V. Aaradhyaa

Romance Classics

4.7  

V. Aaradhyaa

Romance Classics

काहे जोहे बाट री बावरी

काहे जोहे बाट री बावरी

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आज सुप्रिया जो देखकर आई थी... वह उसे बार बार कुरेद रहा था।

इसलिए वह अपनी उत्सुकता दबा नहीं पा रही थी।

" दीदी ! वो लड़की जो आज आपको मार्केट में मिली थी। वह बड़ी सुन्दर थी। पर ...वो पागल है क्या? जो ऐसे टुकुर टुकुर देखे जा रही थी। कुछ बोले तो जवाब ही नहीं दे रही थी। बड़ा अजीब सा था उसके चेहरे का भाव। और वो आपसे क्यों पूछ रही थी कि,

" वो आ जायेंगे तभी उनको लेकर घर आऊँगी !"

सुप्रिया घाट से आकर हाथ पैर धोकर बैठ गई थी और रसोई से दिद्दा के हाथ की चाय की खुशबू सूंघकर देखा कि दिद्दा यानि उसकी सुरभि दीदी चाय लेकर आ गई है तो उनसे पूछ बैठी।

सुप्रिया ने सुरभि दीदी के हाथ से चाय का कप लेते हुए कहा,

"तु चाय पी ले फटाफट, फिर मुझे फोटो दिखइयो जो तुने आज पर ली थी। मेरे मोबाइल से मुई फोटो उतनी अच्छी नहीं आती। चेहरे के दाग धब्बे सारे दिखते हैं। तेरे फोन से तो चेहरा एकदम चिक्कन लगता है और... एकदम सुन्दर भी !"

सुरभि ने जैसे बात टालने के गर्ज़ से कहा जो सुप्रिया समझ गई। आखिर कैसे नहीं समझती। बचपन से दोनों बहनों को ज़ब अंदेशा होता कि अभी ये बात करना उचित नहीं या कोई उनकी बात सुन रहा है तो ऐसे ही बात बदलकर कोई भी ऐसी बात करने लग जाती थी जिससे उनकी बात छुपकर सुननेवालों की रूचि समाप्त हो जाती थी। आज भी सुरभि को बेहतर पता था कि बगल के कमरे में प्रिया भाभी उन दोनों बहनों की बातें सुनने की कोशिश ज़रूर कर रही होंगी।

अब तक सुप्रिया भी समझ चुकी थी कि अब ज़्यादा इस विषय पर बात नहीं करनी है।

सुप्रिया अबके पूरे पाँच साल बाद बनारस आई है। इतने अरसे बाद मायके आना उसके लिए कोई उत्सव से कम नहीं था। वैसे उत्सव में ही तो आई थी वह। एकलौते लाडले भतीजे अंशुल का यज्ञपवित संस्कार था और इसमें छोटी बुआ कैसे ना आती। ज़ब अंशुल का जन्म हुआ था तो काज़रपराई की रस्म भी सुप्रिया ने ही तो की थी। तबसे अब आ पाई है। एक तो अम्मा,भैया,भाभी, दोनों बच्चों अंशुल और अंतरा से मिलने की ख़ुशी और दूसरी तरफ दिद्दा से मिलने की बेताबी...सुप्रिया तो ट्रेन में भी ख़ुशी से बिल्कुल ना सो पाई थी।सुरभि का ससुराल भी एक ही शहर में था।अतः जाने से पहले सुप्रिया को ज़नेऊ संस्कार के बाद अपने घर कुछ दिन रुकने का आग्रह करते हुए बोली,

"छोटी ! जनेऊ के बाद कुछ दिन दिद्दा के घर रहकर जइयो नहीं तो बात नहीं करुँगी हाँ... ! "अरे दिद्दा ! ऐसे कैसे हमसे बात ना करोगी? हम तुम्हारे घर ही जम जाएंगी, सोच लो। फिर मत कहना कि ई छुटकी तो जाने का नाम ही नहीं ले रही !"नटखट सुप्रिया अभी भी अपनी सुरभि दीदी के सामने बच्ची सी बन जाती थी।

"अरे, छुटकी ! मैं तो अपनी किस्मत को सराहुँगी जो तुम कुछ दिन मेरे पास रह लोगी तो। ऐसे बिदेस जाकर बस गई हो सात समुन्दर पार कि पाँच साल में तो तुम्हारा चेहरा देखना नसीब हुआ है !"

