Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract

4.7  

Dr Jogender Singh(jogi)

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ज़िंदा

ज़िंदा

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दिल बाग बाग हो गया , चोपड़ा जी की बातें सुनकर।चोपड़ा जी रुक ही नहीं रहे हैं! क्या बात इस आदमी की, हर वक़्त मदद को तैयार, थोड़ा गुस्सा करते , पर कभी भी बुलाओ हाज़िर। अब मुझ से सहन नहीं हो रही , तारीफ़ बन्द करिए चोपड़ा जी। चोपड़ा जी तो जैसे सुन ही नहीं रहे । हर किसी से घुल मिल कर रहना , जैसे पानी मिल जाता है ! आटे, दूध , सब्जी हर चीज़ में। अब आप भी शुक्ला जी , बस करिए । पर कोई मेरी सुन ही नहीं रहा। सब लगे हैं तारीफ़ करने में। चाहे द्विवेदी जी छोटे, द्विवेदी जी बड़े , खन्ना जी , गुलाटी जी मिश्रा जी । सब को क्या हो गया है । भागा भागा घर आया , श्रीमती को बताता हूं, सब कितनी तारीफ़ कर रहे हैं मेरी ।

" अरे तुम रो क्यों रही हो? क्या हुआ? मैं परेशान होने लगा ।" वो बस रोती जा रही है, मेरी तरफ ध्यान ही नहीं दे रही। मुझ से नाराज़ हो गई है शायद, कोई नहीं अभी मना लेता हूं । एक गिलास पानी ले आऊं पहले। मैं किचन से गिलास उठाता हूं,, यह उठता क्यों नहीं ? सुनो गिलास को क्या हो गया , उठ ही नहीं रहा मुझसे । कोई जवाब नहीं। बस रोते रोते हल्कान हो रही ।" अच्छा सॉरी" , मुझसे गलती हो गई, उसका सिर सहलाता हूं, मैंने गलती कर दी , माफ़ कर दो , प्लीज रोना बंद कर दो, यह बताओ गिलास को क्या हुआ। उठ नहीं रहा मुझ से, कोई जवाब नहीं, अब मुझे गुस्सा आने लगा। इतनी देर से बोल रहा हूं , ज़वाब क्यों नहीं दे रही? और बताओगी नहीं तो मुझे कैसे पता चलेगा कि क्या हुआ। पर यह तो बस , रोए जा रही है। तभी सुनीता मेरी छोटी साली अंदर आती दिखी ।

"अरे सुनीता ! अच्छा हुआ तुम आ गई। देखो , तुम्हारी बहन पता नहीं क्यों रोए जा रही है।" यह क्या? सुनीता भी कोई जवाब नहीं दे रही। सब को क्या हो गया? अरे सुनीता भी रो रही है। इन औरतों को भगवान भी नहीं समझ सकता, दोनों रो रही है बस । मैं चुपके से खिसक लिया। अरे!!! लिफ्ट से उतर कर इतनी सारी औरतें हमारे फ्लैट में क्यूँ आ रही है? लगता है कोई बड़ा कांड हो गया। मै तेज़ी से सीढ़ियों की तरफ़ लपका , अच्छा हुआ किसी ने देखा नहीं। सीढ़ियों से उतर कर नीचे पंहुचा। अरे हमारे ब्लॉक में किस की डेथ हो गई!! मिट्टी रखी है । लोगों के बीच से होता चेहरा झांकने आगे बड़ा। यह क्या ?? यह तो मैं ही हूं। अब मुझे रोना आने लगा। 

कैसे बात करूंगा , अपनी पत्नी से ? उस को बहुत कुछ बताना था। शुक्ला जी से माफी मांगनी थी, अब कैसे मांगूंगा? तमाम चेहरे आंखों के सामने घूमने लगे । अब क्या हो सकता है? कुछ नहीं , जब यह सब करना चाहिए था, तब किया नहीं। मैं सिर पकड़ कर बैठ गया।

"तबियत ठीक नहीं है क्या ?" यह किसकी आवाज़ है? जानी पहचानी ।

"उठना नहीं है , बहुत देर तक सो रहे हो" अरे यह तो श्रीमती जी है। धीरे से आंखे खोली , पंखा चल रहा है।

"सुनो इधर आओ" ,

" क्या है? " मैंने पत्नी को छू कर देखा, और मुस्कुरा दिया।

"पगला गए हो बुढ़ापे में?" मैं बस मुस्कुरा दिया। अभी बहुत काम करने हैं। कुछ शिकवे दूर करने हैं, और भी बहुत कुछ । बस अब ,और टाला मटोली नहीं, मैंने मानो खुद से वादा किया। एक एक पल जीने का। हर एक पल जीने का।



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