Shishpal Chiniya

Abstract

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Shishpal Chiniya

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जोकर

जोकर

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जिंदगी आपकी है आप चाहे जिस तरह जियें लेकिन कभी उस पर आँच नहीं आनी चाहिये जिसने आपको जिंदगी दी है।

मुझे तो पता नहीं है कि शादी के बाद क्या होता है। क्योंकि अभी तक मैं इस अनुभव से वंचित हूँ। लेकिन सुना है आदमी शादी के बाद जोकर बन जाता है।

नई दुल्हन जब घर आती है तो सभी उसको भाव देते है। उसकी हर बात पर गौर किया जाता , पूरी भी की जाती है।

लेकिन जब आदमी इसी तरह चलता रहता है , तो वो जोकर बन जाता है। क्योंकि फिर औरत के हाथ में उसकी डोर आ जाती है। और वो वही करता है , जो उसकी बेगम कहती है। वो भले ही बादशाह न होकर एक गुलाम हो ।


मैं यह नहीं कहता हूँ कि सभी औरत एक जैसी होती है लेकिन ये दावे से कह सकता हूँ कि एक औरत बुरी हो सकती है।


एक उदाहरण बताऊँ आपको -

" मैं लगभग अपने साल छह महीने अपने ननिहाल में बिताता हुँ , क्योंकि मुझे अपनी मम्मी से बहूत प्यार है और मुझे अच्छा लगता है जब कोई मुझे मेरी मम्मी के नाम से बुलाता है।मेरे ननिहाल में मेरा एक दोस्त है जो अपने माँ पापा से बहूत प्यार करता था। उसके पापा की अचानक मौत हो गयी । और उसकी शादी कर दी।अब वो अपनी शादी के बाद के अपनी पत्नी को बहूत ज्यादा समय देने लगा।पापा की मौत हो गयी तो उसे घर चलना जरूरी था लेकिन वो तो कुछ और ही कर रहा था ।उसकी माँ काम करने जाने लगे गयी ताकि घर का खर्चा चल सके ।

दो साल बीत गए।मैंने उसे कई बार फोन किये लेकिन ज्यादातर उसकी पत्नी फोन उठाती और वो भी उठाता लेकिन औपचारिक बात करके फिर डिस्कनेक्ट कर देता ।एक दिन उसे फोन किया तो उसने उठाया मैंने कहा - "अरे क्या कर रहा है।"कुछ लम्बी बात हुई लेकिन उसकी बातों से लग रहा था कि वो कुछ बदल गया है लेकिन गलत तरीके से।मैं दूसरे दिन उसके घर गया तो उसकी माँ के बारे में पूछा तो

उसने कहा " कि दिन में काम करने जाती है।"

मैं वापिस मुड़ गया। पीछे से आवाज लगाई - "अरे भाई क्या हुआ कितने दिनों बाद मिले है चाय तो पीकर जा "।मैंने कहा अगर तेरे पैसों की है तो पिला दें। लेकिन माँ के पैसों की मुझे नहीं पीनी है।

तो उसने कहा - " मैं समझा नहीं "

मैंने कहा - "अरे तू वही शंकर जो माँ के लिए जान छिड़कता था। और तेरे होते हुए माँ काम करने जाती है।तू क्यों नहीं जाता है।

" मैं भी जाता हूँ "

" फिर माँ क्यों जाती है। "

वो मेरी तनख्वाह मेरे और तेरी भाभी के खर्चे में निकल जाती है। और घर का खर्चा भी चलाना पड़ता है।मैंने उसको काफी झड़प लगाई ।

दूसरे दिन फिर उसके घर गया माँ घर पर थी।मुझे देखकर मुस्कराते चेहरे से बोली - " कैसे हो बेटा "

मैंने कहा - " अच्छा हूँ माँ आप कल घर पर नहीं थी ।"

तो बोली - " यूँ ही घर से बाहर गयी थी (शायद पूरी बात इसलिए नहीं बताई , कि कहीं उसके बेटे को कोई बुरा नहीं बोले )

फिर काफी दिनों तक मैंने फोन नहीं किया , एक दिन उसका फोन आया और बोला - "सॉरी यार दिन भर काम करता हूँ । समय ही नहीं मिल रहा बात करने को।"

हमारी लम्बी बात हुई , मैं हैप्पी था।

एक औरत घर बसा सकती है , एक औरत घर उजाड़ सकती है।

एक सावित्री ने जान बचाई थी , एक सावित्री बिगाड़ भी सकती है।

औरत घर का ताज है , जब तक सुरक्षित है । घर एक महल है । लेकिन जब ताज बात बात गिरने लग जाये तो शायद महल का बचना मुश्किल है।




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