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Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Abstract

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Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

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जम गए आँसू

जम गए आँसू

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आज फिर एक बहू को कटघरे में खड़ा कर दिया गया। जाने कब तक सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ेगी।

डॉक्टर के ये शब्द पिघलते शीशे से कानों को छेद रहे थे- “बहू हैं न ! इसीलिए इनकी ये हाल कर दी, बेटी होती, तो ऐसा कभी नहीं होता। 

फाइव मिंट मोर मैडम, ओनली फाइव मिंट। यदि पाँच मिनट भी देर हुआ होता तो इन्हें बचाना मुश्किल था .. 

आपके पास बाइक है या कार ? 

"जी दोनों ही है"

 उसकी सर्विसिंग करवाती हैं न..? बूढ़ा आदमी भी पुरानी कार और बाइक की तरह होता है, जिसकी सर्विसिंग आवश्यक होती है…..”

डॉक्टर बोले जा रहे थे और आँखों के सामने पूरा परिदृश्य घूम रहा था, कैसे मैं जबरदस्ती बाबूजी को अस्पताल तक लाई।

हर दिन की भांति उस दिन भी बाबूजी और बेटा को खाना खिला कर बेटी के साथ खाने जा रही थी। सदा की तरह ही बाबूजी हे राम..हे , राम..कर रहे थे पर उनकी आवाज में मुझे आज कुछ बेचैनी महसूस हुई। पूछने पर कहे -‘ जा जा खाना खा….कुछो नइखे भेल, एहि लेखा भगवान के याद करइत बारी।’

लौट कर टेबल के पास आई पर उनकी आवाज मुझे बैठने नहीं दे रही थी। बेटी को कहा तुम खाना खाओ हम बाबा के पांव में गर्म तेल मालिस कर के आते हैं। शायद उन्हें ठंढ लग रही है। लहसुन पका तेल लेकर मालिस करने पहुँची। बाबूजी रजाई से पांव बाहर नहीं निकालने दिए और थोड़ा झिड़कते हुए पुनः वही बात जा खा..।

दोनों बच्चों के अलावा घर में और कोई नहीं था, अतः मैंने जेठ जी को फोन लगा कर अपनी घबड़ाहट व्यक्त की। रात के नौ बजे चुके थे। जेठजी ने कहा - तुम बहुत जल्दी घबड़ा जाती हो, घबड़ाओ नहीं, तेल मालिस कर दो बदन गर्म हो जाएगा तो नींद आ जाएगी।

पर बाबूजी की आवाज... मुझे बेचैन कर रही थी। पुनः जेठजी को फोन किया और आने के लिए जिद्द किया। बाबूजी से पूछा - ‘भैया को बुला दें? डॉक्टर के पास चलते हैं।’ एक बार पुनः डांट खाई और जेठ जी को पुनः फोन किया।

जेठ जी थोड़ी ही दूरी पर रहते थे। इस बार वो जल्द ही आ गए। साथ में जेठानी और उनका बड़ा बेटा भी था जो इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ता था । बेटा को देखते ही बाबूजी के चेहरे पर चमक आ गई। तत्क्षण उठ कर बैठ गए और अपनी पीड़ा भूल बेटा से बातें करने लगे। भैया बोल पड़े - “देखो बाबूजी बिल्कुल ठीक हैं। तुम बेकार घबड़ा जाती हो।” फिर बाबूजी से बोले -‘ काहे ला अइसे कहरइत रह.. रीमा घबड़ा जा ले न।’ पता न बाबूजी ने क्या सुना, झट-पट खड़े हो गए और कहे चल..कौन अस्पताल चलब..

वो इतनी जल्दी कमरे से बाहर निकल गए कि हममें से कोई कुछ समझ ही नहीं पाया। जो स्वेटर शॉल वे पहने थे उसी में वे बाहर निकल गए। अतिरिक्त कुछ अन्य आवश्यक सामान जल्दी-जल्दी मैंने इकट्ठा किया, घर की चाभी उठाई और अपनी पड़ोसन को देते हुए ये कहते कहते निकल गई ..बच्चों को देखिएगा। वो बेचारी भी हतप्रभ थी एकाएक क्या हो गया। पर उन्हें कुछ भी बताने को मेरे पास समय नहीं था। बाबूजी नीचे पहुँच चुके थे। दौड़ते-भागते मैं कार में बैठी। बगल के एक हॉस्पिटल में गई। वहाँ के डॉक्टर ने देखते कहा आप इन्हें तुरत इंदिरागांधी कार्डियक हॉस्पिटल ले जाएँ। मैं वहाँ खबर कर देता हूँ आपको तुरत सारी सुविधाएँ मिल जाएगी।

कार में बैठे-बैठे ननद को फोन किया - “ दीदी बाबूजी की तबियत ठीक नहीं है। उन्हें इंदिरागांधी कार्डियक हॉस्पिटल ले जा रहे हैं।” दीदी चौंक कर पूछी एकाएक क्या हो गया ? जब मैंने कहा थोड़े बेचैन हैं इसीलिए जा रहे हैं। उधर से भैया भी डांटने लगे रात में बेकार सबको फोन कर के तंग कर रही हो और दीदी ने भी उतनी ही सहजता से कहा - डॉक्टर से दिखाने के बाद बताना क्या हुआ है।

कार्डियक हॉस्पिटल में मैं बेचैनी से वार्ड के बाहर टहल रही थी क्योंकि अब-तक हमलोगों को पता नहीं था बाबूजी को हुआ क्या है ? अंदर से एक सिस्टर ने आकर कहा आपको डॉक्टर साहब बुला रहे हैं और फिर ये शब्द आप इनकी बेटी हैं ? बहू हैं न, इसीलिए इनकी ये हालत हो गई। फाइव मिंट मोर मैडम, ओनली फाइव मिंट....

घबराहट के मारे पांव कांपने लगे और आवाज थरथराने लगी। डॉक्टर को देख अपनी घबराहट पर काबू पा मात्र इतना ही पूछ पाई -डॉक्टर साहब बाबूजी अब कैसे हैं?

क्रोध से मेरी तरफ देख कर कहा - "उनका दुर्भाग्य..अभी तो बच गए आगे आप जानिए ...बोलते बोलते वे अंदर चले गए।

डॉक्टर अंदर जा चुके थे पर उनके शब्द वाण मेरे हृदय में चुभ गए और दो मोटे आँसू आँखों के कोर से निकल गाल पर जम गए। 


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