सुरभि सुप्रिया को गले लगाकर प्यार करते हुए बोली।

यह देखकर अम्मा का जी ज़ुड़ा गया। बचपन सेदोनों बहनें एक दूसरे पर जान छिड़कती थीं। सुरभि तो जैसे सुप्रिया की देखभाल माँ की तरह ही करती थी। दोनों बहनों में लगभग आठ साल का फर्क था। बीच में था संजय दोनों बहनों का इकलौता भाई।

अपने छोटे से संसार में गायत्री देवी ने अपने बच्चों को आपस में प्रेम की कड़ी से ही तो जोड़ रखा था।  सुरभि के जाने के बाद सुप्रिया अपनी भाभी का हाथ बंटाने रसोई में चली गई। सुप्रिया की आदत ही ऐसी है,एकदम मिलनसार और जहाँ जाती है सबको अपना बना लेती है। फिर यह तो उसका मायका था। उसके उम्र का चौथा दशक शुरू हो गया था पर बचपना अब भी सोलह सत्रह साल की लड़कियों वाला था।

"मम्मी मेरी गुड़िया निकाल दो अंतरा को उससे खेलना है !" बोलती हुई सुप्रिया की बेटी ख़ुशी आ गई तो भाभी ने ज़बरदस्ती सुप्रिया को भेज दिया और थोड़ी देर आराम करने को कहा।सुप्रिया ख़ुशी को खिलौने निकालकर देने के बाद थोड़ी देर को अपने कमरे में सुस्ताने को लेट गई तो अचानक उसे घाट पर वाली पगली लड़की की याद आ गई। वो जितनी बार याद करती उसे उसका चेहरा जाना पहचाना सा लगता था। कौन है ये? कहाँ देखा है इसे?दुल्हन के लिबास में पथराई आँखें... !कुछ तो अनहोनी हुई है इसके साथ...पर क्या? सुप्रिया देर तक उलझी सी रही फिर सोचा, कल दिद्दा से जानकर रहेगी।रात के खाने के बाद अम्मा उसीके साथ आकर सो गईं। गिरीश बैठक में सोये थे। उन्हें शुरू से ही ससुराल में सुप्रिया के साथ एक कमरे में सोना अजीब लगता था।

रात में सुप्रिया अम्मा से अगले दिन होनेवाले उत्सव के बारे में बात करते हुए उस घाट वाली लड़की की बात छेड़ बैठी तो अम्मा ने बताया,

"बिटिया !अच्छा होता कि तु सुरभि से ही पूछती। खैर... मैं बताती हूँ। दो साल पहले सुरभि के छोटे देवर अनिमेष से हुई थी केतकी की शादी। केतकी उसीका नाम है जिसकी तु बात कर रही है !""ओह... तभी मुझे लग रहा था कि मैंने इसे कहीं देख रखा है !"सुप्रिया बीच में अम्मा की बात काटकर बोली तो अम्मा ने कहा,"तुने कब देखा केतकी को? उसके ब्याह में तो तुम आई नहीं थी !""अम्मा !इंटरनेट का ज़माना है ये। किसीकी भी फोटो कभी भी भेजी जा सकती है। बस दिद्दा ने भेजी थी फोटो, तभी मैं कहूँ इसका चेहरा देखा देखा क्यों लग रहा था !"

सुप्रिया ने कहा और इधर अम्मा ने अपना कहना जारी रखा,

बड़ा प्रेम था केतकी और अनिमेष में। शादी के पांचवे दिन दोस्तों की ज़िद पर घाट पर नहाने जो गया तो कुछ घंटों में उसकी लाश ही पानी के सतह पर उभरी। उसे तैरना तो आता नहीं था और पता ही नहीं चला कि आगे पानी कितना गहरा था..... बस डूबता चला गया।बाबुजी तो एकदम निःशब्द हो गए और केतकी विक्षिप्त सी। इस घटना के कुछ महिनों बाद उनके बाबुजी तो अपने जवान बेटे को खोने का गम सीने में दबाये दुनियां से चले गए और केतकी की ये हालत हो गई है कि वह आज भी ये मानती है कि अनिमेष घाट पर नहाने गया है अभी वापस आएगा।तबसे रोज़ दोपहर से शाम तक बिना नागा उसका इंतजार करती है और फिर घर आ जाती है !"

"ओह... "सुप्रिया के मुँह से निकला।ज़नेऊ उत्सव के बाद ज़ब उस रात सुप्रिया सुरभि के घर रुकी तो गई रात तक केतकी के कमरे से हँसने और कुछ बोलने की आवाज़ आ रही थी। उसे सुनकर सुप्रिया ने सुरभि को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा,जैसे पूछ रही हो कि

केतकी के कमरे में कौन है?सुरभि ने उसका इशारा समझ बताया कि,केतकी रात में अकेले में अनिमेष से अपनी कल्पना में ऐसे बात करती है जैसे वो जीवित हो और दोनों अभिसार की बातें कर रहे हों।

"दिद्दा !इसका कहीं इलाज नहीं करवाया? और इनके मायकेवाले?"

"हम केतकी का इलाज करवा रहे हैँ छुटकी ! और पहले से काफ़ी हद तक ठीक भी हुई है। फिर हम इसकी शादी करवा देंगे।इसके पीहर में वृद्ध और लाचार पिता के अलावा और कोई नहीं है।

बस समझ लो कि हमारे भाग फूट गए जबसे ई ब्याहकर आई।ससुरजी का असमय निधन, देवरजी की आत्महत्या... और ना जाने क्या क्या देखना पड़ेगा हमें !"

