Sunita Sharma Khatri

Tragedy

2.3  

Sunita Sharma Khatri

Tragedy

औकात

औकात

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"तेरी औकात ही क्या है ..चवन्नी छाप !!

ले पकड़ अपना समान निकल जा मेरे घर से इसी वक्त मेरे घर से। "

सिसकते- सिसकते उसने अपना समान उठाया और चल पड़ा एक नयी डगर पर। मालिक के शब्द कानों में गुँजते रहे।

" बाबू जी कोई काम दे दो... तुम्हारे घर का सारा काम कर दूंगा ,"

" कौन हो तुम ??"

"में पहाड़ की तलहटी के गाँव में रहता हूँ साहब ! उसका स्वर रूआंसा हो उठा ...पानी ने लील लिया ..बाढ़ आयी थी ...अलकनन्दा में बह गये खेत ,गाँव प्रलय आया था ! साहब न जाने मै कैसे बच गया , एक बाबू साहब अपने साथ इस शहर में ले आये थे। "

घर से निकाल दिया ! साहब बिना वजह ! मै घर का सारा काम करता था। "

"अगर तूझे निकालना ही था तेरे साहब तूझे लाये क्यो थेे ? जरूर तूने कुछ किया होगा।"

"में सच कह रहा हूँ साहब मैने कुछ नही किया। "

"नाम क्या है तेरा"

प्रकाश है साहब मेरा नाम... माँ कहती थी तू जहाँ जायेगा वहाँ प्रकाश फैल जायेगा '

यह नाम मेरी माँ ने रखा था.'..

' माँ है तेरी ?"

"नहीं साहब उसे भी नदी का पानी लील गया कुछ नही बचा। "

" अच्छा चल मेरे साथ घर का काम कर लेगा !

' हांँ जी साहब !!'

प्रकाश का चेहरा चमकने लगा ..

" तो चल".

प्रकाश सोच रहा था

" यह नये साहब बड़े अच्छे है अबकी मेहनत से काम करूंगा।

लेकिन अगर यह साहब भी औकात बता कर निकाल देगें ?, तो फिर ?"

प्रकाश के दिमाग में हजारों सवाल चल रहे थे .

"यूँ ही भटकता रहूंगा में?"


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