तुमने, क्या उन निकृष्ट मनुष्यों की पीड़ा का वर्णन करने हेतु. जिसे मैं कादापि नहीं सुनना चाहता.”


 यहां देवी पार्वती के नेत्रों से अश्रु की धारा बह रही थी.. वही पृथ्वी पर घनघोर वर्षा हो रही थी, पहाड़ो पर नदियां उफान पर थी…


धरती पर बर्बादी का मंजर…सर्वत्र ..काले घनघोर बादल..बिजली जोर से कडकड़ा रही थी..कही चिताएं जल रही थी तो कही अधजले शव जानवरों का निवाला बन रहे थे.

ऊंची अट्टालिकाओं से रूग्ण रूदन के स्वर आ रहे थे. बदहवास मनुष्य इधर-उधर भाग रहे थे. श्वास के अभाव में दम घुट रहा था. जो भवन व सुख-साधन के समान  उन्होंने अपने लिए जमा किए थे वही उनका दम घोट रहे थे.. तिजोरी में बंद रूपया दोनों हाथों से लूटाने पर भी चंद सांसे नहीं खरीद पा रहे थे ! धरती स्वंय अपनी दयनीय स्थिति पर विलाप कर रही थी.


क्रमश:

आगे क्या होता है..जानने के लिए पढ़ते रहे..


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