बोलकर दिद्दा अफ़सोस जताने लगी। और सुप्रिया सोचने लगी कि क्या इसमें केतकी का कोई दोष है?

अनिमेष का भी भावावेश में आकर अपनी इहलीला समाप्त कर लेना भी तो उचित नहीं था।सुप्रिया को परेशान देख सुरभि ने उसे आश्वासन दिलाया कि वह केतकी को लेकर ज़्यादा ना सोचे... सब ठीक हो जायेगा। पर सुप्रिया जानती थी कि सबकुछ ऐसे ठीक नहीं होगा बल्कि ठीक करना होगा। उसे दिद्दा को जोर देकर केतकी का और अच्छे से इलाज करवाना होगा ताकि वह जल्दी ठीक हो जाए और सामान्य जीवन जी सके।अगले दो दिन तो सुप्रिया दिद्दा को केतकी के बड़े डॉक्टर से इलाज के लिए मनाती रही फिर मुंबई के एक विशेषज्ञ डॉक्टर से इलाज के लिए उनको मनाने में कामयाब हो गई।सुरभि के जेठ मुंबई में ही रहते थे।केतकी को मुंबई लाकर इलाज करवाने में गिरीश ने भी उसका बहुत साथ दिया।धीरे धीरे केतकी की हालत सुधरने लगी थी।उसका इलाज लगभग छः महीने चलनेवाला था। सुप्रिया और गिरीश को एक महीने में ही वापस लौट जाना था। सुप्रिया को डर था कि उनके जाने के बाद दिद्दा कहीं केतकी का इलाज ना रुकवा दे। इसलिए उसने सुरभि से अपनी शंका जताते हुए कहा,

"दिद्दा, मेरे जाने के बाद केतकी का इलाज मत रोकना। देखना वो जल्दी ठीक हो जाएगी और फिर पूरी ज़िन्दगी तुमको धन्यवाद देती रहेगी। तुमको पुण्य मिलेगा पुण्य !"

बोलकर हँसते हुए सुप्रिया दिद्दा के गले लग गई तो दिद्दा को उसकी बात माननी पड़ी। बचपन में भी तो सुप्रिया अपनी दिद्दा से ऐसे ही लाड़ करके अपनी बात मनवा लिया करती थी। आज भी दिद्दा कहाँ इनकार कर पाई अपनी छुटकी को।

एक महीने बाद ज़ब सुप्रिया वापस कनाडा जा रही थी तो केतकी में इतना सुधार ज़रूर हो गया था कि अब वह रातभर कल्पना में अनिमेष से बात नहीं करती थी।इस बीच सुप्रिया दिद्दा से बात करती रहती थी। वह चौंक गई ज़ब एक दिन दिद्दा ने उसकी केतकी से बात कराई। अब वह पूरी तरह ठीक हो गई थी और आगे कोई नौकरी करना चाहती थी। सुप्रिया को बहुत संतोष हुआ था केतकी से बात करके।

सुप्रिया के कनाडा जाने के दो साल बाद...

एक दिन सुरभि का ख़ुशी से भरा हुआ फोन आता है। सुरभि की आवाज़ से उसकी ख़ुशी साफ झलक रही थी,"छुटकी ! अगले महीने केतकी का ब्याह है, तुझे आना ही है। तेरी किरपा से ही यह दिनदेखने को मिल रहा है,याद रखियो !"बोलते बोलते भावुक हो उठी दिद्दा और तभी सुप्रिया ने सुना। दीदी के हाथ से फ़ोन लेकर केतकी कह रही थी,"सुप्रिया दीदी ! आपको इस बार तो मेरी शादी में आना ही पड़ेगा…। और दीदी... आपको बहुत ख़ुशी होगी जानकर कि अब कोई आपकी इस बहन को बावरी नहीं कहेगा !"

ख़ुशी के साथ एक दर्द भी था केतकी के शब्दों में जिसे सुप्रिया ने साफ महसूस किया।

आखिर अतीत का दंश जाते जाते ही केतकी के मन से जायेगा।

सुप्रिया ने सोचा और केतकी से कहा,"ज़रूर आऊँगी...और जूता छुपाई का रस्म भी मैं ही करुँगी,, मैं तुम्हारी बहन जो हूँ !"कहते हुए सुप्रिया भी बहुत खुश थी।और केतकी... मानो अपने जीवन के नए सफ़र की शुरुआत से पहले सुप्रिया से गले मिलकर उसका बहुत सारा शुक्रिया अदा करना चाहती थी जिसके निःस्वार्थ भाव से मदद करने की बदौलत आज केतकी सामान्य जीवन जी सकती थी और जीवन के एक खूबसूरत सोपान पर कदम रखने जा रही थी।

केतकी ने दीर्घ निःस्वास लेकर सोचा और अपनी पसंद का गीत गुनगुनाने लगी..."केसरिया बालमा... मोरे बावरी बोले लोग लोग रे... बावरी बोले लोग !"

फिर केतकी गाने को बीच में ही रोककर मुस्कुराकर सोचने लगी...

"अब मुझे कोई बावरी नहीं कहेगा !"


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